जयपुर. राजस्थान से आदिवासी समुदाय के लिए काम करने वाले वाग्धारा संस्थान के जयेश जोशी को राष्ट्रीय जल प्रहरी 2022 पुरस्कार से सम्मानित किया गया (Jayesh Joshi honoured with National Water Watch Award) है. दिल्ली में आयोजित कार्यक्रम में देश में जल संकट से निपटने के लिए काम कर रहे लोग शामिल हुए. केंद्रीय जल शक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने यह सम्मान जोशी को दिया. सम्मान लेने के बाद जयपुर पहुंचे जोशी से ईटीवी भारत ने खास बातचीत में जाना कि किस तरह से जल संकट से निपटा जा सकता है. इसके लिए किस तरह से कार्य करने की जरूरत है ताकि हम जल का संरक्षण कर सके.
प्राकृतिक संसाधनों को अपनाने की जरूरत:जोशी ने कहा कि राजस्थान का नाम लेते हैं, तो यहां का मरूप्रदेश जहन में आ जाता है. यहां के रेतीले धोरे, बंजर पड़ी जमीनें, राजस्थान के बारे में सबको ऐसा ही लगता है. लेकिन ऐसा नहीं है. इन सबसे अलग हैं यहां के आदिवासी, जो हमेशा से ही दुनिया को उदाहरण देते रहें हैं. आदिवासियों के परंपरागत तरीकों को आज भी काम में लिया जाए, तो कई तरह के संकट को खत्म किया जा सकता है. जोशी ने कहा कि पहाड़ों पर जहां चलना दूभर होता है, वहां मटकी से पानी पहुंचाकर पेड़ों को बचाया जाता है.
1000 गांव के बुजुर्गों का अनुभव: जोशी ने बताया कि आदिवासी क्षेत्र में जब पानी के लिए काम करना शुरू किया, उस वक्त सबसे पहले 1000 गांव के आदिवासी बुजुर्गों से उनके परंपरागत जल स्रोतों के बारे में जानकारी ली. वह पुराने जमाने में किस तरह से जल संरक्षण पर काम करते थे. उसको समझा और उन्हीं तरीकों को आजमाते हुए हमने क्षेत्र में जल संरक्षण पर कार्य किया. बुजुर्गों से हमने यह भी जानने की कोशिश की कि जब अकाल की स्थिति होती थी, तब किस तरह से फसलों को जानवरों को बचाया जाता था. तब यह बात सामने आएगी. छोटे-छोटे तालाबों और बावड़ियों के जरिए पानी का संरक्षण किया जा सकता है. वाग्धारा ने भी इन्हीं अनुभवों के साथ काम किया. उसका नतीजा यह निकला कि आदिवासी क्षेत्रों में अब जल संकट न के बराबर है.
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भूजल का दोहन संकट का कारण: जोशी ने कहा कि बदलते परिवेश में सतही जल की जगह भूजल का दोहन होने की वजह से जल संकट गहराता जा रहा है. बावड़ियां राजस्थान में सबसे ज्यादा हैं. छोटे-छोटे तालाब हर गांव में मिल जाएंगे, लेकिन उन से जल संग्रहण की जगह भूजल दोहन किया जा रहा है. अगर आंकड़े बताते हैं कि डार्क जोन बढ़ रहे हैं, तो सरकार को तत्काल भूजल दोहन पर रोक लगानी चाहिए. सतही जल प्रबंधन पर काम करें. बांधों को लेकर सरकार बहुत संवेदनशील है, तो हमारा आग्रह है कि बड़े बांधों की जगह छोटे जल स्रोतों पर काम करें और कोशिश हो कि समुदाय के साथ परंपरागत तरीकों के जरिए काम किया जाए.