जयपुर.राजस्थान केजालोर की घटना (Dalit Student Death in Jalore) एक बार फिर से चर्चा में है. इस बार आरएसएस से जुड़ी पाथेय कण पत्रिका में छपे एक लेख के कारण इस पर सवाल खड़े हो रहे हैं. सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या दलित छात्र की मौत का मामला जातिगत है या फिर सामाजिक ताना-बाना बिगाड़ने की एक साजिश है. हालांकि, गहलोत सरकार ने सारे विवादों को खत्म करने के लिए पहले से इस मामले की जांच एसआईटी को दे दी है, जिसकी रिपोर्ट आना अभी बाकी है.
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़ी पाक्षिक पत्रिका पाथेय कण के सितंबर माह के अंक का मुख्य पृष्ठ इसी घटनाक्रम पर आधारित है. संघ की पत्रिका ने इस घटना को सामाजिक समरसता तोड़ने का वाम षड्यंत्र करार देते हुए मटका कांड पर सवाल खड़े किए हैं. इसके बाद से राजनीति के गलियारों में यह चर्चा आम हो चली है कि जालोर मामले में अपने ही विधायकों के निशाने पर आए गहलोत को एक बड़ी राहत मिली है कि भाजपा तो पहले से इस मुद्दे से दूर थी, क्या अब संघ ने भी गहलोत सरकार की हां में हां मिला दी है. दरअसल, गहलोत सरकार भी जालोर में बच्चे की मौत को जातिगत मुद्दा मानने से आनाकानी करते हुए इसकी जांच एसआईटी को दी थी.
घटना क्या है, समझना जरूरी है :जालोर केसायला थाने में दर्ज रिपोर्ट के मुताबिक सुराणा निवासी किशोर कुमार ने रिपोर्ट देकर बताया कि उसके भाई देवाराम का 9 वर्षीय बेटा इंद्र कुमार सरस्वती विद्या मंदिर स्कूल में कक्षा तीसरी में पढ़ता है. गत 20 जुलाई को इंद्र कुमार स्कूल पढ़ने के लिए गया था. इस दौरान मटके से पानी पीने से नाराज शिक्षक छैल सिंह ने इन्द्र कुमार के साथ मारपीट (Dalit Student Beaten by Teacher in Jalore) की. रिपोर्ट में आरोप लगाया कि बच्चे के मटकी से पानी पीने के कारण शिक्षक ने बच्चे को थप्पड़ मारा, जिससे बच्चे के दाहिने कान और आंख पर अंदरूनी चोटें आई. बाद में इलाज के दौरान बच्चे की मौत हो गई.
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जालोर के सुराणा गांव में हुई इस घटना पर न केवल प्रदेश में सियासत हुई, बल्कि देश भर में यह मामला सुर्खियों में भी आया. देशभर से दलित नेताओं की भी प्रतिक्रिया आने लगी और सभी ने देश की 75वीं वर्षगांठ के बीच जातिगत भेदभाव को दुर्भाग्यपूर्ण बताया. इस मामले में भाजपा ने तो मौजूदा गहलोत सरकार को नहीं घेरा, लेकिन कांग्रेस के दलित विधायक अपनी ही सरकार के खिलाफ मुखर हो गए. आलम यह है कि कांग्रेस विधायक पानाचंद मेघवाल ने इस मुद्दे पर अपना इस्तीफा दे दिया. कांग्रेस विधायक और राज्य एससी आयोग अध्यक्ष खिलाड़ी लाल बैरवा और विधायक वेद प्रकाश सोलंकी ने अपनी ही पार्टी के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था. यही कारण रहा कि यह मुद्दा राजस्थान से निकल कर पूरे देश में दलित पार्टियों का प्रमुख मुद्दा बन गया और इस पर सियासत भी तेज हो गई.
वास्तविकता की जांच के लिए किया था एसआईटी का गठन, PCC ने दी 20 लाख की मदद : इस घटना के बाद अपने ही विधायकों से घिरी गहलोत सरकार ने घटना की वास्तविकता की जांच के लिए एसआईटी का गठन किया, ताकि यह भी साफ हो सके कि वास्तव में मटकी से पानी पीने के चलते ही शिक्षक ने बालक को चांटा मारा या फिर कुछ और घटनाक्रम रहा. वहीं, घटना की गंभीरता को देखते हुए राज्य मानव अधिकार आयोग ने भी संज्ञान लिया तो वहीं भाजपा राष्ट्रीय महामंत्री तरुण चुघ ने केंद्रीय अनुसूचित जाति आयोग से हस्तक्षेप की मांग की.
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केंद्रीय आयोग की प्रारंभिक जांच में मटके से पानी पीने की घटना मानी, लेकिन अब सीएम को मिली राहत : इस घटना में केंद्रीय अनुसूचित जाति आयोग ने भी संज्ञान लिया और जालोर में अपनी टीम भी भेजी. आयोग के राष्ट्रीय अध्यक्ष विजय सांपला 21 अगस्त को इस मामले में जयपुर में प्रेस कॉन्फ्रेंस भी की और एक जवाब में यह भी कहा कि आयोग की प्रारंभिक जांच में यह मामला मटकी से पानी पीने के कारण होना सामने आया है. पाथेय कण पत्रिका ने विभिन्न सर्वे और मीडिया रिपोर्ट के आधार पर घटना को सांप्रदायिक वैमनस्य का रूप देने वाले राजनेता और संगठनों पर सवाल खड़े किए गए. राजस्थान में मौजूदा घटना ना केवल राज्य बल्कि प्रदेश सरकार की कार्यशैली को भी कटघरे में खड़ा करती है. लेकिन इस पत्रिका में छपा यह लेख विभिन्न तर्कों के साथ इसे सामाजिक समरसता को तोड़ने का षड्यंत्र की ओर इशारा कर रहा है. जिसके बाद मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने तो कम से कम राहत की सांस ली ही होगी.
मामला वोट बैंक से जुड़ा है, इसलिए चुप्पी भी और सियासत भी : जालोर की ये घटना ने सियासी रंग ले ली, क्योंकि मामला दलित वोट बैंक से भी जुड़ा था. लेकिन इसमें बीजेपी की चुप्पी सियासी थी, क्योंकि बालक के माता-पिता ने जिस शिक्षक पर यह गंभीर आरोप लगाया था वो सवर्ण समाज से आता है. इसमें यदि प्रदेश भाजपा नेता इस मामले में गहलोत सरकार को घेरने के लिए यह मामला उठाते तो संभवतः समाज का दूसरा वर्ग नाराज हो जाता. यही कारण था कि प्रदेश भाजपा नेता इस मामले की जांच रिपोर्ट आने तक ना तो ज्यादा आक्रामक हुई और भाजपा नेताओं ने नपी तुली बयानबाजी ही की. वहीं, इस घटना पर बिना जांच के सियासत और मृतक छात्र के माता-पिता के आरोपों के बाद यह घटना ना केवल गंभीर हुई, बल्कि हिंदू समाज को तोड़ने वाली और सामाजिक समरसता को नुकसान पहुंचाने वाली भी साबित हो सकती थी. यही कारण रहा कि इस मामले में संघ को आगे आना पड़ा, ताकि मौजूदा घटनाक्रम को सियासत से परे रखकर उसकी जांच हो और सामाजिक समरसता बनी रहे.
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पाथेय कण में छपे लेख में ये है खास : संघ से जुड़ी पाक्षिक पत्रिका के सितंबर माह के अंक का मुख्य पृष्ठ इसी घटनाक्रम और इसको लेकर हो रही सियासत पर सवाल खड़े कर रहे हैं. मुख्य पृष्ठ पर इस घटना को सामाजिक समरसता तोड़ने का वाम षड्यंत्र करार देते हुए मटका कांड पर सवाल खड़े किए गए और विस्तार से घटना को लेकर हुए सर्वे और मीडिया रिपोर्ट का हवाला भी दिया. इस घटनाक्रम को लेकर आए कुछ राजनेताओं के ट्वीट का भी इसमें हवाला दिया गया और वाम व लिबरल गैंग कि साथ ही भीम आर्मी तक का जिक्र किया गया. इसमें यह भी स्पष्ट कर दिया गया कि समाज से विलुप्त हो गई छुआछूत को फिर से जीवित करने के लिए समाज तोड़क द्वारा मटकी का आविष्कार किया गया है.
क्षेत्र संघचालक और लेखक का यह है कहना : वहीं, इस बारे में जब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के राजस्थान क्षेत्र संघ चालक रमेश चंद्र अग्रवाल से बात की गई तो उन्होंने कहा कि जालोर के सुराणा गांव से जुड़ी इस घटना में अभी जांच चल रही है. ऐसे में जांच से पहले कोई किसी निष्कर्ष पर पहुंच कर ऐसा बयान देने का काम ना करें, जिससे सामाजिक वैमनस्यता फैले. वहीं, पाथेय कण के संपादक व लेखक रामस्वरूप अग्रवाल के अनुसार पत्रिका में जो रिपोर्ट दी गई है वो विभिन्न मीडिया व अन्य एजेंसियों के द्वारा किए गए सर्वे के आधार पर छापी गई है. हालांकि, अंतिम तस्वीर एसआईटी की जांच के बाद ही स्पष्ट हो पाएगी.