जयपुर. भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को परिवर्तिनी एकादशी व्रत (Jal Jhulni Ekadashi 2022) रखा जाता है. इस व्रत का पारण द्वादशी के दिन मुहूर्त में किया जाता है. धार्मिक मान्यता के अनुसार, चतुर्मास के दौरान पाताल लोक में क्षीर निंद्रा में वास कर रहे भगवान विष्णु इस दिन करवट बदलते हैं. इसलिए इसका नाम परिवर्तिनी एकादशी है. धर्म शास्त्रों के अनुसार, परिवर्तिनी एकादशी का व्रत करने से मनुष्य को वाजपेय यज्ञ करने के समान फल मिलता है. साथ ही भगवान विष्णु की कृपा से जीवन में कभी भी दुख और परेशानियां नहीं आती हैं.
पढ़ें :Nirjala Ekadashi 2022 : दो दिन मनाई जा रही निर्जला एकादशी...जानिये कब रखा जाएगा व्रत
जलझूलनी ग्यारस का महत्व :
- इस दिन व्रत करने से रोग-दोष आदि से मुक्ति मिलती है.
- यह एकादशी करने से जीवन में धन-धान्य व मान-प्रतिष्ठा में समृद्धि होती है.
- जलझूलनी एकादशी के दिन व्रत व दान-पुण्य करने से सौभाग्य में वृद्धि होती है.
- माना जाता है कि इस दिन व्रत करने से वाजपेय यज्ञ के समान फल प्राप्त होता है.
- जलझूलनी एकादशी व्रत करने से जीवन से सभी कष्टों एवं संकटों का नाश होता है.
परिवर्तिनी एकादशी के दिन न करें ये काम :
- परिवर्तिनी एकादशी के दिन चावल का सेवन न करें. वैसे तो किसी भी एकादश्री के दिन जो लोग व्रत न भी करें, उन्हें चावल का सेवन नहीं करना चाहिए.
- एकादशी के दिन नॉनवेज-शराब का सेवन न करें. व्रत ना भी करें तो भी तामसिक चीजों से दूर रहें और सात्विक भोजन ही करें.
- एकादशी के दिन ना तो किसी को बुरा बोलें और ना ही क्रोध करें. इस दिन अपना ध्यान भगवान विष्णु की भक्ति में ही लगाएं.
- जो लोग एकादशी का व्रत कर रहे हैं वे ब्रह्मचर्य का पालन करें.
इस विधि से करें परिवर्तिनी एकादशी का व्रत :
- परिवर्तिनी एकादशी व्रत का नियम पालन दशमी तिथि (5 सितंबर 2022) की रात से ही शुरू करें व ब्रह्मचर्य का पालन करें. एकादशी की सुबह स्नान आदि करने के बाद व्रत-पूजा का संकल्प लें.
- इसके बाद घर में किसी साफ स्थान पर भगवान विष्णु की प्रतिमा स्थापित करें और पंचामृत से स्नान कराएं। चरणामृत को व्रती (व्रत करने वाला) अपने और परिवार के सभी सदस्यों के अंगों पर छिड़कें और उस चरणामृत को पीएं.
- भगवान को गंध, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य आदि पूजन सामग्री अर्पित करें. विष्णु सहस्त्रनाम का जाप एवं भगवान वामन की कथा सुनें. रात को भगवान वामन की मूर्ति के समीप हो सोएं.
- अगले दिन यानी द्वादशी तिथि (7 सितंबर, बुधवार) को वेदपाठी ब्राह्मणों को भोजन कराकर दान देकर आशीर्वाद प्राप्त करें.
परिवर्तिनी एकादशी व्रत की कथा :
पुराणों के अनुसार, एक बार युधिष्ठिर को भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं परिवर्तिनी एकादशी का महत्व बताया था. श्रीकृष्ण ने बताया कि त्रेतायुग में बलि नामक एक दैत्य था. उसने अपने पराक्रम से इंद्रलोक पर भी अधिकार कर लिया. तब मैंने वामन रूप धारण बलि से तीन पग भूमि दान में मांगी और दो पग में धरती और आकाश को नाप लिया. तब मैंने बलि से पूछा कि तीसरा पग कहां रखूं? तो उसने स्वयं को मेरे सामने प्रस्तुति कर दिया. मेरे पैर रखने से वह पाताल में चला गया. उसकी इस भक्ति को देखकर मैंने उसके साथ रहने का वरदान दिया. बलि के पुत्र विरोचन के कहने पर भाद्रपद शुक्ल एकादशी के दिन बलि के आश्रम पर मेरी मूर्ति स्थापित की गई. इसके बाद भगवान श्रीकृष्ण ने कहा कि जो भी व्यक्ति इस एकादशी पर व्रत करता है, वह सब पापों से मुक्त होकर स्वर्ग में जाता है और जो ये कथा सुनता है उसे अश्वमेध यज्ञ का फल प्राप्त होता है.