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Special: बाल स्वयंसेवकों की अनूठी पहल...ईको ब्रिक्स से पॉलीथिन मुक्त बनाएंगे शहर

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Published : Nov 24, 2020, 7:29 PM IST

तमाम पाबंदी के बावजूद पॉलीथिन का इस्तेमाल पूरी तरह बंद नहीं हुआ है, जबकि प्लास्टिक का कचरा ना केवल पर्यावरण बल्कि पारिस्थतिकी तंत्र को भी नुकसान पहुंचा रहा है. ऐसे में RSS के पर्यावरण प्रकोष्ठ ने प्लास्टिक कचरे के निस्तारण का एक नायाब तरीका निकाला है. इसे अब ईको-ब्रिक्स में तब्दील कर निर्माण कार्यों में इस्तेमाल किया जा रहा है. पढ़ें पूरी खबर...

Jaipur will be polythene free,  RSS Eco Bricks Campaign
अब पॉलीथिन फ्री होगा शहर

जयपुर. राजस्थान के गांवों और शहरों को प्लास्टिक के जहर से बचाने के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पर्यावरण प्रकोष्ठ ने एक अनूठा अभियान शुरू किया है. इस अभियान के तहत RSS के बाल स्वयंसेवको के साथ युवाओं ने जल-जमीन-जनता को बचाने का बीड़ा उठाया है. इसके लिए सिंगल यूज पॉलिथिन और वेस्ट प्लास्टिक की बोतल से ईको ब्रिक्स का निर्माण किया जा रहा है.

अब पॉलीथिन फ्री होगा शहर

गली-कॉलोनियों में बिखरे प्लास्टिक के कचरे और वेस्ट पॉलिथीन को खाती गौमाता की तस्वीरें अक्सर हमें दिखाई पड़ती है. इसके कारण हमारा शहर भी खराब दिखता है और गायों की प्लास्टिक खाने से मौत भी हो जाती है. इसके अलावा पर्यावरण पर भी इसका घातक प्रभाव पड़ता है. ऐसे में प्लास्टिक की समस्या दिन-प्रतिदिन गंभीर होती जा रही है और इसको डी-कम्पोज होने में हजारों साल का समय लगता है. लेकिन अब इस कचरे से निजात पाने के लिए RSS (राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ) ईको ब्रिक्स तैयार कर रहा है.

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बाल स्वयंसेवक रोज बनाते हैं ईको ब्रिक्स

पर्यावरण और पशुओं के साथ-साथ हमारे लिए भी प्लास्टिक बड़ा खतरा है. इससे बचने का पहला कदम इसे उपयोगी बनाना है. इसके लिए RSS के बाल स्वयंसेवक अपनी पढ़ाई से एक घंटे का समय निकालकर रोजाना ईको ब्रिक्स के निर्माण में जुट जाते हैं. जहां बिना लागत और कुछ ही समय में ईको ब्रिक्स बनाकर तैयार हो जाता है. बाल स्वयंसेवक सिंगल यूज प्लास्टिक थैलियों को एक प्लास्टिक की बोतल में ठूंस-ठूंस कर भरते हैं, जिससे इसमें खाली जगह नहीं रहे और फिर इसे कुछ दिन रखा जाता है, जिसके बाद पूरी तरह से सूख कर ईको ब्रिक्स तैयार हो जाता है.

रोजगार से लेकर निर्माण में उपयोगी ईको ब्रिक्स

लोगों को किया जा रहा जागरूक

इस मुहिम से लोगों को भी जागरूक किया जा रहा है, जिसके बाद कई धार्मिक संस्थान, एनजीओ और नारी शक्ति संगठन भी इससे जुड़ चुके हैं. आगामी दिनों में इस पहल का दायरा और बढ़ेगा. पर्यावरण गतिविधि के संयोजक अशोक शर्मा कहते हैं कि जब लोगों को पता चलेगा कि कचरा सोना है तो निश्चित रूप से वो इस कार्य को प्रारंभ करेंगे.

पर्यावरण संरक्षण संभव...

अशोक शर्मा का कहना है कि लोगों को यदि लगेगा कि इसके माध्यम से आर्थिक आमदनी होगी तो कोई भी व्यक्ति इस काम को करेगा. इसके लिए समाज में जनजागरण की आवश्यकता है, जिसके बाद लोग कचरे को फेकेंगे भी नहीं और बदले में उनको रुपये भी मिलेंगे. ऐसे में पर्यावरण को बचाने की इस मुहिम में पर्यावरण प्रेमी साथ दें तो पर्यावरण संरक्षण संभव है.

ईको ब्रिक्स बनाते बाल स्वंयसेवक

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प्लास्टिक के कचरे के खिलाफ लड़ने में ईको ब्रिक्स तकनीक काफी मददगार साबित हो रही है. इस तकनीक का उपयोग कर पर्यावरण को फायदा पहुंचाया जा सकता है. साथ ही जल-जमीन-जनता को बचाने का भी काम हो रहा है, ऐसे में हम सब इस मुहिम से जुड़कर अपनी भागीदारी निभा सकते हैं.

ईको ब्रिक्स का उपयोग

200 वर्ग गज धरती को बचाएगी एक ईको ब्रिक्स

ईको ब्रिक बनाने के लिए 2 लीटर की बोतल में 700 ग्राम पॉलीथिन को भरा जा सकता है, जबकि एक लीटर की बोतल में 350 ग्राम पॉलीथिन भरा जा रहा है. 700 ग्राम पॉलीथिन से करीब 200 वर्ग गज धरती प्रदूषित होती है. इस तरह ईको ब्रिक 200 वर्ग गज धरती को भी प्रदूषित होने से बचाएगी. इससे गाय समेत कई जानवर बच जाएंगे.

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