जयपुर. ईटीवी भारत के पास एक बार फिर से जयपुर पुलिस के एक नए कारनामे का चिट्ठा हाथ लगा है. जयपुर पुलिस कमिश्नरेट के चारों जिलों ईस्ट, वेस्ट, नॉर्थ और साउथ के 65 थानों में आज तक जितने भी प्रकरण दर्ज किए गए या जितने भी आरोपी गिरफ्तार किए गए, उस पर होने वाले खर्चे को लेकर किसी भी थाने द्वारा इन्वेस्टिगेशन फंड से 1 रुपया भी नहीं उठाया गया.
जयपुर पुलिस ने नहीं लिया खर्च जयपुर पुलिस कमिश्नरेट के चारों जिलों से आरटीआई के तहत मांगी गई सूचना में इस बात का खुलासा हुआ है. आरटीआई एक्टिविस्ट राकेश सोगानी द्वारा जब सूचना के अधिकार के तहत कमिश्नरेट के चारों जिलों से सूचना मांगी गई, तो उन्हें यही जवाब मिला कि आज तक जयपुर पुलिस कमिश्नरेट के किसी भी थाने के द्वारा इन्वेस्टिगेशन फंड से अनुसंधान या प्रकरण की जांच के लिए कोई राशि नहीं ली गई है.
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आरटीआई एक्टिविस्ट राकेश सोगानी ने ईटीवी भारत से खास बातचीत के दौरान बताया कि उन्होंने कोतवाली थाने में एक एफआईआर दर्ज करवाई थी. जिसका अनुसंधान करने वाले अधिकारी ने केस डायरी में प्रकरण को लेकर कोटा, बारां और विभिन्न शहरों में जाने की बात लिखी. जिसे लेकर राकेश सोगानी द्वारा जब अनुसंधान अधिकारी से दूसरे शहर में जाने पर किए गए खर्चे और इन्वेस्टिगेशन फंड से ली गई राशि के बारे में पूछा गया, तो उन्होंने अन्वेषण फंड से कोई भी राशि लेने से इनकार कर दिया. उसके बाद राकेश सोगानी द्वारा जयपुर पुलिस कमिश्नरेट के तमाम 65 स्थानों से अनुसंधान फंड से ली गई राशि के बारे में जानकारी आरटीआई के तहत मांगी गई. सभी जगहों से आरटीआई का एक ही चौकाने वाला जवाब मिला कि किसी भी थाने द्वारा या अनुसंधान अधिकारी द्वारा इन्वेस्टिगेशन फंड से कोई भी राशि नहीं ली गई है.
आखिर किस के खर्चे पर पुलिस कर रही अनुसंधान
जयपुर पुलिस द्वारा खुद ही यह स्वीकारा गया है कि वह अनुसंधान फंड से किसी भी तरह की राशि नहीं ले रही है, तो फिर जयपुर पुलिस द्वारा जितने भी प्रकरणों में अनुसंधान किया जा रहा है उसका खर्चा आखिर कौन उठा रहा है. पूर्व में जयपुर पुलिस कमिश्नरेट के तत्कालीन एडिशनल पुलिस कमिश्नर क्राइम संतोष चालके ने एक आदेश भी निकाला था. जिसमें उन्होंने यह लिखा था की उन्हें यह बात पता चली है कि अनुसंधान अधिकारी द्वारा परिवादी या पीड़ित का वाहन और उसके संसाधनों का उपयोग अनुसंधान में किया जा रहा है. जिसके चलते परिवादी या पीड़ित को शिकायत करने का मौका मिलता है और पुलिस की छवि पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है. जिसको लेकर निर्देश दिए गए है कि किसी भी अनुसंधान अधिकारी द्वारा परिवादी या पीड़ित के वाहन और अन्य संसाधनों का प्रयोग अनुसंधान में नहीं किया जाए और अनुसंधान में जो भी खर्चा हो उसका बिल इन्वेस्टिगेशन फंड से पारित करवाया जाए.
आदेश जारी होने के बाद भी आज तक किसी भी अनुसंधान अधिकारी द्वारा इन्वेस्टिगेशन फंड से अनुसंधान में होने वाले खर्चों का कोई भी बिल पारित नहीं करवाया गया है. अब यहां पर यह बड़ा सवाल खड़ा होता है कि यदि पुलिस परिवादी या पीड़ित से ही सारे खर्चे ले रही है तो फिर अनुसंधान का स्तर किस प्रकार का होगा.
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खर्चा देने वालों के पक्ष में होता है काम
आरटीआई एक्टिविस्ट राकेश सोगानी ने बताया कि कोतवाली थाने में उन्होंने जो एफआईआर दर्ज कराई थी. उसमें अनुसंधान अधिकारी द्वारा अनेक शहरों में जाने की बात कही गई है, लेकिन अनुसंधान अधिकारी किसी भी जगह जाकर नहीं आया है. इसकी पुष्टि इस बात से ही हो जाती है कि इन्वेस्टिगेशन फंड से कोई भी राशि अनुसंधान अधिकारी द्वारा नहीं ली गई. इसके साथ ही राकेश सोगानी का कहना है कि यदि कोई व्यक्ति पुलिस को खर्चा देता है, तभी उसके प्रकरण में अनुसंधान किया जाता है और साथ ही उसके पक्ष में भी अनुसंधान रहता है. वहीं यदि कोई व्यक्ति खर्चा नहीं देता है तो फिर महज कागजों में अनुसंधान की खानापूर्ति कर एफआर लगा दी जाती है.