जयपुर. शहर वासियों को दीपावली से पहले वानिकी परियोजना किशनबाग की सौगात मिलेगी. इस परियोजना के विकसित होने के बाद क्षेत्र अतिक्रमण से भी बचेगा. साथ ही जयपुर के धोरों में पर्यटन व्यवसाय भी खिलेगा. रेगिस्तानी थीम पर आधारित इस पार्क में रेतीले टीबे, चट्टानें, जीव जंतु, रेगिस्तानी वनस्पति देखी जा सकेंगी.
दीपावली से पहले सीएम इस परियोजना को आम जनता को सुपुर्द करेंगे. विद्याधर नगर में स्थित स्वर्ण जयंती गार्डन के पास किशनबाग गांव में नाहरगढ़ की तलहटी में प्राकृतिक रूप से बने रेत की टीबों के रूप में अनुपयोगी पड़ी जेडीए की जमीन पर किशन बाग जयपुर के धोरें विकसित किया गया है. ये जगह तीन तरफ से कच्ची बस्तियों से घिरी होने के कारण अतिक्रमण होती जा रही थी. लेकिन जेडीए ने 64.30 हेक्टेयर क्षेत्रफल में यहां की जलवायु और मिट्टी के अनुसार प्राकृतिक रेगिस्तानी थीम पर किशन बाग वानिकी परियोजना विकसित की है. दीपावली से पहले सीएम अशोक गहलोत किशनबाग को आम जनता और सैलानियों के लिए शुरू करेंगे.
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परियोजना को विकसित करने का मुख्य उद्देश्य नाहरगढ़ के मौजूद रेतीले टीलों को स्थाई कर वहां पाये जाने वाले जीव जन्तुओं के प्राकृतिक आवास को सुरक्षित कर संधारित करना है. साथ ही रेगिस्तान में प्राकृतिक रूप से पनपने वाली वनस्पती की प्रजातियों को विकसित कर जयपुर में एक रेगिस्तान क्षेत्र का स्वरूप विकसित कर संधारित करना है.
परियोजना पर लगभग 11.41 करोड़ रुपए खर्च
राजस्थान में पाये जाने वाले विभिन्न प्रकार के बलुआ चट्टानों के बनने के बारे में जानकारी और राजस्थान की विषम परिस्थितियों (बलुआ-ग्रेनाईट की चट्टानों और आद्र भूमि) में उगने वाले पौधों को मौके पर माइक्रो क्लस्टर के रूप में विकसित कर लोगों में वैज्ञानिक शैक्षिक अभिरूचि पैदा करना है. इस परियोजना पर लगभग 11.41 करोड़ रुपए खर्च किए गए है.
परियोजना क्षेत्र की फेंसिंग, पार्किंग, नर्सरी, प्रवेशप्लाजा मय टिकिट घर, आगंतुक केन्द्र मय शौचालय, ग्रेनाइट हैबिटेट्स, धोक हैबिटेट्स, रॉक एण्ड फोसिल्स कलस्टर रोई हैबिटेट्स / एक्जिबिट, माईक्रो हैबिटेट्स आर्द्रभूमि वृक्षारोपण, व्यूइंगडैक, वॉटरबॉडी मय जेटी तैयार की गई है.
7 हजार प्रजाति की घास लगाई
विकसित किये जाने वाले क्षेत्र में विभिन्न रेगिस्तानी प्रजातियों के लगभग 7 हजार प्रजाति की घास लगाई गई है. जिसमें खैर, रोंज, कुमठा, अकोल, धोंक, खेजड़ी, इंद्रोक, हिंगोट, ढाक, कैर, गूंदा, लसोडा, बर्ना, गूलर, फाल्सा, रोहिडा, दूधी, खेजड़ी, चूरैल, पीपल, जाल, अडूसा, बुई वज्रदंती,आंवल, थोर, फोग, सिनाय, खींप, फ्रास प्रजाति के पेड़-पौधे और लापडा, लाम्प, धामण, चिंकी, मकडो, डाब, करड, सेवण शामिल है.
शनिवार को यूडीएच मंत्री शांति धारीवाल ,यूडीएच सचिव कुंजी लाल मीणा, जेडीसी गौरव गोयल परियोजना का निरीक्षण करने पहुंचे. इस दौरान धारीवाल ने बताया कि किशन बाग परियोजना पूरे भारत में रेतीले टीबों में विकसित विशिष्ट और अकेला बाग है. यहां परियोजना के बारे में आगंतुकों को सहज-सरल भाषा में जानकारी देने और आकर्षित करने के लिए फोटो सहेत साइनेज का लगाए गए हैं. ताकि आगंतुक इस बाग की विशेषताओं को समझ सके. किशन बाग में रेगिस्तानी रेत का प्रमुख घटक सिलिका से बनी ऐतिहासिक चट्टान और खनिजों का भी प्रदर्शन किया गया है.
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यहां प्रागैतिहासिक जीवों के जीवाश्मों की भी जानकारी साझा की गई है. वहीं थार के सबसे महत्वपूर्ण झाड़ीदार निवास स्थान रूही (Rohee) का भी वर्णन किया गया है. यूडीएच मंत्री धारीवाल ने बताया कि इस परियोजना से जयपुर आने वाले वैज्ञानिक और शैक्षिक अभिरूचि के पर्यटकों को रेत से बनी राजस्थान के विभिन्न क्षेत्रों में पाये जाने वाली चट्टानों के बारे में जानकारी, इन चट्टानों, रेत के टीबो और आद्र भूमि की विषम परिस्थिति में उगने वाले पौधों के बारे में जानकारी एक ही स्थान पर प्राप्त हो सकेगी. इससे पर्यटन व्यवसाय भी फलेगा. वहीं क्षेत्र में फैला अतिक्रमण भी रुकेगा और डंपिंग यार्ड की अव्यवस्था को भी निगम के माध्यम से बेहतर किया जाएगा.
कच्ची बस्ती देखने में हर्ज क्या है: यूडीएच मंत्री धारीवाल
क्षेत्र में बनी कच्ची बस्ती को लेकर धारीवाल ने तर्क दिया कि देश में किस जगह कच्ची बस्ती नहीं है, यहां आकर लोग कच्ची बस्ती देखेंगे तो उस में हर्ज क्या है. जेडीसी गौरव गोयल ने बताया कि 250 बीघा में बने किशनबाग एक एजुकेशन प्वाइंट बनेगा. जेडीए द्वारा स्कूल-कॉलेज के छात्रों के विजिट के लिए इनवाइट किया जाएगा. इसका एक नॉमिनल चार्ज भी रखा जाएगा. साथ ही इसके इंटरनेशनल लेवल पर प्रचार-प्रसार करने की भी व्यवस्था की जा रही है. फिलहाल इस परियोजना के 3 साल के ऑपरेशन और मैनेजमेंट का काम राव जोधा सोसाइटी को सौंपा गया है.
आपको बता दें कि किशनबाग को स्थानीय ग्रामीण वास्तुकला और थार रेगिस्तान की निर्मित धरोहरों को बनाने के लिए डिजाइन किया गया है. परियोजना के कुल क्षेत्रफल 64.30 हेक्टेयर में से 30 हेक्टेयर जमीन नाहरगढ अभ्यारण सीमा में आने के कारण परियोजना को विकसित करने के लिए वन विभाग से स्वीकृति प्राप्त की गई.