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Published : May 18, 2022, 8:43 PM IST

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भारतीय जैविक किसान उत्पादक संघ की राजस्थान को जैविक प्रदेश बनाने की मांग, राज्यपाल को दिए सुझाव

भारतीय जैविक किसान उत्पादक संघ ने राजस्थान को जैविक प्रदेश बनाने की मांग (demanded to make Rajasthan an organic state) को लेकर बुधवार को राज्यपाल कलराज मिश्र को ज्ञापन दिया है. किसान उत्पादक संघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. अतुल गुप्ता ने जैविक प्रदेश बनाने के संबंधमें सुझाव दिए.

demanded to make Rajasthan an organic state
राज्यपाल कलराज मिश्र को ज्ञापन देते भारतीय जैविक किसान उत्पादक संघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ अतुल गुप्ता

जयपुर. भारतीय जैविक किसान उत्पादक संघ ने राजस्थान को जैविक प्रदेश बनाने की मांग (demanded to make Rajasthan an organic state) की है. इस संबंध में बुधवार को संघ ने राज्यपाल कलराज मिश्र को ज्ञापन भी दिया है. भारतीय जैविक किसान उत्पादक संघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. अतुल गुप्ता के नेतृत्व में संघ के प्रतिनिधि मंडल ने राज्यपाल को राजस्थान को जैविक प्रदेश बनाने के संबंधमें सुझाव दिए.

डॉ. अतुल गुप्ता ने बताया कि भारतीय जैविक किसान उत्पादक संघ देश में रासायनिक खेती को पूरी तरह से बंद करने और जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए राजस्थान सहित अन्य राज्यों के किसानों का मार्गदर्शन कर रहा है. प्रदेश में जैविक कृषि नीति लागू होनी चाहिए, क्योंकि राजस्थान में देश की 11 फीसदी कृषि योग्य भूमि है. राज्य में 50 प्रतिशत सकल सिंचित क्षेत्र है, जबकि 30 फीसदी शुद्ध सिंचित क्षेत्र है. इस तरह प्रदेश में कुल 177.78 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल में खेती की जाती है. राजस्थान में कृषि जोत का औसत आकार 3.07 हेक्टयर है. कृषि जोत के आधार पर राजस्थान के देश में चौथे स्थान पर है. उन्होंने कहा कि संघ 2030 तक प्रदेश को पूर्ण जैविक राज्य बनाने की दिशा में काम कर रहा है. जैविक खेती को बढ़ाने के लिए राज्य सरकार ने वर्ष 2017 में जैविक कृषि नीति जारी की, लेकिन इसका वास्तविक रूप अभी तक धरातल पर देखने के नहीं मिला है.

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सीएम गहलोत ने कृषि बजट में जैवित खेती मिशन की घोषणा की: अतुल गुप्ता ने कहा कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने अपने पहले कृषि बजट में जैविक खेती मिशन की घोषणा की है और इसके लिए 3 लाख 80 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में जैविक खेती विस्तार का लक्ष्य रखा है. अगले 3 सालों में 4 लाख किसानों को जैविक बीज, जैव उर्वरक एवं कीटनाशक उपलब्ध कराने के लिए 600 करोड़ रुपये खर्च किये जायेंगे. संगठन का मानना है कि राज्य सरकार के ये प्रयास ऊंट के मुंह में जीरे के समान हैं. क्योंकि इस तरह से पूरे प्रदेश को जैविक राज्य बनाने में काफी समय लगेगा. ऐसे में सरकारी व गैर सरकारी स्तर पर प्रयासों की जरूरत है.

भारतीय जैविक किसान उत्पादक संघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. अतुल गुप्ता

जैविक खेती से किसानों की आय में व्यापक स्तर पर बढ़ोतरी संभव: डॉ. अतुल गुप्ता ने कहा कि देश में जीरो बजट खेती से ही किसानों की आय में व्यापक स्तर पर बढ़ोतरी संभव है. 1950-1951 से 2019-2020 में प्रति व्यक्ति खेती योग्य भूमि लगभग पांच गुना कम हो गई है और जनसंख्या 33 करोड़ से बढ़कर 133 करोड़ हो गयी है. किसान खेती में अपने कुल पूंजी का करीब 45 प्रतिशत से अधिक खर्च उर्वरक पर करता है. यदि प्रति हेक्टेयर उर्वरक उपयोग की बात करें तो 1950-51 में 490 ग्राम था, जो आज बढ़कर 130 किलोग्राम हो गया है. किसान सबसे ज्यादा उर्वरकों में यूरिया, डीएपी, एमओपी, एनपीके एसएसपी, जिंक सल्फेट, कॉपर सल्फेट आदि का प्रयोग करता हैं.

कीटनाशकों के दोहन से भूमि की उर्वरा शक्ति कम हुई: उन्होंने कहा कि रासायनिक खाद व कीटनाशकों के दोहन से भूमि की उर्वरा शक्ति खत्म हो रही है. इसे बढ़ाने की जरूरत है जैविक खाद व कम्पोस्ट खाद का अधिकाधिक उपयोग हो. इसके लिए जरूरी है गौवंश का बड़े स्तर पर पालन हो. प्रदेश में गौवंश की दुर्दशा में व्यापक स्तर पर सुधार कर पशुपालन व्यवसाय को बढ़ावा देने की जरूरत है. दूध उत्पादन में राजस्थान देशभर में अव्वल राज्यों की श्रेणी में है, लेकिन गोमाता के गोबर व गोमूत्र से निर्मित होने वाली जैविक व कम्पोस्ट खाद बनाने व बेचने के लिए पशुपालकों का रूझान कम है. यदि राज्य सरकार जैविक खाद व कम्पोस्ट खाद का निर्माण करने वाले किसानों और पशुपालकों को प्रोत्साहित करें तो इससे न केवल उनकी आर्थिक स्थिति सुदृढ़ होगी. बल्कि उनके ओर से जैविक खेती के जरिए उत्पादित किए गए ऑर्गेनिक फल-सब्जियां, दालें, खाद्यान्न आमजन को सस्ते में उपलब्ध होंगे. ऐसे में कीटनाशक खाद्य पदार्थों का उपभोग करने से होने वाली गंभीर बीमारियों के उपचार पर होने वाले भारी भरकम खर्च से बचा जा सकेगा.

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60 व 70 के दशक में उर्वरकों के कारखाने लगाए गए: डॉ. अतुल गुप्ता ने कहा कि जिस प्रकार रासायनिक खेती को बढ़ावा देने के लिए 60 व 70 के दशक में उर्वरकों के कारखाने लगाए गए और गांव गांव तक पहुंचाने के लिए किसान सहकारी समितियां बनाई गई. राष्ट्रीय स्तर पर इफको, कृभको जैसी संस्थाएँ बनाई गई, इसी प्रकार के प्रयास आज जैविक खेती के उत्थान के लिए आवश्यक हैं. आज किसान जैविक अपनाने को तैयार है किन्तु उसे अच्छी गुणवत्ता वाली खाद, जीवाणु खाद, जैविक कीटनाशक ग्राम स्तर पर उपलब्ध नहीं है. फसलों की ऐसी किस्में उपलब्ध नहीं है, जो जैविक खाद से अच्छा उत्पादन दे सकें. इसके लिए प्रत्येक गांव या तहसील स्तर पर जैविक खाद खासकर अच्छी गुणवत्ता वाली जीवाणु खाद व जैविक कीटनाशकों की उपलब्धता बढ़ाने के लिए सहकारी तंत्र बनाने क प्रयास व सुविधा देनी चाहिए.

16 अरब सब्सिडी दी जाती है: डॉ. अतुल गुप्ता ने कहा कि देश में रासायनिक उर्वरकों पर प्रतिवर्ष 16 अरब रुपये की सब्सिडी दी जाती है. कीटनाशक, ट्रैक्टर आदि की सब्सिडी पर करोड़ो रुपये खर्च हो रहे हैं. इसी प्रकार की सब्सिडी जैविक खेती के लिए भी आवश्यक है. उन्होंने बताया कि जैविक उत्पादों के प्रमाणीकरण पर काफी लागत आती है और बिना प्रमाणीकरण के उपभोक्ता जैविक उत्पाद होने का विश्वास भी नहीं कर पाता है. अत: जैविक उत्पादों की विक्रय को सुनिश्चित करने के लिए सहकारी विपणन व्यवस्था व भारतीय खाद्य निगम से जैविक खाद्यान्न खरीदने के लिए विशेष प्रावधान होने चाहिए.

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यूरोपीय देशों ने हमारे खद्यान को बैन किया: उन्होंने बताया कि हमारे देश के खाद्यान्न को जब निर्यात किया जाता है तो उससे डालरों में राजस्व प्राप्त होता है. लेकिन कई यूरोपीय देशों ने हमारे खाद्यान्न को बैन कर दिया है, क्योंकि हमारे खाद्यान्न में कीटनाशकों का उपयोग अधिक किया जाता है. कीटनाशकों से होने वाली बीमारियों पर होने वाले पैसों को भी जैविक खेती से के जरिए रोका जा सकता है. क्योंकि जैविक खेती से आदमी गंभीर बीमारियों से ग्रसित नहीं होता है. जैविक खेती के जरिए किसानों की आय को भी बढ़ाया जा सकता है. जैविक खेती के उत्पाद सामान्य से दो से 3 गुना मूल्य में बिकता है. अतुल गुप्ता ने कहा की रासायनिक खेती का असर महिलाओं पर भी पड़ रहा है. क्योंकि खेती का अधिकतर कार्य महिलाएं करती है. संघ की पदाधिकारी संगीता गौड़ ने कहा कि रासायनिक खेती से महिलाओं को फर्टिलिटी और कैंसर जैसी बीमारियां हो रही है और हम इसके रोकथाम के प्रयास कर रहे हैं और प्रदेश को जैविक प्रदेश बनाने की मांग कर रहे है.

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