जयपुर.नाहरगढ़ अभयारण्य क्षेत्र में गढ़ गणेश मंदिर की तलहटी में प्राचीन नहर के गणेश मंदिर मौजूद है. तंत्र साधना करने वाले ब्रह्मचारी बाबा के किए गए यज्ञ की भस्म से भगवान गणेश का ये विग्रह व्यास राम चंद्र ऋग्वेदी ने प्राण प्रतिष्ठित किया था. उन्हीं की पांचवीं पीढ़ी आज भी यहां पूजा-आराधना कर रही है. खास बात ये है कि यहां दाहिनी तरफ सूंड और दक्षिणा विमुख भगवान गणेश पूजे जाते हैं. इस संबंध में मंदिर महंत जय कुमार शर्मा ने ईटीवी भारत को बताया कि वामावर्ती सूंड वाले गणेश जी को संकष्ट नाशक माना जाता है. जबकि दक्षिणावर्ती सूंड वाले गणेश जी को सिद्धिविनायक माना जाता है (nahar temple of Ganesh).
घरों में वामावर्ती सूंड वाले गणेश पूजे जाते हैं. इस पर जय कुमार ने बताया कि घरों में जन्म-मरण-परण चलता रहता है. उस दौरान भगवान गणेश की नियमित पूजा-पाठ नहीं हो पाती. उपासक को दोष न लगे, इसलिए घरों में वामावर्ती सूंड वाले गणेश जी की पूजा की जाती है (Ganesh Idol made of ashes). चूंकि दक्षिणावर्ती सूंड वाले गणेश जी तंत्र विद्या में पूजे जाते हैं, ऐसे में इनकी नियम और संयम से पूजा अर्चना करना जरूरी है.
वहीं मंदिर का नाम नहर के गणेश मंदिर होने के संबंध में जानकारी देते हुए महंत जय कुमार ने बताया कि जयपुर में अधिकतर मंदिरों का नाम उच्चारण क्षेत्रीय विशेषता के आधार पर किया जाता है. जिस तरह गढ़ के रूप में भगवान गढ़ गणेश को विराजमान किया गया, पहाड़ी से घिरा हुआ खोला होने की वजह से खोले के हनुमान जी हैं तो यहां मंदिर के नीचे वर्षा काल के अंदर पहाड़ी क्षेत्र से वृहद पानी आया करता था. इसकी नहर महीनों तक चलती थी. इसी नहर के चलते भगवान गणेश के इस धाम को नहर के गणेश जी कहा गया.