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भस्म से तैयार विग्रह की होती है यहां पूजा, कहलाते हैं नहर के गणेश जी

छोटीकाशी में एक गणेश मंदिर ऐसा भी है, जहां तंत्र विद्या में पूजे जाने वाले दक्षिणावर्ती सूंड और दक्षिणाविमुख भगवान गणेश के विग्रह की उपासना होती है. भगवान गणेश का ये विग्रह यज्ञों में दी गई आहुति की भस्म से बना है. चूंकि वर्षा काल में यहां मंदिर के नीचे से पानी की नहर बहती थी, इसकी वजह से ये नहर के गणेश जी कहलाए.

nahar temple of Ganesh
भस्म से तैयार गजानन

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Published : Aug 30, 2022, 1:12 PM IST

जयपुर.नाहरगढ़ अभयारण्य क्षेत्र में गढ़ गणेश मंदिर की तलहटी में प्राचीन नहर के गणेश मंदिर मौजूद है. तंत्र साधना करने वाले ब्रह्मचारी बाबा के किए गए यज्ञ की भस्म से भगवान गणेश का ये विग्रह व्यास राम चंद्र ऋग्वेदी ने प्राण प्रतिष्ठित किया था. उन्हीं की पांचवीं पीढ़ी आज भी यहां पूजा-आराधना कर रही है. खास बात ये है कि यहां दाहिनी तरफ सूंड और दक्षिणा विमुख भगवान गणेश पूजे जाते हैं. इस संबंध में मंदिर महंत जय कुमार शर्मा ने ईटीवी भारत को बताया कि वामावर्ती सूंड वाले गणेश जी को संकष्ट नाशक माना जाता है. जबकि दक्षिणावर्ती सूंड वाले गणेश जी को सिद्धिविनायक माना जाता है (nahar temple of Ganesh).

घरों में वामावर्ती सूंड वाले गणेश पूजे जाते हैं. इस पर जय कुमार ने बताया कि घरों में जन्म-मरण-परण चलता रहता है. उस दौरान भगवान गणेश की नियमित पूजा-पाठ नहीं हो पाती. उपासक को दोष न लगे, इसलिए घरों में वामावर्ती सूंड वाले गणेश जी की पूजा की जाती है (Ganesh Idol made of ashes). चूंकि दक्षिणावर्ती सूंड वाले गणेश जी तंत्र विद्या में पूजे जाते हैं, ऐसे में इनकी नियम और संयम से पूजा अर्चना करना जरूरी है.

आहुति की भस्म से बने गजानन

वहीं मंदिर का नाम नहर के गणेश मंदिर होने के संबंध में जानकारी देते हुए महंत जय कुमार ने बताया कि जयपुर में अधिकतर मंदिरों का नाम उच्चारण क्षेत्रीय विशेषता के आधार पर किया जाता है. जिस तरह गढ़ के रूप में भगवान गढ़ गणेश को विराजमान किया गया, पहाड़ी से घिरा हुआ खोला होने की वजह से खोले के हनुमान जी हैं तो यहां मंदिर के नीचे वर्षा काल के अंदर पहाड़ी क्षेत्र से वृहद पानी आया करता था. इसकी नहर महीनों तक चलती थी. इसी नहर के चलते भगवान गणेश के इस धाम को नहर के गणेश जी कहा गया.

महंत जय कुमार ने बताया कि दरअसल, दक्षिणावर्ती सूंड वाले गणेश जी की प्रतिमा तंत्र विधान के लिए होती है. ब्रह्मचारी बाबा तंत्र गणेश जी के उपासक थे, और नियमित भगवान गणेश की प्रत्यक्ष आराधना करते थे. शास्त्रों में भगवान गणेश के प्राकट्य की कथा लिखी हुई है, जिसके अनुसार पार्वती माता ने अपने मैल से विनायक के विग्रह को बनाकर उसमें प्राण फूंके थे. आज भी मांगलिक कार्यों में मिट्टी से बने हुए गणेश जी ही स्थापित किए जाते हैं. उसी तरह ब्रह्मचारी बाबा ने यज्ञों में दी गई आहुति से तैयार हुई भस्म रूपी मिट्टी से भगवान गणेश का विग्रह तैयार किया.

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युवाचार्य पंडित मानव शर्मा ने बताया कि 2 साल बाद गणेश चतुर्थी का पर्व मनाया जा रहा है. इसे लेकर श्रद्धालुओं में उत्साह है. इसे देखते हुए व्यवस्थाएं चाक-चौबंद की गई हैं. मंदिर के बाहर श्रद्धालुओं की भीड़ को ध्यान में रखते हुए बैरिकेडिंग लगाई गई है. 125 स्वयंसेवक और करीब 30 सिक्योरिटी गार्ड तैनात किए गए हैं. सुरक्षा की दृष्टि से पुलिस प्रशासन के अलावा सीसीटीवी कैमरे भी इंस्टॉल किए गए हैं. उन्होंने बताया कि गणेश चतुर्थी का पर्व तिजारा महोत्सव से शुरू होगा. जिसमें सुबह मेहंदी वितरित की जाएगी और शाम को असंख्य लड्डूओं की झांकी सजाई जाएगी. वहीं इस दौरान भजनों का भी आयोजन रहेगा. गणेश चतुर्थी पर अभिजीत मुहूर्त में भगवान गणेश का अभिषेक किया जाएगा, और दिन भर धार्मिक अनुष्ठान चलेंगे.

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