जयपुर.दुनिया वर्ल्ड एनिमल डे मना रही है. आज के दिन हर कहीं जीव-जंतुओं के संरक्षण को लेकर लोग संकल्प ले रहे हैं तो कहीं चिंता जता रहे हैं. इस बीच जयपुर का झालाना रिजर्व पार्क एक मिसाल बनकर उभरा है. इस क्षेत्र में एक दशक पहले ना केवल जीवों का जीवन खतरे में पड़ गया था बल्कि वन्य संपदा विलुप्त होने की कगार पर थी. लेकिन बीते एक दशक में इस क्षेत्र में ऐतिहासिक बदलाव आया है. जीव-जंतुओं के संरक्षण और विकास को लेकर काफी काम हुआ है.
जयपुर का झालाना वन क्षेत्र ने राजस्थान ही नहीं बल्कि देशभर के वन्यजीव प्रेमियों की नजर में एक उदाहरण के रूप में जगह बनाई है. आजादी से पहले पूर्व महारानी स्वर्गीय गायत्री देवी (Queen Gaytri Devi) ने इस इलाके में मौजूद आखिरी बाघ का शिकार किया था. इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि वन्यजीवों के लिहाज से यह क्षेत्र किसी दौर में कितना समृद्ध रहा होगा. वर्तमान में झालाना जंगल के एक तरफ मालवीय नगर औद्योगिक क्षेत्र है.
दूसरी तरफ जगतपुरा जैसी आबादी वाला इलाका है. इस लिहाज से देखा जाए तो चुनौतीपूर्ण हालात में इस जंगल में ऐतिहासिक स्तर पर काम हुए हैं. यहां पर जंगली जीवों में सबसे ज्यादा बघेरे यानी कि लेपर्ड को संरक्षित किया गया है. साथ ही अब यहां पर प्रवासी पक्षियों, सरीसृप जीवों और अन्य जीव-जंतुओं ने फिर से आवास बनाकर क्षेत्र को आबाद करने का काम शुरू किया है. झालाना जंगल में लेपर्ड्स के साथ ही कई शाकाहारी जीव भी मौजूद हैं.
यह भी पढ़ें.विजय मंदिर गढ़ : बाणासुर की नगरी में 14 वर्ग KM तक फैला है यह ऐतिहासिक किला..फिर भी पर्यटकों की पहुंच से दूर
देश का पहला लेपर्ड सफारी झालाना लेपर्ड रिजर्व पर्यटकों के लिए खासा आकर्षण का केंद्र बना हुआ है. जयपुर का झालाना लेपर्ड रिजर्व देश ही नहीं बल्कि विदेशों में भी अपनी पहचान बना चुका है. यहां पर आम पर्यटकों के अलावा बड़ी सेलिब्रिटी और वाइल्ड लाइफ भी पहुंचते हैं. झालाना लेपर्ड रिजर्व वन्यजीवों से गुलजार हो रहा है. झालाना जंगल में बघेरों का कुनबा बढ़ रहा है.
तीन साल पहले शुरू हुआ काम
झालाना के क्षेत्रीय वन अधिकारी जनेश्वर चौधरी ने बताया कि 3 साल पहले झालाना लेपर्ड रिजर्व को बघेरों के आवास के रूप में विकसित करने और आदर्श पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने का काम शुरू किया गया था. झालाना के चारों तरफ 6 फीट ऊंची दीवार बनाई गई और वन्यजीवों के लिए पानी की व्यवस्था की गई. इसके साथ ही हेबिटाट इंप्रूवमेंट किया गया. झालाना जनरल से जूली फ्लोरा को हटाकर फलों के पौधे लगाए गए. झालाना में करीब 70 हेक्टेयर एरिया में ग्रास लैंड विकसित की गई. झालाना लेपर्ड के लिए उपयुक्त जंगल बन गया है. वर्ष 2018 में 20 लेपर्ड थे, लेकिन अब 43 लेपर्ड्स हो चुके हैं. झालाना के लेपर्ड दूसरे जंगलों में भी चले गए हैं.
उन्होंने बताया कि वन्यजीव सप्ताह चल रहा है. वन्य जीव सप्ताह और वर्ल्ड एनिमल डे के अवसर पर कई कार्यक्रम भी आयोजित किए गए हैं. बच्चों का प्रश्नोत्तरी प्रोग्राम और वन्यजीवों के प्रति जागरूकता कार्यक्रम भी आयोजित किए गए. जनेश्वर चौधरी ने बताया कि आजादी से पहले कानून व्यवस्था, जंगल और जंगली जीवों की सुरक्षा की जिम्मेदारी राज परिवारों के पास होती थी. राजाओं ने अपने जंगलों को रिजर्व घोषित किया हुआ था. उस जमाने में लोग राजपरिवार से परमिशन लेकर ही जंगल में शिकार करते थे.
झालाना में 1943 में आखिरी बार हुआ था टाइगर का शिकार
रेंजर जनेश्वर चौधरी ने बताया कि झालाना लेपर्ड रिजर्व में 1943 में आखिरी टाइगर का शिकार हुआ था. जयपुर की पूर्व महारानी गायत्री देवी ने आखरी टाइगर का शिकार झालाना में किया था. जिस टाइग्रेस का शिकार किया गया था, उसके 5 शावक थे, 5 में से दो शावक जीवित बचे थे. उनको जयपुर चिड़ियाघर के सुपुर्द कर दिया गया था. आजादी के बाद 1953 में फॉरेस्ट एक्ट बन गया था. 1972 में वाइल्ड लाइफ एक्ट बना. वन्यजीवों की सुरक्षा वन्यजीव अधिनियम 1972 बनने के बाद ही सुनिश्चित हो सकी. इसके बाद वन्यजीव का शिकार करना, वन्यजीवों के अंग रखना और बंदी बनाना प्रतिबंधित हो गया था.
साल 2021 में करीब 10 नए शावकों का हुआ जन्म