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स्पेशल: भोर बनारस, प्रयाग दोपहरी, शाम अवध और बुंदेलखंडी रात को समेटने वाली 'गुलाबी नगरी' हुई 292 साल की

ऐतिहासिक जयपुर नगरी आज यानि सोमवार (18 नवंबर) को 292 साल की हो गई है. रियासतों से शुरू हुआ इसका इतिहास आज मेट्रो और स्मार्ट सिटी में बदल चुका है, लेकिन फिर भी यहां आज भी वही किले, महल और रास्ते इसकी विरासत को समेटे हुए हैं. यही वजह है कि जयपुर की विरासत देश ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया में मशहूर है. चलिए राजधानी जयपुर के इस बदलाव की कहानी आपको रूबरू करवाते हैं...

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Published : Nov 18, 2019, 9:52 AM IST

Updated : Nov 18, 2019, 9:57 AM IST

जयपुर.'मैं जयपुर हूं, गुलाबी नगरी जयपुर. महाराजा सवाई जय सिंह द्वितीय ने आज ही के दिन 18 नवम्बर 1727 को मेरी नींव रखी थी. आज मैं 292 साल का हो गया हूं. फिर भी युवा नजर आता हूं. समय के साथ-साथ मुझमें बदलाव भी आते जा रहे हैं. आज न सिर्फ मुझे हैरिटेज सिटी के नाम से जाना जाता है, बल्कि अब मैं स्मार्ट और मेट्रो सिटी भी कहलाता हूं. लेकिन इस बदलाव के बाद भी मुझमें सैकड़ों दशक पुरानी विरासत बदस्तुर जवां है. यही वजह है कि मेरी विरासत को निहारने देशी-विदेशी पावणे यहां समंदर पार से खींचे चले आते हैं.'

मैं हूं 292 साल का युवा 'जयपुर'

मेरा डिजाइन बंगाल के वास्तुकार विद्याधर भट्टाचार्य से करवाया गया था, जिनकी योग्यता से प्रभावित होकर महाराजा जय सिंह ने उन्हें अपनी नई राजधानी का नगर नियोजक भी बनाया था. मेरी खासियत भी कुछ कम नहीं थी. मेरी संरचना में वर्षा जल-संचयन और बारिश के निकासी का विशेष तौर पर इंतजाम किया गया था, जो आज भी आधुनिक भारत के ज्यादातर शहरों में देखने को नहीं मिलता.

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मेरी शान है मेरा परकोटा, इतिहासकारों के अनुसार ज्योतिष विद्वान पंडित जगन्नाथ सम्राट और राजगुरु रत्नाकर पौंड्रिक ने सबसे पहले गंगापोल की नींव रखी. विद्याधर ने नौ ग्रहों के आधार पर शहर में नौ चौकड़ियां और सूर्य के सात घोड़ों पर सात दरवाजे युक्त परकोटा बनवाया. पूर्व से पश्चिम की ओर जाती सड़क पर पूर्व में सूरजपोल और पश्चिम में चंद्र पर चांदपोल बनाया गया. यही परकोटा आज पूरे विश्व ने जाना है. मुझे खुशी है कि इसे विश्व विरासत की सूची में जो शामिल किया गया है.

गुलाबी धौलपुरी पत्थरों से बना पेरिस

लोग मुझे भारत के पेरिस के रूप में भी जानते हैं. मैं तीन तरफ से अरावली के पहाड़ों से घिरा हुआ हूं. जो मेरी खूबसूरती में चार चांद लगाते हैं. परकोटे के साथ-साथ मेरी पहचान यहां के खूबसूरत ऐतिहासिक महल और पुराने घरों में लगे गुलाबी धौलपुरी पत्थर हैं. साल 1876 में यहां के महाराजा सवाई राम सिंह ने इंग्लैड की महारानी एलिजाबेथ और प्रिंस ऑफ वेल्स युवराज अल्बर्ट के स्वागत में मेरा गुलाबी रंग रोगन किया था. तभी से मुझे 'पिंक सिटी' के नाम से भी पुकारा जाने लगा.

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मेरे ऐतिहासिक मंदिरों का भी काफी महत्व है. मंदिरों की बहुतायत की वजह से ही मुझे ये नाम मिला है. मेरी स्थापना से पहले और बाद के कई प्राचीन मंदिर अब भी यहां मौजूद है. मेरे आराध्य गोविंद देव जी मंदिर हो या, नाहरगढ़ की पहाड़ियों से मुझ पर निगरानी रखने वाले गढ़ गणेश जी. यही नहीं कई प्राचीन मंदिर दक्षिण शैली में बने हैं, तो कई मंदिरों को बनवाने वाले के नाम से जाना जाता है. परकोटे की तीनों चौपड़ों पर तो तीन बड़े मंदिर एक ही शैली और समकोण पर बने हुए है.

समय के साथ बनता गया स्मार्ट

विरासत के बीच आज मैं प्रगति के पथ पर भी आगे बढ़ रहा हूं. आज मैं स्मार्ट सिटी भी हूं, तो मेरी सरजमीं पर चलने वाली मेट्रो ट्रेन, मल्टीनेशनल कंपनी, बड़े-बड़े मॉल्स और दौड़ भाग भरी जिंदगी के बीच आज में मेट्रो सिटी भी कहलाता हूं. पहले मैं परकोटे तक ही सीमिति था, लेकिन वक्त के साथ आज मेरी सीमा भी बढ़ती जा रही हैं. हालांकि मेरे कुछ बाशिंदों को मेरा ये नया रूप कुछ खास रास नहीं आता. वो तो मुझे आज भी उसी विरासत के अंदाज में देखना पसंद करते हैं.

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मेरे लिए ही कहा जाता रहा है कि भोर बनारस, प्रयाग दोपहरी, शाम अवध, बुंदेलखंडी रात. मैं एक नहीं दो नहीं बल्कि चार-चार शहरों को खूबी रखता हूं, लेकिन अब बेतहाशा आबादी और वाहनों की रेलमपेल में मेरा ये नजारा भी बीते दिन की बात बन चुका है. पुराने दिनों के स्वर्णिम काल की कई यादों को भी विकास के नाम पर उजाड़ दिया गया. खैर, मुझे संवारने के लिए अब दो नगर निगमों को जिम्मेदारी सौंपी जा रही है. मैं अब ग्रेटर जयपुर भी हूं और हेरिटेज जयपुर भी, लेकिन आप के लिए मैं आज भी आपका वहीं गुलाबी नगरी जयपुर ही हूं.

Last Updated : Nov 18, 2019, 9:57 AM IST

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