जयपुर.'मैं जयपुर हूं, गुलाबी नगरी जयपुर. महाराजा सवाई जय सिंह द्वितीय ने आज ही के दिन 18 नवम्बर 1727 को मेरी नींव रखी थी. आज मैं 292 साल का हो गया हूं. फिर भी युवा नजर आता हूं. समय के साथ-साथ मुझमें बदलाव भी आते जा रहे हैं. आज न सिर्फ मुझे हैरिटेज सिटी के नाम से जाना जाता है, बल्कि अब मैं स्मार्ट और मेट्रो सिटी भी कहलाता हूं. लेकिन इस बदलाव के बाद भी मुझमें सैकड़ों दशक पुरानी विरासत बदस्तुर जवां है. यही वजह है कि मेरी विरासत को निहारने देशी-विदेशी पावणे यहां समंदर पार से खींचे चले आते हैं.'
मेरा डिजाइन बंगाल के वास्तुकार विद्याधर भट्टाचार्य से करवाया गया था, जिनकी योग्यता से प्रभावित होकर महाराजा जय सिंह ने उन्हें अपनी नई राजधानी का नगर नियोजक भी बनाया था. मेरी खासियत भी कुछ कम नहीं थी. मेरी संरचना में वर्षा जल-संचयन और बारिश के निकासी का विशेष तौर पर इंतजाम किया गया था, जो आज भी आधुनिक भारत के ज्यादातर शहरों में देखने को नहीं मिलता.
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मेरी शान है मेरा परकोटा, इतिहासकारों के अनुसार ज्योतिष विद्वान पंडित जगन्नाथ सम्राट और राजगुरु रत्नाकर पौंड्रिक ने सबसे पहले गंगापोल की नींव रखी. विद्याधर ने नौ ग्रहों के आधार पर शहर में नौ चौकड़ियां और सूर्य के सात घोड़ों पर सात दरवाजे युक्त परकोटा बनवाया. पूर्व से पश्चिम की ओर जाती सड़क पर पूर्व में सूरजपोल और पश्चिम में चंद्र पर चांदपोल बनाया गया. यही परकोटा आज पूरे विश्व ने जाना है. मुझे खुशी है कि इसे विश्व विरासत की सूची में जो शामिल किया गया है.
गुलाबी धौलपुरी पत्थरों से बना पेरिस
लोग मुझे भारत के पेरिस के रूप में भी जानते हैं. मैं तीन तरफ से अरावली के पहाड़ों से घिरा हुआ हूं. जो मेरी खूबसूरती में चार चांद लगाते हैं. परकोटे के साथ-साथ मेरी पहचान यहां के खूबसूरत ऐतिहासिक महल और पुराने घरों में लगे गुलाबी धौलपुरी पत्थर हैं. साल 1876 में यहां के महाराजा सवाई राम सिंह ने इंग्लैड की महारानी एलिजाबेथ और प्रिंस ऑफ वेल्स युवराज अल्बर्ट के स्वागत में मेरा गुलाबी रंग रोगन किया था. तभी से मुझे 'पिंक सिटी' के नाम से भी पुकारा जाने लगा.