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गुलाबो सपेरा के संघर्ष की कहानी... जन्म लेते ही जमीन में जिंदा गाड़ दिया था, आज बन गईं मशहूर कालबेलिया डांसर - गुलाबो सपेरा की दर्दभरी दास्तां

दुनिया को कालबेलिया डांस से परिचित कराने वाली गुलाबो किसी परिचय की मोहताज नहीं हैं. गुलाबो का जन्म 9 नवंबर 1970 को शाम 7 बजे अजमेर के कोटडा ढाणी कालबेलिया बस्ती में हुआ था. गुलाबो का जीवन सांपों के साथ आंख-मिचौली करते ही बीता है.

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गुलाबो का कांटों भरा संघर्ष...

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Published : Dec 30, 2020, 5:01 PM IST

जयपुर.अतीत के झरोखे से मौत को मात देकर दुनिया को कालबेलिया डांस से परिचित कराने वाली गुलाबो किसी परिचय की मोहताज नहीं हैं. संघर्षों से भरा गुलाबो का जीवन मौत के मुहाने पर ही था कि पिता ने उन्हें नई जिंदगी की सौगात दी. जिस समाज ने उनके संघर्ष के रास्तों पर कांटे बिछाए, उसी समाज के लिए गुलाबो आज मान, सम्मान और अभिमान बनकर खड़ी हैं.

गुलाबो सपेरा की संघर्ष भरी दास्तां...

हम बात कर रहे हैं उस नृत्यांग्ना की, जिसको पिता ने गुलाब नाम दिया, सरकारी मुलाजिमों ने गुलाबी कहा और हरियाणा में जाकर वो गुलाबो सपेरा बन गईं. गुलाबो का समग्र जीवन आने वाली पीढ़ियों को ये सीख देता रहेगा कि अगर मन में इच्छा और संकल्प का समावेश हो, तो समाज की बेड़ियां भी इसके तप से पिघल जाती हैं.

जिंदा जमीन में गाड़ दिया...

गुलाबो 9 नवंबर 1970 को शाम 7 बजे अजमेर के कोटडा ढाणी कालबेलिया बस्ती में पैदा हुईं. गुलाबो का जन्म दिवाली-धनतेरस के दिन होने की वजह से उनका नाम धनवंतरी रख दिया गया. समय का चक्र बदला और समाज की दकियानूसी रिवाजों के चलते कुछ महिलाओं ने उन्हें जिंदा जमीन में गाड़ दिया. लेकिन, जैसे ही इस बात की खबर मां को लगी. मां ने अपनी बहन के साथ मिलकर 5 घंटे बाद गुलाबो को जमीन के अंदर से बाहर निकाला और खुली हवा में सांस लेने के लिए आजाद कर दिया.

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सांपों के साथ आंख-मिचौली...

गुलाबो का जीवन सांपों के साथ आंख-मिचौली करते ही बीता है. दो जून की रोटी की लिए गुलाबो, बिन की धून पर सांपों के साथ नाचती रहती और उससे मिले पैसे से परिवार की आजीविका चलती थी. गुलाबो को पहला ब्रेक थ्रू 1981 के पुष्कर मेले से मिला, जहां एक सरकारी मुलाजिम तृप्ति पांडे ने उनकी प्रतिभा को पहचाना और उन्हें अंतरराष्ट्रीय मंच तक ले गईं.

हार नहीं मानी, हौसलों को दीं उड़ान...

पहली बार साल 1985 में गुलाबो ने देश के बाहर अपना हुनर दिखाया. तृप्ति पांडे ने उन्हें राज्य की ओर से अमेरिका जाने वाले प्रतिनिधिमंडल में शामिल करवाया. गुलाबो के पास उस समय ना ही घुंगरू थे और ना ही पासपोर्ट. उस समय नाबालिग का स्वतंत्र पासपोर्ट नहीं बनता था और समय कम था, इसलिए मेरी गुलाबो की उम्र बढ़ाकर पासपोर्ट बनाया गया. अमेरिका जाने से एक दिन पहले पिता का निधन हो गया. पिता से ज्यादा नजदीकी होने की वजह से गुलाबो सदमे में चली गईं. लेकिन, हार नहीं मानी, हौसलों को उड़ान दीं और मां से विदेश जाने की अनुमति मांगी और अमेरिका चली गईं.

राजीव गांधी ने माना बहन...

अमेरिका में परफॉर्मेंस के बाद उन्हें अमेरिका में ही रहकर नृत्य कला की शिक्षा देने की बात कही गई. उन्हें अमेरिकी नागरिकता का प्रस्ताव भी मिला. लेकिन, गुलाबो ने इन सारे प्रस्तावों को नकार दिया और तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी से वतन वापस जाकर अपने ही समाज के बीच काम करने की इच्छा जाहिर की, जिससे गदगद होकर राजीव गांधी ने गुलाबो की कलाई में राखी बांधी और अपनी मुंह बोली बहन का दर्जा दिया.

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बॉलीवुड में दिखाया जलवा...

भारत के सबसे बड़े रियालिटी शो बिग बॉस में भी गुलाबो, बॉलीवुड सेलीब्रेटिज के साथ प्रस्तुती दे चुकी हैं. इतना ही नहीं गुलाबो ने डांस के जरिए सरकार का विरोध भी किया है. गुलाबो ने कलाकारों के समर्थन में जयपुर की सड़कों पर 15 किलोमीटर नाचकर अपना विरोध दर्ज कराया था. जिसके बाद सरकार को झुकना पड़ा था और कलाकारों की मांगों को मानना पड़ा था.

जाको राखै सांईयां, मार सके न कोई...

कई बार कहावतें इतिहास के पन्नों से निकलकर व्यक्ति के वर्तमान जीवन को प्रदर्शित करती हैं. गुलाबो का जीवन दर्शन ही है, जो ये चरितार्थ करता है कि ''जाको राखै सांईयां, मार सके न कोई...बाल न बांका कर सकै, जो जग बैरी होय''.

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