जयपुर. 400 साल कम नहीं होते. कुछ सहेजने में और कुछ बिसरने में. लेकिन जब बात जबान की हो तो सहेजा भी जाता है और उसे बिसराया भी नहीं जाता है. ऐसा ही कुछ आमेर की गुंजी के लिए कहा जा सकता है (Jaipur Amber Gunji). स्वाद के शौकीनों के लिए एक नई मिठाई ईजाद करने के मकसद से मावे की गहरी सिकाई और इलायची के दाने को मिक्स करके इस स्वाद को तैयार किया गया था.आज न सिर्फ सैलानी, बल्कि खुद आमेर किले पर विराजमान शिला माता भी इस मिठाई का भोग लगाती हैं. आमेर की गुंजी के नाम से प्रसिद्ध इस मिठाई की ख्याति शहर के बाहर तक फैली हुई है. लोग खूब आते हैं लेकिन कारोबार से जुड़े लोगों को चंद शिकायतें भी हैं.
सफ़ेद और चॉकलेट कलर की होती है गुंजी: आमेर की इस प्रसिद्ध मिठाई को आमतौर पर चॉकलेट कलर में पसंद किया जाता है (Delicious Rajasthani Mithai) लेकिन मावे के पेड़े जैसी दिखने वाली सफेद गुंजी भी बाजार में खासा लोकप्रिय है. गांधी चौक पर बनी करीब एक दर्जन दुकानों पर ही यह मिठाई मिलती है.जो ढाई सौ से लेकर ₹300 प्रति किलो के भाव पर बेची जाती है. इसे तैयार करने के लिए खास विधि का इस्तेमाल किया जाता है, ताकि मावा 10 दिन तक खराब न हो. मावे को रोस्ट करना यानी सिकाई करना इस विधि में सबसे प्रमुख काम होता है.
शहर से भी पुराना है इस मिठाई का इतिहास शक्कर का नहीं होता इस्तेमाल:शरीर के लिए यह बेहतर हो और मीठा नुकसान न करें, इस लिहाज से मावे में दानेदार शक्कर की जगह देसी खांड या कहें कि बूरे का इस्तेमाल किया जाता है. बूरे को भी किसी बर्तन की जगह हाथ से मिलाया जाता है ,ताकि यह मावे के साथ अच्छी तरह से घुल जाए. पहले मावे को भट्टी पर हल्का सेंकने के बाद उसमें बूरा मिलाकर गूंजी को तैयार किया जाता है. अगर चॉकलेट कलर की गूंजी तैयार करनी है ,तो बूरा मिलाने से पहले मावे को हल्के भूरे रंग का होने तक सेंका जाता है. फिर इसे ठंडा करने के बाद लड्डू का आकार दिया जाता है और उन पर सूखे मेवों को काटकर छिड़का जाता है.
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राज परिवार भी था गुंजी का मुरीद,माता को लगता है भोग: जयपुर की बसावट से पहले महाराजा आमेर के किले पर ही निवास किया करते थे. आमेर से जुड़े लोग बताते हैं कि गूंजी को खाने के लिए अक्सर राज परिवार के लोग किले से उतर कर नीचे आया करते थे. वर्तमान में गांधी चौक के नाम से विख्यात इस जगह पर स्थापित दुकानों से मिठाई की खरीद किया करते थे. पहली बार महाराजा माधव सिंह के जमाने में इस मिठाई को तैयार किया गया था. उनके बाद राजा जय सिंह, राजा राम सिंह ,राजा मानसिंह और भवानी सिंह भी इसके स्वाद के दीवाने रहे. यह लोग अपने शाही लवाजमे के साथ जब भी यहां से गुजरते थे ,तो गुंजी का स्वाद लिए बिना नहीं रहते थे.
माता का भोग गुंजी:जयपुर के शाही परिवार की तरफ से आज भी गुंजी का भोग शिला माता को अर्पित किया जाता है. कहा जाता है कि जब तक शिला माता को गुंजी का भोग नहीं लगाया जाता है तब तक मंदिर के पट नहीं खोले जाते हैं. यही वजह है कि त्योहारों में विशेष तौर पर नवरात्र के दौरान व्रत में खाने वाली मिठाई के रूप में लोग गुंजी को इस्तेमाल करते हैं.
कारोबार अच्छा, पर मार्केटिंग की जरूरत : आमेर में गुंजी के कारोबार से जुड़े लोगों के मुताबिक एक दर्जन दुकानों में सालाना 20 से ₹25 करोड़ रुपये का कारोबार हो जाता है. तकरीबन 200 लोगों की आजीविका का साधन है ये. इन लोगों का मानना है कि राजस्थान के पर्यटन विभाग की तरफ से अगर सहयोग मिले ,तो बीकानेरी रसगुल्ले, जोधपुर के मावे की कचोरी की तर्ज पर आमेर की गुंजी का प्रचार भी किया जा सकता है. जिसका फायदा न सिर्फ इन कारोबारियों को होगा, बल्कि आमेर और जयपुर की अर्थव्यवस्था को भी इसका बड़ा लाभ होगा.
अगर सरकार इसे हेरिटेज टेस्ट और रॉयल फैमिली क्यूज़ीन (Rajasthani Gunji Royal Family Cuisine) के रूप में प्रचारित करें, तो फिर इसके मुरीद दुनिया भर में देखने को मिलेंगे. एक बार जो इसे टेस्ट कर लेता है ,तो फिर उनके लिए गुंजी का स्वाद हमेशा सिर चढ़कर बोलता है. मौजूदा दौर में आमेर कस्बे के लोगों के अलावा सैलानी भी इस मिठाई की खरीद करते हैं. जिस तरह से ऑनलाइन मार्केटिंग का दौर आज पूरी दुनिया में परवान पर है. इन मिठाई कारोबारियों की चाहत है कि आमेर की गुंजी विश्व के मानचित्र पर अपनी छाप छोड़ पाए.