जयपुर. आज अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस (International Womens day 2022) है और हर तरफ बात आधी आबादी (महिलाओं) को पूरा हक देने की चल रही है. लेकिन प्रदेश की सबसे बड़ी पंचायत विधानसभा जो हर मामले में कानून बनाने का अधिकार रखती है उस विधानसभा में ही महिलाओं का प्रतिनिधित्व पूरा नहीं है. अब जब कानून बनाने वाली विधानसभा में ही महिलाओं का पूरा प्रतिनिधित्व नहीं है तो फिर आधी आबादी को उसका पूरा हक कैसे मिल सकता है. क्योंकि महिलाओं के हक और अधिकार की आवाज उठाने के लिए महिला प्रतिनिधित्व ही कम है.
राजस्थान विधानसभा की बात की जाए तो विधानसभा में 200 विधायकों में से 27 ही महिला विधायक हैं, जो 50 फीसदी या 33 फीसदी महिलाओं को अधिकार देने की बात करने वाले राजनीतिक दावों के विपरीत केवल 13 फीसदी है. महिला विधायकों की बात की जाए तो राजस्थान में कांग्रेस की टिकट पर जीतने वाली 15 महिला विधायक हैं. भाजपा के टिकट पर जीत कर आने वाली 10 विधायक हैं, एक विधायक आरएलपी से और एक निर्दलीय विधायक हैं.
राजस्थान में मंत्री बनाने में भी कंजूसी: राजस्थान में सत्ताधारी दल कांग्रेस है और कांग्रेस हमेशा से संसद और विधानसभा में महिलाओं के लिए आरक्षण की वकालत करती आई है. जहां उत्तर प्रदेश के चुनाव में कांग्रेस पार्टी ने 40 फीसदी टिकट महिला प्रत्याशियों को दिए हैं जो यकीनन आधी आबादी को उसका पूरा अधिकार दिलाने के लिए एक नई शुरुआत के तौर पर मानी जा सकती है. लेकिन जब उसी कांग्रेस पार्टी की सरकार वाली राजस्थान सरकार में महिलाओं को मंत्रिमंडल में मिली जगह को देखा जाए तो कांग्रेस पार्टी की मंशा में भी सवाल खड़े होते हैं.
बता दें, 30 मंत्रियों वाले गहलोत मंत्रिमंडल में राजस्थान सरकार में केवल 3 महिला मंत्री हैं. शकुंतला रावत, ममता भूपेश और जाहिदा, जिनमें से भी 2 तो राज्य मंत्री हैं. यानी कि मंत्रिमंडल में भी राजस्थान में महिलाओं को केवल 10 फीसदी स्थान मिला है. वह भी 3 साल के बाद नहीं तो गहलोत कैबिनेट में 3 साल तक तो केवल एक ही महिला मंत्री ममता भूपेश थी.