जयपुर.पूरे विश्व में 4 जून को आक्रमण के शिकार हुए मासूम बच्चों का अंतरराष्ट्रीय दिवस मनाया जाता है. इस दौरान वह मासूम बच्चे जो शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक और घरेलू शोषण का शिकार हुए हैं, उन्हें उनके कानूनों के प्रति जागरूक किया जाता है. एक घर जहां पर मासूम बच्चा अपने माता-पिता के साथ रहता है, वह उसके लिए दुनिया की सबसे सुरक्षित जगह मानी जाती है. लेकिन यदि उसी घर में उस मासूम को प्रताड़ना दी जाए और उसका शोषण किया जाए तो फिर वही घर उस मासूम के लिए नरक से भी बदतर जगह हो जाती है.
जयपुर चाइल्ड लाइन संस्था के डायरेक्टर कमल किशोर ने ईटीवी भारत से खास बातचीत के दौरान बताया कि जयपुर में प्रतिवर्ष मासूमों के शोषण के 1 हजार प्रकरण सामने आते हैं, जिसमें से 700 प्रकरण मासूमों के घरेलू हिंसा के शिकार के होते हैं. उन्होंने बताया कि ऐसे प्रकरण सामने आने के बाद तुरंत कार्रवाई की जाती है और मासूमों को प्रताड़ित करने वाले लोगों को गिरफ्तार भी किया जाता है. लेकिन कुछ प्रकरणों में सबूतों के अभाव के चलते या फिर परिजनों की ओर से लोक लाज के भय के चलते कार्रवाई नहीं चाहने के कारण आरोपी बच जाता है.
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भारत में 4 करोड़ बच्चे घरेलू हिंसा के शिकार
चाइल्ड लाइन संस्था के डायरेक्टर कमल किशोर ने बताया कि भारत में 4 करोड़ बच्चे घरेलू हिंसा के शिकार हैं. यह तमाम बच्चे घरेलू हिंसा के कारण घरों से पलायन कर फुटपाथ या सड़क पर रहने को मजबूर हैं. घरेलू हिंसा से प्रताड़ित होकर यह मासूम अपने घरों को छोड़ देते हैं और फिर इनकी जिंदगी नरक से कम नहीं होती है.
किशोर ने बताया कि घरेलू हिंसा के अनेक प्रकार हैं, जिसमें से सबसे प्रमुख प्रकार पिता की ओर से नशे में या फिर किसी अन्य कारण के चलते मासूम बच्चों और पत्नी के साथ मारपीट करना है. इसके साथ ही सौतेले पिता या सौतेली माता की ओर से बच्चों का शोषण करना या फिर उन्हें प्रताड़ना देना है.
इन प्रकरणों में परिवार का सदस्य होता है गुनहगार
कमल किशोर ने बताया कि मासूम बच्चों के साथ होने वाले शारीरिक शोषण के 80 फीसदी प्रकरणों में परिवार का ही कोई सदस्य गुनाहगार होता है. मासूम बच्चियों और मासूम बच्चों के साथ होने वाले शारीरिक शोषण के प्रकरण में परिवार, रिश्तेदार या निकट संबंध का ही कोई व्यक्ति आरोपी होता है. ऐसे में लोक लाज के चलते परिवार के अन्य सदस्यों की ओर से मासूम बच्चों के साथ होने वाले शोषण को छिपाया जाता है.