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SPECIAL REPORT: अपने ही घरों में महफूज नहीं बच्चे, राजधानी में प्रतिवर्ष 700 बच्चे होते हैं घरेलू हिंसा का शिकार - Jaipur News

हर साल 4 जून को आक्रमण के शिकार हुए मासूम बच्चों का अंतरराष्ट्रीय दिवस मनाया जाता है. यह दिवस उन बच्चों के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए मनाया जाता है, जो दुनिया भर में पीड़ित हैं, शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक शोषण का शिकार हैं. बता दें कि राजधानी जयपुर में प्रति वर्ष 700 बच्चे घरेलू हिंसा या शोषण का शिकार होते हैं. पढ़ें पूरी खबर...

International Day of Innocent Children Victims of Aggression
अपने ही घरों में महफूज नहीं बच्चे

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Published : Jun 4, 2020, 9:16 PM IST

जयपुर.पूरे विश्व में 4 जून को आक्रमण के शिकार हुए मासूम बच्चों का अंतरराष्ट्रीय दिवस मनाया जाता है. इस दौरान वह मासूम बच्चे जो शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक और घरेलू शोषण का शिकार हुए हैं, उन्हें उनके कानूनों के प्रति जागरूक किया जाता है. एक घर जहां पर मासूम बच्चा अपने माता-पिता के साथ रहता है, वह उसके लिए दुनिया की सबसे सुरक्षित जगह मानी जाती है. लेकिन यदि उसी घर में उस मासूम को प्रताड़ना दी जाए और उसका शोषण किया जाए तो फिर वही घर उस मासूम के लिए नरक से भी बदतर जगह हो जाती है.

अपने ही घरों में महफूज नहीं बच्चे

जयपुर चाइल्ड लाइन संस्था के डायरेक्टर कमल किशोर ने ईटीवी भारत से खास बातचीत के दौरान बताया कि जयपुर में प्रतिवर्ष मासूमों के शोषण के 1 हजार प्रकरण सामने आते हैं, जिसमें से 700 प्रकरण मासूमों के घरेलू हिंसा के शिकार के होते हैं. उन्होंने बताया कि ऐसे प्रकरण सामने आने के बाद तुरंत कार्रवाई की जाती है और मासूमों को प्रताड़ित करने वाले लोगों को गिरफ्तार भी किया जाता है. लेकिन कुछ प्रकरणों में सबूतों के अभाव के चलते या फिर परिजनों की ओर से लोक लाज के भय के चलते कार्रवाई नहीं चाहने के कारण आरोपी बच जाता है.

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भारत में 4 करोड़ बच्चे घरेलू हिंसा के शिकार

चाइल्ड लाइन संस्था के डायरेक्टर कमल किशोर ने बताया कि भारत में 4 करोड़ बच्चे घरेलू हिंसा के शिकार हैं. यह तमाम बच्चे घरेलू हिंसा के कारण घरों से पलायन कर फुटपाथ या सड़क पर रहने को मजबूर हैं. घरेलू हिंसा से प्रताड़ित होकर यह मासूम अपने घरों को छोड़ देते हैं और फिर इनकी जिंदगी नरक से कम नहीं होती है.

चाइल्ड लाइन संस्था में बच्चे

किशोर ने बताया कि घरेलू हिंसा के अनेक प्रकार हैं, जिसमें से सबसे प्रमुख प्रकार पिता की ओर से नशे में या फिर किसी अन्य कारण के चलते मासूम बच्चों और पत्नी के साथ मारपीट करना है. इसके साथ ही सौतेले पिता या सौतेली माता की ओर से बच्चों का शोषण करना या फिर उन्हें प्रताड़ना देना है.

इन प्रकरणों में परिवार का सदस्य होता है गुनहगार

कमल किशोर ने बताया कि मासूम बच्चों के साथ होने वाले शारीरिक शोषण के 80 फीसदी प्रकरणों में परिवार का ही कोई सदस्य गुनाहगार होता है. मासूम बच्चियों और मासूम बच्चों के साथ होने वाले शारीरिक शोषण के प्रकरण में परिवार, रिश्तेदार या निकट संबंध का ही कोई व्यक्ति आरोपी होता है. ऐसे में लोक लाज के चलते परिवार के अन्य सदस्यों की ओर से मासूम बच्चों के साथ होने वाले शोषण को छिपाया जाता है.

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मासूम बच्चों के साथ होने वाले शारीरिक शोषण और प्रताड़ना को लेकर पॉक्सो एक्ट, जुवेनाइल जस्टिस एक्ट सहित विभिन्न एक्ट बनाए गए हैं, जो काफी प्रभावी हैं और इन एक्ट के तहत काफी कार्रवाई को भी अंजाम दिया जाता है. वर्तमान की परिस्थितियों के अनुसार एक्ट में संशोधन भी किया जाता है.

पॉक्सो एक्ट में संसोधन कर उसे बनाया गया है प्रभावी

किशोन ने बताया कि वर्ष 2015 में पॉक्सो एक्ट में संशोधन कर उसे और भी प्रभावी बनाया गया है. पूर्व में जागरूकता की कमी के कारण घरेलू हिंसा का शिकार होने वाले बच्चों को कानूनी मदद नहीं मिल पाती थी, लेकिन अब इन तमाम कानूनों को लेकर विभिन्न माध्यमों से की गई जागरूकता के चलते अपने कानूनों और अधिकारों को मासूम भी पहचानने लगे हैं.

जयपुर में प्रतिवर्ष 700 बच्चे होते हैं घरेलू हिंसा के शिकार

घरेलू हिंसा के प्रकरण बढ़े...काउंसलिंग से हो रहा समाधान

चाइल्ड लाइन संस्था के सदस्य राकेश व्यास ने बताया, कि राजधानी जयपुर में मासूम बच्चों के साथ होने वाले घरेलू हिंसा के प्रकरणों में काफी इजाफा हुआ है. लेकिन काउंसलिंग के जरिए भी इन प्रकरणों का समाधान किया जा रहा है. राकेश व्यास ने बताया कि जिस तरह से पहले संयुक्त परिवार में लोग रहा करते थे तो मासूमों के साथ प्रताड़ना के प्रकरण नहीं के बराबर थे, लेकिन अब जब लोग संयुक्त परिवार में ना रहकर एकल परिवार में रहते हैं तो अनेक तरह के तनाव से ग्रसित होने पर मासूम बच्चों को अपना निशाना बनाते हैं. उन्हें विभिन्न तरह से प्रताड़ित करते हैं या फिर उनका शोषण करते हैं.

काउंसलिंग से हो रहा समाधान

राजधानी जयपुर के जगतपुरा और मुहाना इलाके से ऐसे ही कुछ प्रकरण सामने आए, जिसमें मासूमों को उनके परिजनों की ओर से प्रताड़ित किया जा रहा था. लेकिन जब परिजनों को बुलाकर उनकी काउंसलिंग की गई और उन्हें समझाया गया कि मासूमों को प्रताड़ित ना करें बल्कि उनका अच्छे से पालन पोषण करें और अच्छे संस्कार दें तो उन समस्याओं का समाधान स्वतः ही हो गया.

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