जयपुर. भारत-चीन सीमा पर तनाव का असर रक्षाबंधन पर्व पर भी पड़ा है. यही वजह है कि इस बार चीनी नहीं स्वदेशी राखी की मांग बढ़ गई है. चीन से तल्ख होते रिश्तों के बीच इस बार भाई-बहन के पवित्र रिश्ते रक्षाबंधन पर चीनी राखियां बाजार में नजर नहीं आएंगी. इसी बीच चीनी राखियों का बहिष्कार और स्वदेशी राखी की मुहिम जोर पकड़ने लगी है. ऐसे में इस बार भाइयों की कलाई पर चाइनीज नहीं बल्कि देसी राखियां चमकेंगी.
राजस्थान में मनाया जाएगा स्वदेशी रक्षाबंधन
“रेशम की डोर नहीं बस मौली बांध देना भाई की कलाई पर, मगर चीन की राखी मत खरीदना और याद रखना एक और भाई भी खड़ा है सीमा की चढ़ाई पर” इस बड़े संदेश के साथ ही इस बार पूरे राजस्थान में भी 'स्वदेशी रक्षाबंधन' मनाया जाएगा. भारत- चीन विवाद के बाद पहला त्यौहार रक्षाबंधन ही है और इसी त्यौहार के साथ चीन को पता लगेगा कि किस मजबूती से भारत चीनी वस्तुओं का बहिष्कार कर उसको एक बड़ा सबक देने की ठान चुका है. यही वजह है की इस बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आत्मनिर्भर भारत अभियान से प्रेरणा लेते हुए बहनें अपने भाइयों के लिए घर में खुद राखियां बना रही हैं. बाजारों में इन राखियों की डिमांड भी बढ़ गई है.
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बाजारों से चाइनीज राखियां हुई गायब
3 अगस्त को रक्षाबंधन है और इस त्यौहार पर बाजारों से चाइनीज राखियां एक तरह से गायब ही हो गई है. जिसकी वजह से इस बार चीनी राखियों के बहिष्कार से स्वदेशी मुहिम को बल मिला है. आत्मनिर्भर भारत की दिशा में एक कदम आगे बढ़ते हुए कई संगठन राखी बनाने में जुटे हुए हैं. इसके तहत सेवा भारती संगठन की ओर से भी राजस्थान के कई जिलों के ग्रामीण अंचल में गरीब तबके के बेरोजगारों को रोजगार दिया गया है. जहां महिलाओं के साथ उनके परिवार से राखियां बनवाई जा रही है. यहां उनकी ओर से रोजाना हजारों राखियां बनाई जा रही है जिसके बदले में उनके एक राखी का 1 रुपया दिया जा रहा है. इससे रक्षाबंधन के त्यौहार पर भारत की बहनें भारतीय राखी का इस्तेमाल करते हुए त्यौहार पर एक अनुमान के अनुसार चीन को लगभग 4 हजार करोड़ रुपए के व्यापार का घाटा पहुंचाएंगी.