जयपुर. कोरोना काल में लोगों की खान-पान संबंधी आदतों में बदलाव आया है. प्रोटीन के अच्छे स्रोत के रूप में जाना जाने वाला मशरूम अब आम लोगों की थाली में जगह बनाने लगा है. इसके फायदों को देखते हुए अब कई लोग मशरूम के उत्पादन से जुड़ने लगे हैं. देखिये यह खास रिपोर्ट...
मशरूम का क्रेज : रिटायर्ड आरएएस और आरपीएस भी ले रहे ट्रेनिंग मशरूम उत्पादन की ट्रेनिंग लेने वालों में रिटायर्ड आरपीएस और रिटायर्ड आरएएस भी शामिल हैं. पिछले साल नवंबर में दुर्गापुर कृषि अनुसंधान केंद्र की ओर से शुरू किए गए मशरूम उत्पादन प्रशिक्षण शिविर में काफी संख्या में लोगों ने प्रशिक्षण लिया. इस प्रशिक्षण शिविर के प्रति किसानों और आमजन में इतना उत्साह था कि दो महीने बाद ही दुर्गापुरा कृषि अनुसंधान केंद्र में एक और प्रशिक्षण शिविर लगाया गया.
इस शिविर में रिटायर्ड आरपीएस और आरएएस अधिकारी भी शामिल हुए. उनका कहना है कि वे अपने खुद के लिए मशरूम उत्पादन से जुड़ रहे हैं. कुछ रिटायर्ड अधिकारी इसे अतिरिक्त कमाई का जरिया भी बनाना चाहते हैं.
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राजस्थान प्रशासनिक अधिकारी सेवा के सेवानिवृत्त अधिकारी नरेंद्र सिंह चौहान का कहना है कि वे खुद लंबे समय से मशरूम का प्रयोग अपनी डाइट में कर रहे हैं. बाजार में महंगा मिलने के कारण घर में मशरूम उगाने का विचार आया. इसलिए दुर्गापुरा कृषि अनुसंधान की ओर से चलाए जा रहे मशरूम उत्पादन प्रशिक्षण में शामिल हुआ. यहां आकर लगा कि व्यावसायिक तौर पर भी इसमें हाथ आजमाए जा सकते हैं.
मांस से भी ज्यादा प्रोटीन होता है मशरूम में उनका कहना है कि उन्होंने अपने घर पर 10 बैग तैयार किए हैं. जिनमें 15 दिन बाद ही प्रोडक्शन मिलना शुरू हो गया. उन्होंने बताया कि एक बैग से कम से कम तीन-चार बार मशरूम लिया जा सकता है. जिससे परिवार की जरूरत के साथ ही आस-पड़ोस के लोगों की जरूरत भी पूरी कर सकते हैं. इसके साथ ही मांग बढ़ने पर बाजार भाव में मशरूम लोगों को देकर अपनी लागत भी निकाल सकते हैं.
ओएस्टर या ढींगरी मशरूम हर सीजन में पैदा होता है उन्होंने बताया कि मशरूम में मांस से ज्यादा प्रोटीन और पोषक तत्व होते हैं. खास बात यह है कि इसका 90 फीसदी हिस्सा पच जाता है. जबकि दाल और अन्य प्रोटीन स्रोत का बड़ा हिस्सा पच नहीं पाता है. उन्होंने नियमित डाइट में मशरूम को अनिवार्य रूप से शामिल करने की भी आमजन से अपील की है.
राजस्थान पुलिस के रिटायर्ड एएसपी नरपत सिंह राठौड़ का कहना है कि अच्छे स्वास्थ्य पर सबका अधिकार है और मशरूम में जो पोषक तत्व हैं उनकी हर व्यक्ति को नियमित डाइट में जरूरत होती है. मशरूम हर व्यक्ति तक पहुंचे इसलिए इसका उत्पादन बढ़ाने की दरकार है. हालांकि, अभी मशरूम महंगा जरूर है. लेकिन यह बात भी सही है कि यदि इसे अपनी नियमित डाइट में शामिल कर लिया जाए तो अस्पताल का खर्च अपने आप ही खत्म हो जाएगा.
लगातार बढ़ रही है मशरूम की खेती की ट्रेनिंग लेने वालों की संख्या इंटीरियर के व्यवसायी दिनेश राठौड़ का कहना है कि पिछले छह महीने से मशरूम की खेती के बारे में जानने का प्रयास कर रहा था. प्रशिक्षण लेने के बाद काफी शंकाओं का समाधान हो गया है. उनका कहना है कि वे अब अब घर पर मशरूम उगाने की दिशा में काम करेंगे.
असिस्टेंट प्रोफेसर तरुण कुमार का कहना है कि सब्जियों और फल के उत्पादन में पेस्टिसाइड्स का उपयोग शरीर को नुकसान पहुंचाता है. मशरूम में पर्याप्त मात्रा में प्रोटीन और सेलेनियम कंटेंट होता है. इसके साथ ही विटामिन डी की भी प्रचुर मात्रा मशरूम में होती है.
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मशरूम की खेती बहुत कम जगह में की जा सकती है. शुरूआत में तो एक कमरे में भी मशरूम की खेती की जा सकती है. पानी की भी कम जरूरत होती है. ऐसे में कम जगह में थोड़ी मेहनत करके किसान या कोई भी आमजन अच्छा रिटर्न हासिल कर सकता है. इसके हेल्थ बेनिफिट भी बहुत हैं और कई लोग गंभीर बीमारियों के इलाज के लिए भी मशरूम का प्रयोग करने की दिशा में काम कर रहे हैं.
दुर्गापुर कृषि अनुसंधान केंद्र की ओर से दी जा रही ट्रेनिंग दुर्गापुरा कृषि अनुसंधान केंद्र के निदेशक एएस बलोदा का कहना है कि बीते साल नवंबर में केंद्र की ओर से मशरूम की खेती का किसानों को प्रशिक्षण देने के लिए शिविर का आयोजन किया गया था. जिसमें 25 सीटें थीं. किसानों का उत्साह देखते हुए 30 लोगों को प्रशिक्षण दिया गया और तब 40 लोगों को मना करना पड़ा था. प्रशिक्षण लेने वाले कई लोगों ने अपनी यूनिट भी लगा ली है.
मशरूम उत्पादन की ट्रेनिंग उन्होंने बताया कि बटन मशरूम की पैदावार सर्दी में होती है. जबकि ओएस्टर या ढींगरी मशरूम हर सीजन में पैदा होता है. ओएस्टर मशरूम की कीमत 200 रुपए किलो तक होती है.
इसके बाद कई और लोगों ने भी इसके लिए संपर्क किया. अब दूसरे शिविर में 13 जिलों के 54 लोगों को प्रशिक्षण दिया गया है. जिसमें कई रिटायर्ड अधिकारी और व्यवसायी भी शामिल हैं. इससे लगता है कि मशरूम की खेती को लेकर लोगों में कितना उत्साह है. कोरोना काल में जिस तरह से कृषि ने देश की अर्थव्यवस्था को बचाकर रखा है.
रिटायर्ड आरएएस और आरपीएस भी ले रहे ट्रेनिंग इसका असर यह है कि अब किसान सैकंडरी फार्मिंग की तरफ आकर्षित हो रहे हैं और किसानों के साथ ही अन्य लोगों को भी मशरूम सबसे ज्यादा लुभा रहा है. खास बात ये है कि इसे बिना जमीन के कम पानी के साथ पैदा कर सकते हैं. जिसमें लागत भी काफी कम आती है.