जयपुर. देश और दुनिया में एक ओर कोरोना का कहर जारी है. लॉकडाउन के दौरान वैश्विक स्तर पर महिलाओं की प्रताड़ना के मामले भी बड़ी संख्या में सामने आ रहे हैं, लेकिन इन पीड़ित महिलाओं की फरियाद कौन सुने.
लॉकडाउन में बढ़ी महिला अत्याचार की घटनाएं बता दें, कि पीड़ित महिलाओं के न्याय के लिए बने राज्य महिला आयोग तो डेढ़ साल से क्वॉरेंटाइन में है. सत्ता परिवर्तन के साथ ही आयोग के अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति नहीं हुई है. ऐसे में पीड़ित महिलाएं अपनी पीड़ा लेकर जाएं तो जाएं कहा. रिपोर्ट के अनुसार वायरस के फैलाव को रोकने के लिए देशभर में पिछले 2 महीने से तालाबंदी है. करोड़ों लोग घरों की चारदीवारी में कैद हैं तो दूसरी ओर देश की आधी आबादी एक अन्य वायरस से जूझ रही है. देशव्यापी लॉकडाउन की वजह से महिलाएं घरेलू हिंसा और उत्पीड़न के आंकड़ों में बढ़ोतरी हुई, लेकिन वो अपने इस दर्द के साथ घरों में कैद होकर लड़ रही है.
ये तस्वीरें राज्य महिला आयोग की है
यहां महिलाएं अपनी प्रताड़ना की शिकायत लेकर पहुंचती है, लेकिन डेढ़ साल से यहां पीड़ित महिलाओं की सुनवाई करने कोई नहीं आता है. वजह है प्रदेश में गहलोत सरकार के डेढ़ साल बीत जाने बाद भी राज्य महिला आयोग का नया ढ़ांचा नहीं बना होना. आयोग के अध्यक्ष और बाकी सदस्यों के पद खाली पड़े हैं. बीजेपी सरकार में आयोग की पिछली अध्यक्ष सुमन शर्मा रहीं, जिनका कार्यकाल 19 अक्टूबर, 2018 को समाप्त हो गया.
महिला आयोग में अध्यक्ष और सदस्यों का मनोनयन नहीं होने से पीड़ित महिलाओं के सामने बड़ी समस्या ये है की आखिर वो अपनी पीड़ा लेकर जाएं तो कहां जाएं. लॉकडाउन के इस दौर में ऐसी संस्था का नहीं होना एक चिंता का विषय है. क्योंकि हाल में राजस्थान के सवाई माधोपुर जिले में क्वॉरेंटाइन के दौरान एक स्कूल में 40 वर्षीय महिला से गैंगरेप का मामला सामने आया था. जिसके बाद राष्ट्रीय महिला आयोग को इस पर खुद संज्ञान लेना पड़ा. महिला समाजिक कार्यकर्ता निशा सिद्धू बताती है कि ऐसे कई मामले राजस्थान के अलग-अलग हिस्सों से सामने आ रहे हैं.
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मार्च 2020 में 1047 मामले दर्ज किए गए
राजस्थान पुलिस विभाग के हर महीने जारी होने वाले आंकड़ों पर नजर डाले तो मार्च 2020 में महिला उत्पीड़न (498-ए) के तहत 1047 मामले दर्ज किए गए. इसके अलावा दहेज मामले, बलात्कार और छेड़छाड़ की घटनाएं मिलाकर 2,674 मामले दर्ज हुए. हालांकि इन्हीं मामलों को लेकर अप्रैल महीने में कुछ कमी देखी गई, लेकिन इस महीने प्रदेश में 879 मामले महिला अत्याचार के दर्ज हुए. इसके अलावा राजस्थान में पुलिस विभाग की 2019 वार्षिक रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले साल (2018) के मुकाबले 2019 के जनवरी से जुलाई के बीच महिलाओं के खिलाफ अपराधों में 66% की बढ़ोतरी देखी गई है. आंकड़ों के अनुसार, महिलाओं के खिलाफ अपराधों में कुल 66.78% की बढ़ोतरी दर्ज की गई है. पिछले साल (2018) में 15, 242 मामले दर्ज किए गए थे जोकि 2019 में जनवरी और जुलाई के बीच 25,420 तक पहुंच गए.
गहलोत सरकार का पैटर्न चिंताजनक
अगर हम राज्य महिला आयोग के गठन के बाद से इसके इतिहास को देखें तो यह साफ दिखाई देता है कि सरकार बदलने के साथ हर बार नई सरकार नए सिरे से गठन करने में 5-6 महीनों का वक्त लगा लेती है, लेकिन गहलोत सरकार का पैटर्न इससे पहले भी चिंताजनक रहा है. 2009 में आयोग अध्यक्ष तारा भंडारी का कार्यकाल खत्म होने के बाद नई महिला आयोग अध्यक्ष प्रो. लाड कुमारी जैन को मनोनीत करने में राज्य सरकार ने करीब ढ़ाई साल का समय लिया था. मालूम हो कि राज्य में 2008 में अशोक गहलोत दूसरी बार मुख्यमंत्री चुने गए थे.
देशभर में महिला अत्याचार की बहुत सी घटनाएं हुई
इसके अलावा 2014 के बाद तत्कालीन वसुंधरा सरकार ने अध्यक्ष मनोनीत करने में करीब 10 महीने का समय लगाया. सरकारों की इस लेटलतीफी पर पूर्व महिला आयोग अध्यक्ष सुमन शर्मा कहती हैं कि लॉकडाउन के इन दो महीनों के दौरान पूरे देशभर में महिला अत्याचार की बहुत सी घटनाएं हुई है. इसके अलावा सबसे बड़ी विडंबना यह है कि कितने ही मामले इस दौरान रजिस्टर तक नहीं हो पाए हैं. वहीं प्रदेश कांग्रेस उपाध्यक्ष अर्चना शर्मा इस पूरे मसले पर बीजेपी को आइना दिखाते हुए कहा कि हमारी सरकार बने कुछ ही समय हुआ है और अब ये कोरोना संकट आ गया. ऐसे में सरकार अभी आयोग के गठन पर फैसला कैसे ले पाएगी?
राज्य महिला आयोग बना ही नहीं है
अशोक गहलोत के सत्ता में आने के बाद से राज्य महिला आयोग बना ही नहीं है. इसलिए आयोग की अधिकारिक वेबसाइट पर आखिरी रिपोर्ट साल 2018 की है जिसके मुताबिक, 1 अप्रैल 2018 से लेकर 31 दिसंबर 2018 तक आयोग को कई तरह की शिकायतें जनसुनवाई और व्यक्तिगत तरीके से प्राप्त हुई है. जिनमें दहेज क्रूरता, दहेज हत्या, भरण-पोषण, हत्या, हत्या का प्रयास, बलात्कार, बलात्कार का प्रयास, अपहरण, यौन उत्पीड़न, भूमि विवाद और घरेलू हिंसा की शिकायतें शामिल थी.
रिपोर्ट में दर्ज आंकड़े कहते हैं कि इस दौरान आयोग को कुल 3188 शिकायतें मिली, जिनमें से 1523 मामले निपटा दिए गए. वहीं 1665 अभी प्रक्रियाधीन है. ये तो वो शिकायतें है जो आयोग के पास ऑनलाइन या फिर हेल्पलाइन के जरिये आती है, लेकिन आयोग अध्यक्ष और सदस्य नहीं होने से ना तो किसी मामले में आयोग संज्ञान ले पा रहा है और ना किसी मामले में ठोस कदम उठाये जा रहे है.