जयपुर. दो पहिये की साइकिल आम आदमी की सवारी के रूप में देश में पहचान बना चुकी है. कोरोना महामारी के बाद जब दुनिया ने सेहत की तरफ अपना हाथ आगे बढ़ाया, तो सवारी के रूप में भले ही न सही पर सेहत के लिए लोगों ने साइकिल को जमकर अपनाना शुरू किया. मानो सड़कों पर साठ के दशक को साकार किया गया हो, पर अब यह साइकिल महंगाई की मार का शिकार हो गई है और साइकिल की सवारी का सपना देखने वाले लोग फिलहाल महंगाई (Impact of global inflation on cycles) के खत्म होने का इंतजार कर रहे हैं. पेट्रोल-डीजल के साथ-साथ गाड़ियों के दाम आसमान छू रहे हैं. ऐसे में नई साइकिल खरीदने का इरादा रखने वालों को फिलहाल अपने अरमान दबा कर रखने होंगे.
महंगाई ने लगाई धंधे पर लगाम- साइकिल कारोबार से जुड़े लोगों के लिए बाजार के हालात कोरोनाकाल की शुरुआत से बिल्कुल अलग है. रूस-यूक्रेन युद्ध के बीच स्टील जैसी कमोडिटी महंगी होने से साइकिलों की उत्पादन लागत बढ़ गई है. इसी वजह से इंडस्ट्री को प्रोडक्शन बड़े पैमाने पर घटाना पड़ा और कीमतें बढ़ानी पड़ी है. बीते कुछ महीनों से यह इंडस्ट्री कच्चे माल की बढ़ी हुई कीमतों का दंश झेल रही है. साइकिल कंपनियों के मुताबिक लागत बढ़ने के चलते उत्पादन में करीब 50 फीसदी कटौती करनी पड़ी है. इसकी वजह से साइकिल इंडस्ट्री को हर महीने करोड़ रुपए का नुकसान उठाना पड़ रहा है.
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जयपुर की किशनपोल बाजार में साइकिल के कारोबार से जुड़े व्यापारी का कहना है कि कोरोना के बाद साइकिल उद्योग ने नई ऊंचाइयों को छूने की कोशिश की थी, लेकिन बीते 1 साल में बढ़ती महंगाई के मार इस उद्योग पर ज्यादा पड़ी है. साइकिल के लिए जरूरी धातु की कीमतों में लगातार उछाल आ रहा है और इसी अनियमितता के कारण कीमतें अब आम आदमी की पहुंच से दूर (Cycle Price Hike in Rajasthan) होने लगी है, जिसका सीधा असर साइकिल कारोबार पर पड़ने लगा है. इनके अनुसार साइकिल की कीमतों में 20 से 25 फीसदी का फर्क़ आ चुका है. लिहाजा अब बच्चों के लिए ख्वाहिश पूरी करने का जरिया ये साइकिल बन रही है, पर फिटनेस पर काम करने वाले फ़िलहाल महंगाई के चक्कर में पैडल मारने से परहेज कर रहे हैं.
बच्चों की मांग अभिभावकों पर भारी: जब ईटीवी भारत में जयपुर के बाजार में साइकिल खरीदने के लिए पहुंचे कुछ लोगों से बात की तो इन लोगों ने बताया कि सिर्फ बच्चों की जिद को पूरा करने के लिए वे लोग साइकिल खरीद रहे हैं. जो साइकिल आज से लगभग डेढ़ साल पहले 2 से 3 हजार रुपए के बीच आ जाया करती थी, वही साइकिल अब 5 हजार रुपए के पार पहुंच चुकी है. ऐसे में बड़ों के लिए फिलहाल साइकिल खरीद पाना मुश्किल है. इधर, साइकिल खरीदने के लिए आए बच्चों से जब बात की तो उन्होंने कहा कि साइकिलिंग उनके लिए फिटनेस मंत्र का एक हिस्सा है. साथ ही साइकिलिंग के जरिए वे लोग पर्यावरण को बचाने की भी कोशिश करेंगे क्योंकि साइकिल प्रदूषण को कम करने का बेहतर विकल्प साबित हो सकती है. हालांकि, साइकिल की कीमतों में आए उछाल से इन बच्चों को कोई खास फर्क पड़ता नजर नहीं आया.
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स्टील और निकल ढाई गुना महंगा: ग्लोबल मार्केट में कच्चे तेल के बाद धातु की कीमतों में बड़ा बदलाव आया है. बीते दो महीनों में स्टील के दाम दोगुने हो गए हैं, जबकि निकल ढाई गुना महंगा हो गया है. इसके अलावा साइकिल इंडस्ट्री के लिए जरूरी क्रोमिक एसिड और क्रोम सॉल्ट जैसे केमिकल्स और पेंट्स की कीमतें भी लगातार बढ़ रही है. वहीं, टायर तैयार करने के लिए जरूरी नेचुरल रबर और कार्बन ब्लैक भी महंगे हो गए हैं, लिहाजा पहियों की हवा निकलने से साइकिल की रफ्तार सुस्त पड़ गई है. रूस और युक्रेन की लड़ाई से पहले 50 रुपए किलो की कीमत वाला स्टील अब 100 रुपए प्रति किलो के करीब पहुंच चुका है, तो निकल के भाव 1000 से सीधे पौने तीन हजार के नजदीक जा पहुंचे हैं. इसी तरह से बाकी समान जिनमें प्लास्टिक, रबर और रंग शामिल हैं, उनमें भी दाम दोगुने हो चले हैं.
अभी कुछ समय पहले ही स्वास्थ्य जागरुकता के चलते साइकिलों की बिक्री रिकॉर्ड पैमाने पर हो रही थी और देसी साइकिल कंपनियां चीन को टक्कर देने की योजना बना रही थी. जाहिर है कि दुनियाभर में चीन के बाद सबसे ज्यादा साइकिलें भारत में बनती हैं. ऐसे में साइकिल से जुड़े लाखों की संख्या में रोजगार लेने वाले लोगों के लिए भी यह मंहगाई चिंता का सबब बन रही है. इस कारोबार से गुजर बसर करने वालों के लिए भी हालत मुश्किलों को बढ़ाते जा रहे हैं.