जयपुर. राज्य मानव अधिकार आयोग सदस्य महेश गोयल की एकल पीठ ने जुलाई 2017 को अलवर में हुई घटना को लेकर अपना निर्णय (Human Rights Commission gave the decision) दिया. यह घटना उस समय समाचार पत्रों में प्रकाशित हुई थी जिस पर आयोग के तत्कालीन अध्यक्ष प्रकाश टाटिया ने संज्ञान लेते हुए सीएमएचओ अलवर से तथ्यात्मक रिपोर्ट मांगी थी.
मामला अलवर के 1 गांव की महिला लाछा देवी से जुड़ी है, जिसे प्रसव पीड़ा के चलते जिले के अकबरपुर सीएचसी ले जाया गया था. लेकिन अन्य चिकित्सकों की अनुपलब्धता और वहां मौजूद महिला नर्स बसंती की सलाह पर पीड़िता को अलवर राजकीय महिला चिकित्सालय रेफर किए जाने को कहा गया. लाछा देवी को जब वहां ले जाया जा रहा था तब रास्ते में राजकीय काला कुआ सेटेलाइट अस्पताल आने पर वहां पर महिला चिकित्सक की अनुपलब्धता पर सीधे अलवर चिकित्सालय ले जाया गया और भर्ती किया गया.
अलवर महिला चिकित्सालय में मौजूदा डॉक्टरों ने पीड़ित के परिजनों को यह क्लियर नहीं किया गया कि प्रसव होने में कितने दिन लगेंगे. ऐसे में परिजन वहां से चले गए लेकिन रस्ते में तेज प्रसव पीड़ा होने पर फिर अकबरपुर सीएचसी पहुंच गए लेकिन अकबरपुर सीएचसी में उसे भर्ती नहीं किया गया. जिसके चलते पीड़िता ने बाहर ही नवजात को जन्म दिया. हालांकि बाद में बाहर बच्चा होने की जानकारी मिलने पर अस्पताल में पीड़िता को अंदर लाकर भर्ती किया गया जांच के दौरान यह भी सामने आया कि अस्पताल पंजिका में प्रभारी डॉ शिव कांत और अन्य डॉक्टर आकांक्षा यादव उपस्थित है लेकिन वास्तविक रूप से वे स्वेच्छा से अनुपस्थित थे.
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आयोग ने इस मामले में अपना निर्णय सुनाते हुए माना कि केवल दोषी चिकित्सक अधिकारी और चिकित्सा कर्मियों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई किया जाना पीड़िता को हुई वेदना की क्षति पूर्ति संभव नहीं है. ऐसे में राज्य सरकार इस गंभीर लापरवाही के प्रकरण में पीड़िता लाछा देवी को 1 लाख रुपये क्षतिपूर्ति के आदेश दिया और इस प्रकरण में विस्तृत विभागीय जांच कर दोषी चिकित्सा कर्मियों और चिकित्सकों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की अनुशंसा की.