जयपुर.देशभर में कोरोना का संक्रमण बड़ी तेजी से फैलता जा रहा है. कोरोना संक्रमण की चैन को तोड़ने के लिए सरकारों की ओर से कई प्रयास किए जा रहे हैं. बढ़ते कोरोना संक्रमण के चलते अस्पतालों में बेड और ऑक्सीजन की कमी भी हो रही है. कोरोना मरीजों के इलाज में एलोपैथिक के साथ आयुष पद्धतियां भी काफी कारगर साबित हो रही है. इनमें से एक होम्योपैथिक चिकित्सा कोरोना के इलाज में काफी कारगर साबित हो रही है. होम्योपैथिक चिकित्सकों ने कोरोना पॉजिटिव मरीजों को ठीक करने का दावा किया है. होम्योपैथिक इलाज से कोरोना के मरीज ठीक भी हो रहे हैं.
दरअसल, होम्योपैथिक चिकित्सा कोविड प्रीवेंशन यानी रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में और पोस्ट कोविड इफेक्ट में अहम रोल निभा रही है. एसिंप्टोमेटिक माइल्ड मॉडरेड कोरोना रोगियों में होम्योपैथिक चिकित्सा काफी कारगर साबित हो रही है. होम्योपैथिक चिकित्सकों ने वैश्विक महामारी कोरोना का सटीक ट्रीटमेंट खोजने का दावा किया है. होम्योपैथिक चिकित्सा का कोरोना के इलाज में कितना महत्व है, इसको लेकर ईटीवी भारत ने होम्योपैथिक चिकित्सक से खास बातचीत की.
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ईटीवी भारत से खास बातचीत के दौरान होम्योपैथिक चिकित्सक डॉ. अशोक सिंह सोलंकी ने बताया कि कोविड डेडीकेटेड आरयूएचएस अस्पताल में भर्ती 60 मरीजों को होम्योपैथिक दवा दी गई, जिससे सभी मरीज 2 दिन से 14 दिन में ठीक होकर घर पहुंच गए. इस सफलता का श्रेय सरकार की ओर से होम्योपैथिक चिकित्सकों पर जताए गए विश्वास को दिया गया है. डॉ. अशोक सिंह सोलंकी के मुताबिक 44 प्रतिशत मरीज 2 से 5 दिन में, 25 प्रतिशत मरीज 6 से 9 दिन में और बाकी 31 प्रतिशत मरीज 9 से 14 दिन में डिस्चार्ज हो गए. 85 प्रतिशत मरीजों को ब्रायोनिया अल्बा 11 प्रतिशत को आर्सेनिक अल्बम और 4 प्रतिशत को जेल्सेमियम मेडिसिन दी गई. पिछले साल कोरोना की पहली लहर में आईसीयू की जरूरत नहीं पड़ी थी.
आयुष मंत्रालय ने जारी की गाइडलाइन
होम्योपैथिक चिकित्सक डॉक्टर अशोक सिंह सोलंकी के अनुसार आयुष मंत्रालय ने होम्योपैथी के लिए एक नई गाइडलाइन जारी की है, जिसमें होम्योपैथी डॉक्टर माइल्ड मॉडरेड, आसिम डोमेटिक प्रकार के कोरोना मरीजों को देख सकते हैं. सोलंकी ने बताया कि होम्योपैथिक चिकित्सा पद्धति एक नेचुरल सिस्टम है, ट्रीटमेंट में सबसे मॉडर्न साइंस होम्योपैथिक है. कोरोना काल में लगातार 1 साल से इस पर काम कर रहे हैं. एसिंप्टोमेटिक माइल्ड मॉडरेड कोरोना रोगियों में होम्योपैथिक चिकित्सा काफी लाभदायक साबित हो रही है. पोस्ट कोविड इफेक्ट के चलते ब्लैक फंगस, वाइट फंगस और यलो फंगस जैसी बीमारियां हो रही हैं.
डॉ. सोलंकी ने बताया कि होम्योपैथिक लक्षणों के बेस पर इलाज करता है. होम्योपैथिक में बीमारी के बजाए बीमार को ठीक किया जाता है. अगर किसी को प्राइमरी सिम्टम्स आते हैं तो समय पर इलाज मिलने से ना तो ब्लैक फंगस होता है, ना वाइट फंगस होता है. शुरुआत में सिम्टम्स आने पर नजदीकी होम्योपैथी डॉक्टर से परामर्श लेकर दवाई ले सकते हैं. होम्योपैथिक कोरोना वायरस में कारगर है. प्रिवेंशन और पोस्ट कोविड में होम्योपैथिक चिकित्सा पद्धति का कोई तोड़ नहीं है. होम्योपैथिक चिकित्सा पद्धति को लेकर सरकार को गंभीर होने की आवश्यकता है. होम्योपैथी चिकित्सा को लेकर लोगों में भी कई मिथ्या है, इसी कारण होम्योपैथिक चिकित्सा आमजन तक नहीं पहुंच पाई है.
होम्योपैथिक दवा के साइड इफेक्टनहीं
डॉ. अशोक सिंह सोलंकी ने बताया कि होम्योपैथिक चिकित्सा को लेकर लोगों में कई भ्रांतियां हैं. होम्योपैथिक दवा धीरे काम करती है, या इसका कोई साइड इफेक्ट है, यह बिल्कुल गलत है. होम्योपैथिक दवा का कोई साइड इफेक्ट नहीं होता है, बल्कि साइ बेनिफिट होते है. होम्योपैथिक दवाई काफी तेजी से काम करती है. कोरोना में होम्योपैथिक दवाई रामबाण की तरह काम कर रही है, लेकिन थोड़ी गंभीरता की जरूरत है.
राज्य सरकार और केंद्र सरकार के आयुष मंत्रालय को भेजी रिपोर्ट
डॉ. अशोक सिंह ने बताया कि पिछले साल राज्य सरकार से अनुमति लेकर कोविड डेडीकेटेड आरयूएचएस अस्पताल में कोविड मरीजों पर ट्रायल किया था. शुरुआत में 60 मरीजों पर ट्रायल किया गया, जो कि 15 दिन में ठीक हो गए, बिना आईसीयू और बिना ऑक्सीजन के सभी मरीजों को ठीक किया गया, जिसमें हर प्रकार की कैटेगरी के पेशेंट थे. माइल्ड मॉडरेड एसिंप्टोमेटिक और सिवियर जैसे मरीज 15 दिन में ठीक हुए थे, जिसकी रिपोर्ट राज्य सरकार और केंद्र सरकार को भेजी गई थी. आरयूएचएस अस्पताल में होम्योपैथिक मेडिसिन का ट्रायल किया गया था, जिसकी रिपोर्ट में मरीज का नाम, बेड और उसके सिम्टम्स समेत पुरानी बीमारी और क्या इलाज दिया गया था और कितने दिन में नेगेटिव हुआ, इसके संबंध में सारी रिपोर्ट राज्य सरकार के होम्योपैथिक निदेशक और केंद्र सरकार के आयुष मंत्रालय को भेजी गई थी.