भरतपुर/जयपुर.प्रदेश भर में होलिका दहन का पर्व हर्षोल्लास के साथ मनाया गया. लोगों ने चौराहों और खुले मैदानों में होलिका दहन किया. होलिका दहन से पहले विधिवत रूप से पूजा की गई. महिलाओं ने पूजा कर मंगल गीत गाए. होली की अग्नि में लोगों ने अपने-अपने घर से होलिका के रूप में उपला, लकड़ी जलाया. इस रिवाज के पीछे मान्यता है कि किसी के घर में बुराई का प्रवेश हो गया हो, तो वह इस अग्नि के साथ जल जाए.
राजधानी जयपुर में जगह जगह चौराहों पर होलिका दहन किया गया. जयपुर के सिटी पैलेस में पूर्व राज परिवार की ओर से होलिका दहन किया गया. शाही अंदाज में आयोजित हुए इस समारोह में पंडितों ने विधि विधान के साथ होली का पूजन किया. इस दौरान पूर्व राजपरिवार के सदस्य होलिका दहन को देखने के लिए पहुंचे. सिटी पैलेस में इस बार भी होलिका दहन कार्यक्रम में लोगों को प्रवेश नहीं दिया गया.
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भरतपुर के नदबई कस्बे सहित ग्रामीण क्षेत्र में होलिका दहन में महिला-पुरुषों के साथ बच्चों में भी खासा उत्साह दिखाई दिया. गेहूं की बालियां और साथ में एक लोटा जल रखकर पूजा अर्चना की गई. बाद में होलिका दहन हुआ. इसके बाद लोगों ने प्रसाद का वितरण भी किया. रंग, गुलाल व पिचकारी सहित अन्य सामान की खरीदारी के लिए बाजारों में खासी भीड़ देखी गई.
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अजमेर जिले में हर्षोउल्लास के साथ होलिका दहन किया गया. होलिका दहन को लेकर लोगों में उत्साह था. विगत दो वर्ष के कोरोना काल के बाद इस बार होली लोगों के लिए उल्लास और उमंग लेकर आई है. यही वजह है कि होलिका दहन के वक्त लोगों की भीड़ भी खासी नजर आई. अजमेर शहर ही नहीं हर जगह होलिका दहन को लेकर जबरदस्त उत्साह रहा. होलिका दहन से पहले कंडे की माला होलिका पर डाली गई. होलिका दहन के दौरान लोगों ने धन, धान्य और समृद्धि के लिए नई फसल गेहूं और चने की बालियां भी सेंक कर घर ले गए. माना जाता है कि इस आग में भोग अर्पित करने से परिवार में खुशहाली बनी रहती है. वहीं उसका धुआं घर में घुमाने से नकारात्मक शक्तियों का अंत होता है.
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अलवर में सबसे बड़ी होलिका दहन होली ऊपर मोहल्ले में होता है. राजा महाराजा इस होली को देखकर घर में होली की पूजा करते थे. इसलिए इस मोहल्ले का नाम होली ऊपर रखा गया. होली की लपटें इतनी ऊंची होती थीं कि राजा के महल में रानी और अन्य परिवार के लोग उस होली की लपटों को देखकर अपने घर में होली की पूजा करते थे. होली पर एक माह पहले से ही स्वांग निकलने शुुरु हो जाते थे. गांवों में मेले लगते थे, जगह -जगह पर दंगल होता था तब जाकर लगता था कि होली का त्योहार आ गया है.