जयपुर. ग्रेटर नगर निगम (Greater Municipal Corporation) के महापौर पद से निलंबन के मामले में पूर्व मेयर सौम्या गुर्जर (Former Mayor Soumya Gurjar) की याचिका पर हाई कोर्ट (High Court) सोमवार को अपना फैसला सुनाएगा. न्यायाधीश पंकज भंडारी और न्यायाधीश सीके सोनगरा की खंडपीठ सुबह साढ़े दस बजे फैसला देगी.
नगर पालिका अधिनियम की धारा 39 को दी है चुनौती
सौम्या गुर्जर की ओर से नगर पालिका अधिनियम की धारा 39 के प्रावधानों को चुनौती दी गई है. इस धारा के तहत दुर्व्यवहार के आधार पर जनप्रतिनिधि को हटाने का प्रावधान है. सौम्या गुर्जर की ओर से धारा 39 को असंवैधानिक बताते हुए कहा गया है कि दुर्व्यवहार शब्द को अधिनियम में परिभाषित ही नहीं किया गया है. ऐसे में दुर्व्यवहार किसे माना जाए, यह तय नहीं है.
सौम्या गुर्जर की ओर से यह रखी गई दलील
याचिका में कहा गया है कि निगम आयुक्त की ओर से राज्य सरकार को भेजी शिकायत और दर्ज कराई गई एफआईआर में याचिकाकर्ता का नाम ही नहीं है. इसके अलावा राज्य सरकार ने वरिष्ठ आईएएस अधिकारी से जुडे़ प्रकरण की जांच आरएएस अधिकारी को सौंप दी और जांच अधिकारी ने याचिकाकर्ता को जवाब देने के लिए पर्याप्त समय नहीं दिया. जांच रिपोर्ट पर राज्य सरकार ने तत्काल न्यायिक जांच के आदेश देते हुए याचिकाकर्ता को महापौर और पार्षद पद से निलंबित कर दिया.
याचिका में कहा गया कि नगर पालिका अधिनियम की धारा 39 में बताए गए दुर्व्यवहार के आधार पर याचिकाकर्ता को हटाया गया है, लेकिन अधिनियम में दुर्व्यवहार शब्द को परिभाषित ही नहीं किया गया है. सौम्या गुर्जर की ओर से कहा गया कि यदि प्रारंभिक जांच में नैसर्गिक न्याय के सिद्धांतों की अनदेखी होती है तो ज्यूडिशियल रिव्यु (Judicial Review) किया जा सकता है.
धारा 39 के परन्तुक में प्रावधान है कि जांच से पहले जनप्रतिनिधि से स्पष्टीकरण मांगा जाएगा. इसके अलावा याचिकाकर्ता के पास कंपनी के आठ करोड़ की फाइल ही आई थी. याचिकाकर्ता की पेनल्टी की गणना कर भुगतान की बात कहने पर आयुक्त ने पचास फीसदी भुगतान करने को कहा. याचिकाकर्ता की ओर से यह भी कहा गया कि यदि निलंबन को छोड़कर सिर्फ धारा 39 की वैधानिकता को चुनौती दी जाती तो बिना ठोस कारण के हाईकोर्ट उस पर सुनवाई ही नहीं करता. सफाई कंपनी के हड़ताल करने पर आयुक्त ने कार्रवाई के बजाए उसे भुगतान करने के लिए कह दिया. कंपनी को हाईकोर्ट ने आठ सप्ताह के लिए काम करने की छूट दी थी ना कि हड़ताल करने या सरकार को भुगतान करने के निर्देश दिए थे.
राज्य सरकार ने यह कहकर किया विरोध
राज्य सरकार की ओर से याचिका के विरोध में कहा गया कि जांच अधिकारी क्षेत्रीय निदेशक स्तर की अधिकारी है. उन्होंने मामले में स्वतंत्र जांच की है. सरकार याचिकाकर्ता का पक्ष सुने बिना प्रारंभिक जांच के आधार पर कार्रवाई कर सकती है. इसके बावजूद याचिकाकर्ता को नोटिस दिया गया, लेकिन उन्होंने जवाब नहीं दिया.
याचिकाकर्ता न्यायिक जांच के दौरान अपना पक्ष रख सकती हैं. नगर पालिका अधिनियम की धारा 39 के तहत दुर्व्यवहार के आधार पर जनप्रतिनिधि को हटाया जा सकता है. दुर्व्यवहार को किसी परिभाषा में नहीं बांधा जा सकता है.
ऐसे में याचिकाकर्ता का निलंबन संविधान के अनुकूल है. इसके अलावा निगम का कार्य आवश्यक सेवा में आता है. इसलिए नोटिस का जवाब देने के लिए रविवार को याचिकाकर्ता को बुलाना विधि सम्मत था. इसके साथ ही यदि सफाई करने वाली कंपनी को भुगतान नहीं किया जाता तो अदालती अवमानना होती. महाधिवक्ता ने कहा कि याचिकाकर्ता ने धारा 39 की वैधानिकता को चुनौती देने की आड़ में अपने निलंबन के खिलाफ याचिका दायर की है. ऐसे में प्रकरण की सुनवाई एकलपीठ को करनी चाहिए. इसके साथ ही जांच अधिकारी की प्रारंभिक जांच के खिलाफ ज्यूडिशियल रिव्यु नहीं किया जा सकता.