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बेनीवाल का डूडी कार्ड, उप चुनाव में फंसी कांग्रेस - राजस्थान में उपचुनाव

कांग्रेस नेता और पूर्व नेता प्रतिपक्ष रामेश्वर डूडी की नाराजगी भले ही आरसीए चुनाव पर शायद ज्यादा असर ना डाल पाए, लेकिन यह नाराजगी उप चुनाव में दोनों जाट बहुल सीटों पर कांग्रेस को भारी पड़ सकती है. हालांकि एकतरफ पहले ही भाजपा जाट प्रदेशाध्यक्ष बनाकर बड़ा दांव खेल चुकी है तो वहीं दूसरी सीट पर हनुमान बेनीवाल सीधे कांग्रेस पर जुबानी अटैक कर रहे है. ऐसी स्थिति में अगर दोनों रामेश्वर डूडी के बहाने कांग्रेस को जाट विरोधी पार्टी बताने में हुए कामयाब तो कांग्रेस के लिए दोनों सीटों पर मुश्किल बढ़ सकती है.

hanuman beniwal statement on congress, हनुमान बेनीवाल कर कांग्रेस पर बयान

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Published : Oct 4, 2019, 9:58 AM IST

Updated : Oct 4, 2019, 11:39 AM IST

जयपुर. राजस्थान में आरसीए में इन दिनों जो कुछ चल रहा है, वह महज सीपी जोशी गुट की ओर से वैभव गहलोत और कांग्रेस के नेता प्रतिपक्ष रामेश्वर डूडी के बीच की अदावत मात्र नहीं रह गई है. बल्कि जिस तरह से इसमें रलोपा के हनुमान बेनीवाल खुलकर रामेश्वर डूडी का समर्थन में खड़े हुए हैं, उससे साफ है कि भले ही राजस्थान क्रिकेट एसोसिएशन के चुनाव में तो इससे वैभव गहलोत को कोई फर्क ना पड़े और वह आसानी से आरसीए के अध्यक्ष बन जाए.

राजस्थान में आरसीए और उपचुनाव को लेकर राजनीति

लेकिन राजस्थान में 2 सीटों पर होने वाले उप चुनाव में आरसीए चुनाव की गूंज जरूर सुनाई देगी. कारण साफ है कि जिस तरीके से हनुमान बेनीवाल ने रामेश्वर डूडी को लेकर यह कहना शुरू कर दिया है कि कांग्रेस ने रामेश्वर डूडी के साथ जो व्यवहार किया है, इससे साफ है कि कांग्रेस जाट विरोधी पार्टी है.

वहीं, भाजपा इतिहास में पहली बार सतीश पूनिया के तौर पर जाट अध्यक्ष बनाकर किसान वोटों पर अपनी सेंध लगाने का प्रयास कर चुकी है. लेकिन अब जिस तरह से रामेश्वर डूडी आरसीए चुनावों के बाद अपनी पार्टी के मुखिया के खिलाफ ही मोर्चा खोल चुके हैं, उससे निश्चित तौर पर भाजपा और आरएलपी को मौका मिलेगा कि वह उप चुनाव में यह कह सकें कि कांग्रेस जाट विरोधी पार्टी है.

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वैसे भी उप चुनाव वाली दोनों सीटें मंडावा और खींवसर को जाट बहुल्य वाली सीटें मानी जाती है और दोनों ही पार्टियों ने जो प्रत्याशी इन उप चुनावों में उतारे हैं, वह भी जाट हैं. ऐसे में रामेश्वर डूडी के नाम के सहारे अगर हनुमान बेनीवाल जो इस समय राजस्थान के जाट युवाओं की अगुवाई कर रहे हैं, वह अगर भाजपा के पहले जाट अध्यक्ष सतीश पूनिया के साथ मिलकर इन दोनों सीटों पर यह मैसेज देने में कामयाब हो गए कि कांग्रेस जाट विरोधी पार्टी है तो बीते 10 साल से मंडावा और 15 साल से खींवसर सीटों को जीतने में नाकामयाब रही कांग्रेस के लिए इन सीटों पर मुश्किल बढ़ सकती हैं. वैसे भी कहा जाता है कि राजस्थान की राजनीति जाट पॉलिटिक्स के इर्द-गिर्द घूमती है और दोनों ही पार्टियां जाट वोटों को साधने का हमेशा प्रयास करती है.

Last Updated : Oct 4, 2019, 11:39 AM IST

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