राजस्थान

rajasthan

ETV Bharat / city

Cake Wali Guru Maa: राजस्थान की स्वाति बिड़ला हैं केक वाली गुरु मां, जानते हैं क्यों? - केक वाली गुरु मां

स्वाति बिड़ला चित्तौड़गढ़ के आदिवासी बहुल इलाके में स्थित एक सरकारी स्कूल की शिक्षिका हैं. बच्चों से बेइंतहा प्यार करती हैं. उन्हें जीवन में आगे बढ़ते, अपने पैरों पर खड़े होते देखना चाहती हैं. छात्रों को अपनी टीचर की एक बात बहुत पसंद हैं, इसका नाता केक से है (Cake Wali Guru Maa)! (Guru Purnima 2022 Special)

Cake Wali Guru Maa
स्वाति बिड़ला हैं केक वाली गुरु मां

By

Published : Jul 13, 2022, 9:16 AM IST

Updated : Jul 13, 2022, 10:46 PM IST

जयपुर/चितौड़गढ़.चित्तौड़गढ़ के छोटे से कस्बे कन्नौज की रहने वाली सरकारी स्कूल की टीचर स्वाति बिड़ला हैं केक वाली गुरु मां (Cake Wali Guru Maa)! जानते हैं क्यों? क्योंकि ये उन बच्चों का जन्मदिन मनाती हैं जिनके अभिभावक बर्थडे सेलिब्रेशन का अ, ब और स भी नहीं जानते. आखिर क्यों करती हैं गुरु मां ऐसा? क्या वो कोई मुकाम हासिल करना चाहती हैं या फिर कोई खास मकसद छिपा है इसके पीछे? मकसद तो है, ऐसा जिसे जानने के बाद लोग दाद देते हैं.

मकसद खास:स्वाति को आसपास के बच्चे केक वाली टीचर कहते हैं. सर्दी हो, गर्मी हो या फिर बरसात स्वाति इन बच्चों के जन्मदिन को मनाना नही भूलती. ये बच्चे उनके लिए बिलकुल अनजाने से हैं. उस स्कूल के भी नहीं जहां की ये शिक्षिका हैं. ये उस रास्ते के बच्चे हैं जहां से रोज ये गुजरती थीं. इन्हें खाली बैठे, आपस में लड़ते झगड़ते और यूं ही बैठे देखती थीं. ये सड़क किनारे बसे आदिवासी गांव और ढाणियों में रहते हैं. फिर शिक्षा की अलख जलाने के लिए ही स्वाति ने निज खर्चे पर जन्मदिन मनाना शुरू किया. केक कटवाया, बस्ती के बच्चों के साथ समय बिताया और सेलिब्रेशन के बदले एक वायदा लिया. स्कूल में पढ़ने जाने का. इसका नतीजा भी पॉजिटिव रहा. कोशिश रंग लाई. अब स्कूल में न केवल छात्र - छात्राओं का ठहराव हुआ , बल्कि नामांकन में भी वृद्धि हुई हैं.

राजस्थान की स्वाति बिड़ला हैं केक वाली गुरु मां

ऐसे हुआ सफर का आगाज: करीब दो साल पहले स्वाति को पता चला कि उनके आसपास के आदिवासी गांव भीलगट्टी और ढाणियों में भील जनजाति के बच्चों का स्कूलों में तो नामांकन है लेकिन वो स्कूल नही जाते. तभी स्वाति के मन मे ख्याल आया कि क्यों ने कुछ ऐसा किया जाए जिससे बच्चों का स्कूल की और रुझान बढ़े और स्कूल में ठहराव हो और ड्रॉप आउट्स में कमी आए. बहुत सोचा और अपनी हॉबी से अशिक्षा को दूर करने का रास्ता निकाल लिया. दरअसल, स्वाति को केक बनाने का शौक रहा है. उन्होंने तय किया उस हुनर का उपयोग इन बच्चों को सही दिशा दिखाने में करेंगी. उन बच्चों के लिए केक बनाया जो न तो कभी अपने जन्मदिन को मनाते हैं और न केक काटते हैं. एक वादा खुद से भी किया और बच्चों से भी लिया. वादा - स्कूल जाने का. बीच में कोरोना काल के कारण थोड़ा ब्रेक जरूर लगा लेकिन फिर केक वाली गुरु मां अपने रास्ते पर निकल पड़ी हैं.

शिक्षा की अलख जगाती स्वाति बिड़ला

पढ़ें-World Music Day 2022 : जब मां की लोरी कानों तक पहुंची तो कोमा से बाहर आ गया बच्चा...

परिवार का मिला साथ तो बन गई बात: स्वाति कहती हैं कि प्रत्येक व्यक्ति अपनी सुविधानुसार समाज में सक्रिय रहना चाहता है और किसी न किसी तरीके से अपना योगदान देता है. मैं सरकारी स्कूल में टीचर हूं. हर दिन जब मैं अपने गांव कन्नौज से झाड़ोली गांव (15 से 20 किलोमीटर दूर) में बच्चों को पढ़ाने जाती थी , तो देखती थी कि कई बच्चे हैं जो यूं ही वहां बैठे रहते हैं. जानकारी इकट्ठा की तो पाया कि ये स्कूल नहीं जाते और उनमें से कुछ ऐसे थे जिनका स्कूल में नामांकन तो था लेकिन स्कूल में उपस्थित नहीं होते थे. तब मन में ख्याल आया कि क्यों न कुछ ऐसा किया जाए जिससे इन बच्चों को भी खुशी दी जाए और इन्हें स्कूल से भी जोड़ा जाए. तय किया कि यूनिक स्टाइल अपनाया जाए. जन्मदिन सेलिब्रेट किया जाए. फिर अपने ससुराल वालों संग विचार विमर्श किया. पति तरुण काबरा और ससुर शांति लाल काबरा ने इस बात को Appreciate किया. सबका साथ मिला तो राह आसान हो गई और तभी से लगातार इन बच्चों के साथ केक काट कर जन्मदिन को सेलिब्रेट करते आ रहे हैं. जागरूक करती हूं, शिक्षा का महत्व बताती हूं और एक खास वादा लेती हूं कि अगर नियमित स्कूल जाएंगे तो उन्हें इसी तरह से अपने जन्मदिन को सेलिब्रेट करने का मौका मिलता रहेगा.

बच्चों की केक वाली गुरु मां

स्कूल से जुटाए आंकड़े: स्वाति कहती हैं कि बड़ी चुनौती थी इन बच्चों के जन्मदिन की तारीख पता करना. लेकिन रास्ता निकल गया. गांव के स्कूल से बच्चों का रिकॉर्ड एकत्रित किया. पता चला कि कक्षा एक से पांच में 90 से 100 बच्चों का ही नामांकन है. मेहनत की, बर्थ डे मनाया तो अब 150 से ऊपर बच्चों की लिस्टिंग हो गई है. इन 150 बच्चों का जन्मदिन बकायदगी से मनाती हूं. कहती हैं कि मन करता था कि इनके विद्यालय में जाकर जन्मदिन मनाऊं लेकिन फिर अपने स्कूल और परिवार की जिम्मेदारी का भी एहसास था इसलिए शाम को जब फ्री होती हूं तब अपने पति तरूण काबरा दोनों बच्चों भव्य और ख्याति के साथ इनके घर पर केक कटवाने पहुंच जाती हूं.

केक में भी संदेश:बचपन के पैशन का लोक कल्याण के लिए स्वाति ने प्रयोग किया. इनके बनाए केक के सब मुरीद थे. घर परिवार के हर सेलिब्रेशन में स्वाति के हुनर की डिमांड होती थी. फैसला लिया कि इसी हुनर से अब भील जनजाति के बच्चों का जीवन निखारेंगी. चूंकि ये परिवार आर्थिक रूप से इतने सक्षम नहीं होते कि बच्चे का जन्मदिन केक काट कर मना सकें तो उन्होंने ये बीड़ा उठा लिया. कहती हैं- व्यस्त शेड्युल से समय निकालती हूं. जिस बच्चे का जन्मदिन होता है उससे एक दिन पहले ही केक तैयार करके रख देती हूं. हां, मेरे इस प्रोडक्ट पर एक खास मैसेज भी होता है, जिसमें स्कूल से संबंधित कुछ खास संदेश जरूर होता है.

हर चेहरा कुछ कहता है

पढ़ें-जेंडर चेंज स्टोरी : बचपन की मीरा अब आरव बन निभा रहा घर की जिम्मेदारियां...

मौसम भी नही रोक पाया इरादों को: ऐसा नही की स्वाति के सामने इस काम को करने में दिक्कतें नहीं आई हों. मौसम ने कई रोड़े अटकाए. बताती हैं कि भील जनजाति के लोग ढाणियों में दुर्गम रास्तों में बसे हुए हैं. जहां किसी साधन से नही जाया जा सकता, सिर्फ पैदल ही जाया जा सकता है. ठंड में जल्दी अंधेरा होने से कई बार बच्चों का केक मोबाइल की लाइट से कटवाया, बारिश के मौसम में भी हार नहीं मानी. ऐसा नही है कि स्वाति इन बच्चों से ही केक कटवाती हैं बल्कि जिस सरकारी स्कूल में पढ़ाती हैं वहां के बच्चों के लिए भी ऐसा ही करती हैं.

चाह कर भी नहीं रुका सफर: बच्चों की गुरु मां कहती हैं कि ये फैसला लम्बे समय के लिए नहीं था. सोच यही थी कि सिलसिला सिर्फ एक साल तक चलेगा लेकिन नतीजे जब पॉजिटिव आने लगे तो हैं तो इस पर विराम लगाने का मन नहीं कर रहा. भावनात्मक इश्यू बन गया है ये मेरे लिए. चूंकि हर दूसरे या तीसरे दिन एक बच्चे का जन्मदिन होता है वो बेसब्री से इंतजार करता है कि मैडम केक लेकर आएंगी. लगता है कि अगर इसे बंद कर दिया तो कहीं स्कूल के प्रति उनका रुझान न कम हो जाए, नकारात्मक परिणाम भी सामने आ सकते हैं इसलिए फिलहाल इस केक अभियान को जारी रखने का ही फैसला लिया है.

मैसेज वाला केक

बच्चों पर सकारात्मक असर: स्वाति के केक अभियान की सफलता का गुणगान वो स्कूल टीचर्स भी करती हैं जहां बच्चे अब बड़े शौक से जाते हैं. तृप्ति तिवारी, मंजू, सुनिता और रेणु सोमानिया कहती हैं कि सकारात्मक असर तो पड़ा है. ड्रॉप आउट्स में कमी है, बच्चों की तादाद में इजाफा हुआ है. स्कूल आते हैं तो पहले की अपेक्षा ज्यादा उत्साहित और खुश दिखते हैं. पढ़ाई भी मन लगाकर करते हैं. कुल मिलाकर स्वाति बिड़ला का ये स्व जागृत अभियान सरकार की विभिन्न योजनाओं की तरह ही कारगर साबित हो रहा है. जिसमें बच्चों के नम्बर बढ़ाने की कोशिश होती है.

Last Updated : Jul 13, 2022, 10:46 PM IST

ABOUT THE AUTHOR

...view details