जयपुर. इतिहास के स्वर्ण पन्नों पर अपनी शौर्य गाथाओं की अमिट छाप छोड़ने वाली इस मरुधरा ने कई योद्धाओं को जन्मा जिन्हें कभी भुलाया नहीं जा सकता. महाराणा प्रताप भी उन्ही वीर सपूतों में हैं जिनकी आन, बान, शान और स्वाभिमान की मिसाल पूरी दुनिया में दी जाती है. उनके पराक्रम का लोहा खुद अकबर ने भी माना था. आज उस महान योद्धा की जयंती है. आइए आपको बताते हैं उनके बारे में कुछ रोचक बातें.
महाराणा प्रताप का जन्म और परिवार
महाराणा प्रताप का जन्म 9 मई 1540 में कुंभलगढ़ में हुआ था. हालांकि पंचांग के हिसाब से उनका जन्म ज्येष्ठ शुक्ल की तृतीया तिथि को हुआ था. वे राणा उदय सिंह द्वितीय के सबसे बड़े पुत्र थे. उनके 25 भाई और 20 बहनें थीं. उन्होंने युद्ध कौशल अपनी मां से ही सीखा था.
6 बार ठुकराया अकबर का प्रस्ताव
हल्दीघाटी के युद्ध से पहले अकबर ने महाराणा के पास छह प्रस्ताव भेजे थे. उस समय जयपुर रियासत के महाराज मान सिंह और उनके पिता भगवंत सिंह भी उनके पास अकबर का प्रस्ताव लेकर आए थे. लेकिन स्वाधीनता के आगे महाराणा ने अकबर के सभी प्रस्तावों को ठुकरा दिया.
ये रोचक बातें प्रचलित हैं महाराणा प्रताप के बारे में
इतिहासकारों के मुताबिक महाराणा प्रताप युद्ध कौशल में पारंगत होने के साथ-साथ काफी ताकतवर थे. उनका कद करीब 7 फुट 5 इंच था और वे अपने साथ 80 किलो का भाला और दो तलवारें रखते थे. महाराणा प्रताप जिस आर्मर (कवच) को धारण करते थे उसका वजन भी 72 किलो था. उनके अस्त्रों और शस्त्रों का कुल वजन करीब 208 किलो हुआ करता था.
हल्दी घाटी की वो ऐतिहासिक लड़ाई
रक्त रंजित हल्दी घाटी का वो ऐतिहासिक युद्द महाराणा प्रताप के शौर्य का ही एक प्रतीक है. 21 जून, 1576 को महाराणा प्रताप और अकबर की सेनाओं में हुआ ये भीषण युद्द किसी निर्णय पर नहीं पहुंच पाया था. अकबर ने मानसिंह और असफ खान के नेतृत्व में महाराणा प्रताप से युद्ध के लिए हाथियों के साथ विशाल सेना भेजी. दोनों सेनाएं का सामना उदयपुर से 40 किलोमीटर दूर हल्दी घाटी के मैदान में हुआ था. यह युद्ध करीब 4 घंटे चला था.
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इतिहासकार बताते हैं शुरुआत में तो महाराण प्रताप की सेना ने अकबर की सेनाओं पर कहर बरपा दिया. जब अकबर की सेना का मनोबल टूटने लगा तो खुद उनके मैदान में उतरने की घोषणा की गई. जिसके बाद अकबर की सेनाओं को कुछ बढ़त मिली. महाराणा प्रताप और उनकी सेना ने भी मुगल सेना का डटकर सामना किया.
इस बीच महाराणा प्रताप अपने घोड़े चेतक पर सवार होकर हाथी पर लड़ रहे मान सिंह के सामने आ गए. उन्होंने उनके ऊपर भाले से हमला किया. लेकिन यह भाला उनके हाथी के महावत को लगा. इस दौरान हाथी के ही हमले से महाराणा प्रताप का घोड़ा चेतक बुरी तरह जख्मी हो गया. इससे पहले मुगल सेना महाराणा प्रताप पर टूट पड़ती, चेतक ने बहादुरी से दौड़ लगाई और उन्हें युद्द स्थल से निकाल कर ले गए. तब मान सिंह झाला ने महाराणा प्रताप की जगह युद्ध की कमान संभाली. इस युद्द में वीरगति को प्राप्त हुए.
शिकार के दौरान लगी चोट से हुई मौत
हल्दी घाटी युद्द के बाद महाराणा प्रताप जंगलों में निवास करने लगे. लेकिन अकबर की सेनाओं पर छापामार युद्ध करते रहे. सन 1596 में शिकार खेलते हुए चोट लगने के कारण 19 जनवरी, 1598 को मात्र 57 वर्ष की आयु में उनका देहांत हो गया.