जयपुर. महाराणा प्रताप की जयंती पर मोहन लाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय में राष्ट्रीय समारोह आयोजित किया गया. इस कार्यक्रम में राज्यपाल कलराज मिश्र भी शामिल हुए. उन्होंने कहा कि महाराणा प्रताप का पूरा जीवन ही आदर्शों से ओत-प्रोत और प्रेरणा देने वाला है. राणा प्रताप ने राज-पाट का वैभव त्याग कर पहाड़ों और वनों में संघर्षमय जीवन जीया लेकिन अकबर के सामने कभी अपना सर नहीं झुकाया.
महाराणा प्रताप को सदा किया जाएगा याद
राज्यपाल ने कहा कि महाराणा प्रताप के स्वाधीनता संघर्ष में उनका नैतिक और चारित्रिक बल ही सबसे बड़ी शक्ति था. महाराणा प्रताप को उनके असाधारण साहस, शौर्य, मातृभूमि के प्रति अटूट निष्ठा, संघर्ष, त्याग और बलिदान के साथ ही कुशल नेतृत्व क्षमता और उदारता के लिए भी सदा याद किया जाता रहेगा. उन्होंने राजपूत वीरों को ही नहीं आदिवासी भील, ब्राह्मण, वैश्य, हिंदू-मुसलमान सभी को साथ लिया.
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मिश्र ने मेवाड़ की गौरवशाली विरासत के अकादमिक संरक्षण के लिए मेवाड़ शोधपीठ की स्थापना की घोषणा साकार होने पर प्रसन्नता जताई. आदिवासी और वनवासी भीलों के साथ रहते हुए और उन्हीं की तरह जीवन जीते हुए मुगलों को हर मोर्चे पर टक्कर ही नहीं दी बल्कि उन्हें बार-बार परास्त भी किया.
स्वतंत्रता के रक्षक के रूप में सबसे सबसे पहला नाम महाराणा प्रताप का: भाटी
इस ऑनलाइन कार्यक्रम में उच्च शिक्षा राज्य मंत्री भंवर सिंह भाटी भी मौजूद रहे. भाटी ने अपने संबोधन में कहा कि महाराणा प्रताप की लड़ाई अपने लिए नहीं बल्कि मेवाड़ की आम जनता के लिए थी. त्याग, बलिदान, निरंतर संघर्ष और स्वतंत्रता के रक्षक के रूप में सबसे सबसे पहले महाराणा प्रताप का नाम आता है. कार्यक्रम में विधानसभाध्यक्ष डॉ. सी पी जोशी ने कहा कि मातृभूमि की स्वतंत्रता की रक्षा के लिए जीवन में अनेकों कठिनाइयों को सहते हुए महाराणा प्रताप ने अदम्य साहस, शौर्य और पराक्रम का परिचय दिया. इसलिए उन्हें प्रातः स्मरणीय और वीर शिरोमणि कहा जाता है.