जयपुर. सरकारी विश्वविद्यालयों के कुलपति के चयन को लेकर उठने वाले विवाद नए नहीं हैं. पहले भी कुलपतियों के चयन और उनकी नियुक्तियों पर सवाल खड़े होते रहे हैं, लेकिन बीते कुछ साल में कुलपतियों की नियुक्ति में राज्य की सत्ताधारी पार्टी के करीबियों को ही मौका देने के मामले लगातार सुर्खियां बन रहे हैं. कई बार तो अपने चहेते व्यक्ति को कुलपति बनाने के लिए नियम कायदों को ताक में रखने के गंभीर आरोप भी सरकारों पर लगते हैं और यह कोई नई बात भी नहीं है. कुलपतियों के चयन और नियुक्तियों की प्रक्रिया पारदर्शी और निर्विवाद हो, इसके लिए विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने कई कड़े नियम कायदे भी तय किए हुए हैं, लेकिन देखने में आता है कि जब बात अपने चहेते को कुलपति पद पर बैठाने की आती है तो सरकार इन नियम कायदों को ताक पर रखने से भी गुरेज नहीं करती है, नतीजा यह होता है कि कुलपति की नियुक्ति से शुरू हुआ विवाद कई बार तो उनके पूरे कार्यकाल तक उनका पीछा नहीं छोड़ता है.
कुलपति के चयन के नियम कायदों के बारे में राजस्थान विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति डॉ. जेपी सिंघल का कहना है कि सरकारी विश्वविद्यालयों में कुलपति की नियुक्ति के जो नियम हैं, उन पर बहुत विचार किया गया, इसके बाद विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने काफी लंबे विचार विमर्श के बाद कुलपति के चयन की एक पूरी प्रक्रिया निर्धारित कर सबके सामने प्रस्तुत करने का प्रयत्न किया. यह प्रक्रिया तय करने के बाद इसे सभी राज्यों के पास भेजा गया. राजस्थान सरकार ने भी इस प्रक्रिया को 2017 में स्वीकार किया और राजस्थान के सभी विश्वविद्यालयों के जो अलग-अलग अधिनियम बने हुए हैं, उन तमाम विश्वविद्यालयों के अधिनियमों में उसे शामिल करते हुए उसे विश्वविद्यालयों के अधिनियमों का हिस्सा बना दिया गया. इस प्रक्रिया को विधानसभा के माध्यम से पारित करवाया गया था, इसलिए अब यह एक तरह से संविधान बन गया है.
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इसमें व्यवस्था की गई कि अच्छे क्रेडेंशियल के साथ-साथ विश्वविद्यालय का कुलपति बनने के लिए कम से कम 10 साल का प्रोफेसर का अनुभव अनिवार्य किया गया है. उसमें किसी तरह की शिथिलता देने की या छूट देने की कोई व्यवस्था नहीं है, इसलिए कहा जा सकता है कि ऐसे व्यक्ति जो 10 साल का प्रोफेसर का अनुभव नहीं रखते हैं, उन्हें विश्वविद्यालय का कुलपति नहीं बनाया जा सकता है. यह प्रावधान साफ तौर पर किया गया है. यह व्यवस्था इसलिए की गई, क्योंकि पूरे देश में कुलपतियों का जो चयन है, कुलपतियों की जो नियुक्ति है, उसकी जो प्रक्रिया है, उसमें समानता लाने का प्रयास किया गया, इसलिए ताकि यह व्यवस्था समान रूप से देश के सभी विश्वविद्यालयों के लिए लागू की जा सके और निश्चित अनुभव, ज्ञान रखने वाले और निर्धारित योग्यता रखने वाले व्यक्ति ही कुलपति बन सके.
यूजीसी की ओर से तय किए गए सभी मानक क्या राजस्थान में विश्वविद्यालयों के कुलपति की नियुक्ति में अपनाए जा रहे हैं? या इनमें शिथिलता दी जा रही है. इस सवाल के जवाब में पूर्व कुलपति डॉ. जेपी सिंघल कहते हैं कि यह बिल्कुल सही है कि राज्य सरकार अपने चहेतों को या अपनी विचारधारा से संबंध रखने वालों को कुलपति बनाने के लिए यूजीसी की ओर से तय नियमों में कहीं न कहीं शिथिलता दे देती है. वह कहते हैं कि इसका परिणाम बहुत भयानक होता है. उच्च शिक्षा में काम करने वाले जितने भी उच्च शिक्षण संस्थान हैं, उनके अगर शीर्ष अधिकारी को उसकी योग्यताओं को ध्यान में रखने के बजाए केवल अपनी विचारधारा या नजदीकी या अपनी मित्रता या अपनेपन के आधार पर अगर किसी को नियुक्ति दी जाती है तो यह शिक्षा का सबसे बड़ा नुकसान करने वाला कदम कहा जा सकता है.