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गहलोत सरकार के दो साल पूरे, तीसरे साल में रहेंगी ये 3 बड़ी चुनौतियां - gehlot government challenges in 3rd year tenure

17 दिसंबर 2018 को राजस्थान के मुख्यमंत्री के रूप में अशोक गहलोत ने तीसरी बार शपथ ली थी. आज 17 दिसंबर 2020 को गहलोत के कार्यकाल के दो साल पूरे होने जा रहे हैं और राजस्थान की कांग्रेस सरकार अब तीसरे साल में प्रवेश करने जा रही है. ऐसे में गहलोत सरकार के सामने तीन बड़ी चुनौतियां होंगी, जिन्हें पार करना अग्निपरीक्षा से कम नहीं होगा.

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तीसरे साल में गहलोत सरकार की चुनौती

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Published : Dec 17, 2020, 12:02 PM IST

Updated : Dec 17, 2020, 2:59 PM IST

जयपुर.राजस्थान की गहलोत सरकार को गुरुवार को 2 साल पूरे हो गए हैं और अब सरकार अपने तीसरे साल में प्रवेश कर रही है. प्रदेश की गहलोत सरकार इन 2 सालों में जनता के लिए किए गए कामों को गिना भी रही है और यह बता भी रही है कि उन्होंने चुनाव घोषणा पत्र के 50% से ज्यादा वादे पूरे करते हुए जनता की आकांक्षाओं पर खरा उतरने का प्रयास किया है लेकिन तीसरे साल में गहलोत सरकार के सामने 3 बड़ी चुनौतियां भी होगी, जिनकी अग्नि परीक्षा उन्हें पास करनी होगी.

गहलोत सरकार (Gehlot Government) के सामने तीन बड़ी चुनौतियां हैं. सहाड़ा, सुजानगढ़ और राजसमंद के उपचुनाव हो, या फिर गहलोत मंत्रिमंडल का विस्तार या फेरबदल हो या फिर राजनीतिक नियुक्तियां यह वह तीन चुनौतियां होंगी, जिनसे गहलोत सरकार को अपने तीसरे साल में सफलतापूर्वक निपटना होगा.

अब तक हुए 3 उपचुनाव में से दो में कांग्रेस ने की जीत दर्ज की है. अब होने वाले तीनों उपचुनाव में कांग्रेस के पास 2 सीटें थी. ऐसे में उन सीटों को बचाना उनके लिए चुनौती होगी. राजस्थान विधानसभा के 3 सदस्यों मंत्री मास्टर भंवर लाल मेघवाल, किरण महेश्वरी और कैलाश त्रिवेदी का निधन पूरे राजस्थान के लिए एक बुरी खबर थी लेकिन अब इससे आगे बढ़ते हुए इन सीटों पर 6 महीने के अंदर उपचुनाव होंगे. ऐसे में अप्रैल या मई महीने में इन तीनों सीटों पर उपचुनाव होंगे, जिन्हें जीतना सत्ताधारी दल कांग्रेस के लिए एक अग्निपरीक्षा से कम नहीं होगी.

उपचुनाव भी चुनौती

इन 3 सीटों में से 2 विधानसभा सीटों सुजानगढ़ और सहाड़ा पर कांग्रेस का कब्जा था. ऐसे में इन 3 सीटों में अपनी सीटों को बचाए रखना और राजसमंद के चुनाव में भी जीत दर्ज करना सत्ताधारी दल कांग्रेस के लिए एक बड़ी चुनौती होगा.

बता दें कि अब तक प्रदेश में 3 उपचुनाव हुए हैं. जिनमें रामगढ़, खींवसर और मंडावा शामिल हैं. इन तीन उपचुनाव में से कांग्रेस पार्टी ने 2 विधानसभा सीटों पर जीत दर्ज की थी. अब कांग्रेस के सामने फिर से 3 उपचुनाव की चुनौतियां खड़ी हो गई है.

पूरे साल होता रहा इंतजार कब होगी राजनीतिक नियुक्तियां

अब प्रदेश प्रभारी ने 31 जनवरी तक राजनीतिक नियुक्तियां पूरी करने का समय तय किया है. प्रदेश में जबसे गहलोत सरकार बनी है, उसके पहले साल से ही राजनीतिक नियुक्तियों को लेकर चर्चाएं होती रही है. विधानसभा चुनाव में बेहतर प्रदर्शन करने वाले कार्यकर्ता राजनीतिक नियुक्तियों के लिए तैयार हो ही रहे थे कि लोकसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी का प्रदर्शन खराब रहा. जिसके चलते 1 साल तक किसी ने राजनीतिक नियुक्तियों का नाम नहीं लिया. इसके बाद साल 2020 में सबको उम्मीद थी कि राजनीतिक नियुक्तियां कर दी जाएगी लेकिन राजस्थान में हुए राजनीतिक उठापटक के चलते राजनीतिक नियुक्तियां एक बार फिर से टल गई.

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अब गहलोत सरकार तीसरे साल में प्रवेश कर रही है तो कांग्रेस कार्यकर्ताओं का सब्र का बांध अब टूटने लगा है. ऐसे में प्रदेश प्रभारी अजय माकन ने यह तय कर दिया है कि 31 जनवरी तक सभी राजनीतिक नियुक्तियां पूरी कर ली जाएगी. अब कार्यकर्ताओं को इंतजार है कि उन्हें कब राजनीतिक नियुक्तियां मिलती है तो वहीं सरकार के सामने चुनौती है कि वह कैसे सभी गुटों को साथ में लेकर यह राजनीतिक नियुक्तियां करें.

सबसे बड़ी चुनौती होगा कैबिनेट विस्तार या फेरबदल

कैबिनेट विस्तार में पायलट कैंप के नेताओं को जगह दी गई तो विधायकों के नाराज होने का खतरा मंडरा रहा है. वहीं अगर पायलट कैंप (Pilot camp) को जगह नहीं दी गई तो फिर से बगावत का डर है. राजस्थान में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत (CM Ashok Gehlot)का दूसरा साल काफी चुनौतीपूर्ण रहा और उसमें कांग्रेस पार्टी के ही विधायकों के बगावत कर देने से राजस्थान की कांग्रेस सरकार एक बार मुश्किल में आ गई. हालांकि, कांग्रेस आलाकमान के बीच बचाव के बाद अब राजस्थान में सब कुछ ठीक नजर आ रहा है लेकिन राजनीतिक उठापटक के समय पार्टी और सरकार में अपने पद गंवा चुके सचिन पायलट (Sachin , विश्वेंद्र सिंह, रमेश मीणा, मुकेश भाकर और राकेश पारीक को फिर से एडजस्ट करना मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के लिए एक बड़ी चुनौती होगा.

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जिस तरीके से 34 दिन की बाड़ेबंदी में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का साथ देने वाले विधायकों को सत्ता में भागीदारी का आश्वासन दिया गया था. उन विधायकों को अगर सत्ता में भागीदारी नहीं मिली तो एक नया विरोधी गुट भी पैदा होने का खतरा हो जाएगा. वहीं अगर पायलट कैंप के विधायकों को शामिल नहीं किया गया तो फिर से बगावत का खतरा हो जाएगा. ऐसे में अपने तीसरे साल की सबसे बड़ी अग्निपरीक्षा अशोक गहलोत के सामने कैबिनेट फेरबदल और विस्तार की ही होगी.

Last Updated : Dec 17, 2020, 2:59 PM IST

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