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Published : Jun 26, 2021, 7:32 PM IST

Updated : Jun 26, 2021, 11:09 PM IST

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Special: 20 लाख विद्यार्थियों का भविष्य दांव पर, उच्च शिक्षा की परीक्षा पर संशय बरकरार

कोरोना संक्रमण ने शैक्षणिक ढांचे को बुरी तरह से प्रभावित किया है. हालात ये हैं कि डेढ़ साल से विद्यार्थियों ने स्कूल-कॉलेज का मुंह ही नहीं देखा है. बिना परीक्षा के ही सबको प्रमोट कर दिया गया लेकिन इस साल उच्च शिक्षा के विद्यार्थियों की परीक्षाओं को लेकर असमंजस बरकरार है. पिछले दिनों हुई बैठक में भी इस पर निर्णय नहीं लिया जा सका है. ऐसे में 20 लाख विद्यार्थियों का भविष्य दांव पर है.

विद्यार्थियों का भविष्य दांव पर

जयपुर. कोरोना संकट के इस दौर में शैक्षणिक ढांचा बुरी तरह से प्रभावित हुआ है. कोविड-19 के कारण पिछले साल स्नातक के प्रथम और द्वितीय वर्ष के विद्यार्थियों को प्रमोट किया गया था, जबकि अंतिम वर्ष के विद्यार्थियों की परीक्षाएं हुईं थीं. इसी तरह स्नातकोत्तर में भी उत्तरार्द्ध के ही विद्यार्थियों की परीक्षा हुईं थी, जबकि पूर्वार्द्ध के विद्यार्थियों को प्रमोट कर दिया गया था. संक्रमण की दूसरी लहर के चलते इस साल अब तक उच्च शिक्षा की परीक्षाओं को लेकर संशय बरकरार है.

ऐसे में प्रदेश के करीब 20 लाख विद्यार्थियों का भविष्य दांव पर लगा है. इनके आगे की पढ़ाई और नौकरी के सपने पर भी फिलहाल ब्रेक लगा हुआ है. क्योंकि जब तक उनकी परीक्षा नहीं हो जाती है और परिणाम नहीं आ जाता है, तब तक ये विद्यार्थी न तो किसी अन्य उच्च कक्षाओं में प्रवेश ले सकते हैं और न ही जॉब के लिए आवेदन कर सकते हैं.

विद्यार्थियों का भविष्य दांव पर

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दरसअल, कोरोना संकट के दौर में कॉलेज और विश्वविद्यालयों की परीक्षा होगी या नहीं, इस पर फैसला करने के लिए 25 मई को एक उच्च स्तरीय कमेटी का गठन किया गया था. इस कमेटी ने 10 जून को अपनी रिपोर्ट उच्च शिक्षा मंत्री को सौंपी थी. इसके बाद कमेटी की ओर से दिए गए प्रस्तावों पर विचार कर मुख्यमंत्री के स्तर पर यह फैसला लिया जाना है कि परीक्षा होगी या नहीं. विभागीय सूत्रों का कहना है कि इस कमेटी ने प्रस्ताव दिया है कि स्नातक प्रथम और द्वितीय वर्ष के परीक्षार्थियों को प्रमोट किया जाए और अंतिम वर्ष के विद्यार्थियों की परीक्षा करवाई जाए.

हालांकि, जो प्रथम और द्वितीय वर्ष के विद्यार्थी यदि प्रमोट करने के फैसले से संतुष्ट नहीं होते हैं तो उनके लिए हालात सामान्य होने पर परीक्षा करवाए जाने का विकल्प भी इस प्रस्ताव में दिया गया है. अब बताया जा रहा है कि राजस्थान सरकार ने विश्वविद्यालय अनुदान आयोग को पत्र लिखकर इस संबंध में राय मांगी है.

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20 लाख परीक्षार्थी को उठाना पड़ रहा खामियाजा

उच्च शिक्षा की परीक्षाओं को लेकर जो स्थिति है उसका खामियाजा प्रदेश के करीब 20 लाख विद्यार्थियों को उठाना पड़ रहा है. शोध विद्यार्थी सज्जन सैनी का कहना है कि सरकार को तुरंत प्रभाव से इस मसले पर निर्णय लेना चाहिए. क्योंकि सभी स्नातक और स्नातकोत्तर के विद्यार्थी हैं और वह मानसिक रूप से भी अब परेशान हो रहे हैं. क्योंकि कोरोना काल में पढ़ाई का ढांचा बिगड़ चुका है. इससे विद्यार्थी त्रस्त हैं. एक तरफ सरकार भर्तियां निकाल कर भर्ती परीक्षाओं की तिथि की घोषणा कर रही है. उनमें स्नातक और स्नातकोत्तर योग्यता निर्धारित है. ऐसे में प्रतियोगी परीक्षाओं के साथ ही सरकार को कॉलेज और विश्वविद्यालयों की परीक्षाओं को लेकर भी रुख साफ करना चाहिए.

विद्यार्थियों का कहना है कि यदि परीक्षा करवानी हो तो उनकी तारीख की घोषणा जल्द की जाए या फिर जो निर्णय करना हो वह जल्द किया जाए. इसमें देरी होने से विद्यार्थियों का नुकसान हो रहा है. उन्होंने यह भी कहा है कि यदि ऑफलाइन परीक्षा करवाई जाती है तो उससे पहले विद्यार्थियों और स्टाफ को वैक्सीनेट करना चाहिए. ताकि संक्रमण का खतरा नहीं रहे.

दूरगामी परिणाम को देखते हुए लिया जाए निर्णय

अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के प्रदेश मंत्री होशियार मीणा कहते हैं कि कॉलेज की परीक्षाओं को लेकर उच्च शिक्षा विभाग की ओऱ से अभी तक स्थिति स्पष्ट नहीं की गई है. विद्यार्थी असमंजस की स्थिति में हैं. हालांकि, वे विद्यार्थियों का मूल्यांकन करवाने के पक्ष में हैं चाहे उसकी प्रक्रिया कोई भी हो. उनका कहना है कि जिस तरह से पिछले साल प्रमोट किए गए विद्यार्थियों की अंकतालिका में कोरोना के कारण प्रमोटेड शब्द लिखा गया. यह विद्यार्थियों के भविष्य के साथ खिलवाड़ है. उनका कहना है कि सही माध्यम से विद्यार्थियों का मूल्यांकन होना चाहिए. भले ही परीक्षा ऑफलाइन करवाई जाए या ऑनलाइन. उनका कहना है कि सरकार जो भी फैसला लें वह विद्यार्थियों के भविष्य और दूरगामी परिणामों को देखते हुए लिया जाना चाहिए.

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सीएम स्तर से लंबित है निर्णय

राजस्थान विश्वविद्यालय की प्रवेश संयोजक डॉ. रश्मि जैन का कहना है कि कोरोना संकट के चलते पिछले साल प्रथम और द्वितीय वर्ष के विद्यार्थियों को प्रमोट किया गया था और सिर्फ अंतिम वर्ष के विद्यार्थियों की परीक्षा हो पाई थी. इस साल अभी तक संशय बरकरार है कि उच्च शिक्षा के विद्यार्थियों की परीक्षा होगी या नहीं. इस पर फैसला लेने के लिए बनाई गई कमेटी ने अपनी रिपोर्ट दे दी है और यह मामला फिलहाल सरकार के स्तर पर लंबित है.

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उनका कहना है कि परीक्षा करवाना या नहीं यह तो हालात पर निर्भर करता है. लेकिन विद्यार्थियों के भविष्य के लिहाज से यह निश्चित तौर पर चिंताजनक है. उनका कहना है कि ऑनलाइन क्लासेज तो करवाई जा रही हैं, लेकिन इससे कितने विद्यार्थी जुड़ पाते हैं यह बड़ा सवाल है. ऑनलाइन पढ़ाई में वन वे ट्रैफिक रहता है. जिसमें बच्चों का प्रॉपर फीडबैक नहीं मिल पाता है. इससे उनका लर्निंग आउटकम प्रभावित हुआ है जिसके बारे में हमें गंभीरता से सोचने की आवश्यकता है. प्रथम वर्ष के बाद अब द्वितीय वर्ष में भी यदि विद्यार्थी बिना परीक्षा प्रमोट किए जाते हैं तो स्नातक के विद्यार्थियों का दो साल तक का मूल्यांकन ही नहीं पाएगा.

परीक्षा प्रणाली पर भी उठाता है सवाल

डॉ. रश्मि जैन का कहना है कि यह हमारी परीक्षा प्रणाली पर भी सवाल खड़ा कर रहा है. परीक्षा इसलिए ली जाती है ताकि विद्यार्थियों के लर्निंग आउटकम का मूल्यांकन किया जा सके. जब मूल्यांकन ही नहीं होगा तो उसकी डिग्री पर भी असर पड़ेगा. कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर अब कम होती दिख रही है और सरकार लगातार अनलॉक की नई गाइड लाइन जारी कर रही है, लेकिन कोरोना वायरस के डेल्टा प्लस वेरिएंट की प्रदेश में आहट के साथ एक बार फिर विद्यार्थियों के माथे पर चिंता की लकीरें दिखने लगी हैं.

Last Updated : Jun 26, 2021, 11:09 PM IST

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