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नई शिक्षा नीति लागू करने के लिए 9 सदस्यों की कमेटी बनेगी, शिक्षकों को जगह न मिलने का विरोध - Teachers annoyed

केंद्र सरकार की ओर से लाई गई नई शिक्षा के क्रियान्वयन के लिए जिला स्तर पर 9 सदस्यों की जिला स्तरीय क्रियान्वयन समिति बनाने की मंजूरी सरकार ने दी है. इसमें शिक्षक प्रतिनिधियों को शामिल नहीं किया गया है. इससे शिक्षक समुदाय में रोष है.ऐसे में इस समिति का विरोध भी शुरू हो गया है.

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नई शिक्षा नीति के लिए कमेटी में शिक्षकों को नहीं मिली जगह

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Published : May 18, 2021, 7:48 PM IST

जयपुर. केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय की ओर से लाई गई नई शिक्षा नीति 2020 के राजस्थान में क्रियान्विति के लिए पहल की गई है. इसकी लिए जिला स्तरीय क्रियान्वयन समिति के गठन के लिए सरकार ने मंजूरी दे दी है. इस संबंध में सरकार की ओर से जारी आदेश के अनुसार हर जिले में जिला कलेक्टर इस समिति के अध्यक्ष होंगे.

मुख्य जिला शिक्षा अधिकारी, डाइट प्रधानाचार्य, जिला शिक्षा अधिकारी (माध्यमिक), जिला शिक्षा अधिकारी (प्राथमिक), अध्यक्ष की ओर से नामित तीन मुख्य ब्लॉक शिक्षा अधिकारी, एकीकृत बाल विकास योजना के उपनिदेशक, दो गैर सरकारी संगठनों के प्रतिनिधि और समग्र शिक्षा के अतिरिक्त जिला परियोजना समन्वयक को इस समिति में सदस्य बनाया गया है. किसी अन्य विभाग के विशिष्ट प्रतिनिधि को भी कलेक्टर इस समिति में शामिल कर सकेंगे, लेकिन समिति में शिक्षकों को जगह नहीं दिए जाने से शिक्षक समुदाय में रोष है.

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राजस्थान प्राथमिक माध्यमिक शिक्षक संघ के प्रदेश उपाध्यक्ष विपिन प्रकाश शर्मा का कहना है कि धरातल पर क्या हो रहा है और क्या होना चाहिए, यह एक शिक्षक बेहतर तरीके से जान सकता है. जो नीतियां बनती हैं, उनके क्रियान्वयन में भी शिक्षकों की अहम भूमिका होती है. इसलिए जिला स्तरीय क्रियान्वयन समिति में शिक्षक या शिक्षक संघों के प्रतिनिधियों को शामिल किया जाना चाहिए था. लेकिन सरकार ने इस पर ध्यान नहीं दिया है.

उनका यह भी कहना है कि आंगनबाड़ी के रूप में अब तक अलग से संचालित पूर्व प्राथमिक कक्षाओं को स्कूल परिसर में ही संचालित करने पर नई शिक्षा नीति में जोर दिया गया है, लेकिन यह व्यवस्था राजस्थान के कई स्कूलों में पहले से ही लागू है. कई स्कूलों में आंगनबाड़ी मर्ज कर दी गई है. उन्होंने प्रदेश में शिक्षकों के रिक्त पदों का मामला उठाते हुए कहा कि जब प्रदेश में करीब एक लाख शिक्षकों के पद रिक्त हैं तो शिक्षक-विद्यार्थी अनुपात सुधारने की बात बेमानी है. उनका कहना है कि शिक्षक-विद्यार्थी अनुपात संबंधी नियमों का पालन नहीं होने से शिक्षा की गुणवत्ता पर असर होना भी लाजिमी है.

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