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बाबरी विध्वंस पर यूपी के पूर्व डीजीपी बोले- नहीं था कोई राजनैतिक दबाव

6 दिसंबर 1992 को कारसेवकों ने विवादित ढांचे को गिरा दिया था. उस समय डीजीपी रहे विलास मणि त्रिपाठी ने ईटीवी से खास बातचीत में उस समय की स्थिति के बारे में बताया.

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पूर्व डीजीपी विलास मणि त्रिपाठी

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Published : Aug 3, 2020, 9:18 PM IST

उत्तर प्रदेश/जयपुर. 6 दिसंबर 1992 की तारीख को अयोध्या में लाखों की संख्या में पहुंचे कारसेवकों ने विवादित ढांचे को गिरा दिया था. इस घटना के बाद जहां एक ओर उत्तर प्रदेश की राजनीति में बड़ा बदलाव देखने को मिला, वहीं तात्कालिक सरकार सहित उत्तर प्रदेश पुलिस पर भी सवालिया निशान खड़े हुए थे. जिस तरह से अयोध्या में कारसेवकों ने ढांचे के अंदर पहुंचकर तोड़फोड़ की इससे स्पष्ट है कि पुलिस कारसेवकों को रोकने में नाकामयाब रही थी. ऐसे में सवाल उठना लाजमी है कि क्या पुलिस पर कोई राजनीतिक दबाव था या फिर पुलिस ने अपनी जिम्मेदारियों को बखूबी नहीं निभाया और लापरवाही की? इन सभी सवालों के जवाब जानने के लिए ईटीवी भारत ने यूपी के तात्कालिक डीजीपी रहे विलास मणि त्रिपाठी से खास बातचीत की.

पूर्व डीजीपी की ईटीवी भारत से खास बातचीत

'नहीं था कोई राजनीतिक दबाव'

पूर्व डीजीपी विलास मणि त्रिपाठी ने बताया कि अयोध्या पुलिस कारसेवकों को रोकने में कामयाब नहीं रही. नतीजा यह हुआ कि कारसेवक ढांचे के अंदर पहुंच गए और तोड़फोड़ की गई. उस समय अयोध्या में भारी पुलिस बल तैनात किया गया था. पुलिस पर राजनीतिक दबाव को लेकर पूछे गए एक सवाल के जवाब में तात्कालिक डीजीपी विलास मणि त्रिपाठी ने बताया कि पुलिस के ऊपर कोई राजनीतिक दबाव नहीं था. तात्कालिक मुख्यमंत्री कल्याण सिंह द्वारा कारसेवकों पर गोली न चलाने की बात भी डीजीपी को घटना के दौरान ही पता चली थी. पूर्व डीजीपी ने बताया कि उन्होंने इस बात का विरोध किया था और कहा था कि पहले से ही पुलिस को यह संदेश देना ठीक नहीं होगा, बाद में कारसेवकों में महिला और बच्चे शामिल होने की बात सामने आई तो उन्हें भी लगा कि पूर्व सीएम का फैसला ठीक है. तात्कालिक सीएम का मानना था कि भीड़ में बच्चे व महिलाएं भी हैं, ऐसे में गोली चलाने से बड़ा नुकसान हो सकता है.

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'नहीं मिला था इंटेलिजेंस इनपुट'

तात्कालिक डीजीपी विलास मणि त्रिपाठी ने बताया कि घटना से पहले पुलिस को कोई इंटेलिजेंस इनपुट नहीं मिला था. सुप्रीम कोर्ट की ओर से कारसेवकों की कारसेवा के लिए अनुमति दी गई थी और जगह भी निर्धारित थी. लिहाजा हमें या उम्मीद थी कि भारी संख्या में कारसेवक वहां पहुंच सकते हैं, जिसको लेकर इंतजाम किए गए थे. भारी संख्या में अयोध्या में फोर्स तैनात की गई थी. पूर्व डीजीपी ने कहा कि इस बात का अंदाजा नहीं था कि कारसेवक ढांचे के अंदर पहुंचकर ढांचा गिराने का भी काम करेंगे. इस बात का अंदाजा न होने से पुलिस से चूक हुई. अगर शुरुआती दौर में ही अयोध्या पहुंच रहे हैं कारसेवकों को रोका जाता तो शायद इस घटना को रोकने में पुलिस कामयाब रहती.

'पूर्व सीएम ने कहा गोली चलाने से होगा भारी नुकसान'

कल्याण सिंह के रवैये व उनकी मंशा से जुड़े सवाल के जवाब में तात्कालिक डीजेपी विलास मणि त्रिपाठी ने बताया कि हम लगातार मुख्यमंत्री के संपर्क में थे, लेकिन उनकी बातचीत से कभी भी ऐसा नहीं लगा कि वह कारसेवकों के सहयोग में काम कर रहे हैं. घटना के दिन भी गोली न चलाने को लेकर उन्होंने तर्क दिया था कि भीड़ में बच्चे और महिलाएं हैं, अगर गोली चलती है तो बड़ा नुकसान हो सकता है. लिहाजा पुलिस बिना गोली चलाए बिना ही भीड़ को नियंत्रित कर रही थी.

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'पूर्व सीएम को भी नहीं था अंदाजा'

6 दिसंबर 1992 के एक दिन पहले लखनऊ स्थित कालिदास मुख्यमंत्री आवास पर तात्कालिक डीजीपी विलास मणि त्रिपाठी ने पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह से मिलने पहुंचे थे. जहां पर बीजेपी नेता मुरली मनोहर जोशी भी मौजूद थे. इस दौरान कल्याण सिंह ने तात्कालिक डीजीपी को देखते हुए ही कहा कि आप परेशान न हों, अयोध्या में किसी तरह की अराजकता नहीं होगी. तात्कालिक डीजीपी विलास मणि त्रिपाठी ने कहा कि मुख्यमंत्री के इस व्यवहार से मैं कह सकता हूं कि पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह अयोध्या में किसी तरह की अराजकता नहीं चाहते थे और उन्हें भी अंदाजा नहीं था कि कारसेवक ढांचे के अंदर पहुंचकर ढांचा गिराने का काम करेंगे.

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