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Exclusive: गली-मोहल्लों में सिक्योरिटी गार्ड की तरह बच्चों के अधिकारों के लिए काम करने की जरूरत: मनन चतुर्वेदी

दुनिया में हर 5 मिनट में हिंसा के कारण एक बच्चे की मौत हो जाती है. लॉकडाउन में भी बच्चों के साथ होने वाले अपराध पर लगाम नहीं लगा. ऐसे में International Day of Innocent Children victims of aggression पर बाल संरक्षण आयोग की पूर्व अध्यक्ष मनन चतुर्वेदी ने बच्चों को हिंसा से संरक्षित करने के उपायों पर बातचीत की.

International Day of Innocent Children victims of aggression, Jaipur News
बाल संरक्षण आयोग की पूर्व अध्यक्ष मनन चतुर्वेदी Exclusive interview

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Published : Jun 4, 2021, 3:34 PM IST

जयपुर. 4 जून को इंटरनेशनल डे ऑफ इनोसेंट चिल्ड्रेन विक्टिम्स ऑफ अग्रेशन डे मनाया जाता है. इस दिन आक्रामकता का शिकार हुए मासूम बच्चों के अधिकारों और संरक्षण की बात होती है. वर्तमान में बच्चों के संरक्षण को लेकर किस तरह से काम हो रहा है और क्या होने चाहिए, इसको लेकर बाल संरक्षण आयोग की पूर्व अध्यक्ष मनन चतुर्वेदी ने ईटीवी भारत से खास बातचीत की. उन्होंने कहा कि किसी एक दिन ही बच्चों के अधिकारों की बात नहीं होने चाहिए. हमें गली-मोहल्लों में सिक्योरिटी गार्ड की तरह इन बच्चों के अधिकारों के लिए काम करने की जरूरत है.

बाल संरक्षण आयोग की पूर्व अध्यक्ष मनन चतुर्वेदी Exclusive interview पार्ट 1

क्यों मनाया जाता है International Day of Innocent Children victims of aggression

संयुक्त राष्ट्र महासभा (United Nations) ने 19 अगस्त, 1982 से हर साल 4 जून को बच्चों का Innocent Children victims of aggression दिवस के रूप में घोषित किया था. इस दिवस का उद्देश्य आक्रमण के शिकार हुए बच्चों को यौन हिंसा, अपहरण से बचाना और उनके अधिकारों की रक्षा करना है. जो बच्चे शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक शोषण के शिकार हैं, उनकी पीड़ा को समझते हुए उनकी स्थितियों में सुधार करने का उद्देश्य है.

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क्या वर्तमान में बच्चों पर होने वाली हिंसा की घटनाओं में कोई कमी आई है, क्या कोई कानून है, जो बच्चों के अधिकार के लिए काम करता है ? इसको लेकर ईटीवी भारत ने बाल संरक्षण आयोग के पूर्व अध्यक्ष मनन चतुर्वेदी से बात की. मनन चतुर्वेदी ने इस दिवस को मनाने को लेकर चर्चा की. जिसमें वे कहती हैं कि साल 1982 में हुए लेब्नान वॉर के बाद कई लोग प्रभावित हुए थे. उस वॉर के दौरान बच्चों ने भी बहुत कुछ खोया था और उत्पीड़न का सामना भी किया था. इसके बाद संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 19 अगस्त, 1982 को हर साल 4 जून को इस दिवस के रूप में घोषित किया. इस दिन बच्चों पर होने वाली घटनों पर चर्चा हुई. यही वजह रही कि इसके बाद से बच्चों के अधिकारों को लेकर कई कानून और नियम बने, उनके न्याय को लेकर आवाजें उठने लगी.

बाल संरक्षण आयोग की पूर्व अध्यक्ष मनन चतुर्वेदी Exclusive interview पार्ट 2

मनन चतुर्वेदी कहती हैं कि बच्चों को हिंसा से बचाने के लिए ऐसा एक दिन ही क्यों हो. हर दिन बच्चों के अधिकारों और संरक्षण के लिए काम करने की जरूरत है. राजस्थान में आए दिन हम घटनाएं सुनते हैं, जैसे 3 साल की मासूम के साथ दुष्कर्म हो गया, माता-पिता के झगड़े की वजह से बच्चे ने कुछ गलत कदम उठा लिया, बच्चों से सड़कों पर भीख मंगवाई जा रही है. ऐसे अनेकों घटनाएं लगातार हमारे सामने आ रही है. इन सभी समस्या को कोई एक दिन की चर्चा से खत्म नहीं किया जा सकता है. इसके लिए हर दिन हमें गली-मोहल्लों में सिक्योरिटी गार्ड की तरह इन बच्चों के अधिकारों के लिए काम करने की जरूरत है.

वर्तमान में देश एक बार फिर उसी दौर से गुजर रहा है

मनन चतुर्वेदी ने कहती हैं कि वर्तमान में विश्व कोरोना महामारी से जूझ रही है. दुनिया थमी पड़ी है, फिर भी मासूम बच्चों-बच्चियों के साथ गुनाह नहीं रुक रहा है. कोरोना संक्रमण की वजह से लगे लॉकडाउन में घरेलू हिंसा की घटनाएं लगातार बढ़ी है. इसका सबसे बड़ा असर मासूम बच्चों पर हुआ है. इसके साथ ही प्रदेश-देश में बड़ी संख्या में बच्चे अनाथ हुए हैं. इनके लिए एसी-दफतर बैठ कर काम नहीं किया जा सकता. जरूरत है कि जिम्मेदार दफ्तर से बाहर निकले, तब इन बच्चों की पीड़ा दिखाई देगी.

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उन्होंने कहा कि ये बच्चे अपनी पीड़ा की आवाज नहीं उठा सकते. इसलिए हम सब को इनकी आवाज बननी होगी. मनन बताती हैं कि मासूमों के साथ जितनी भी घटनाएं सामने आ रही हैं, उनमें ज्यादातर मामलों में परिचित या आसपास के लोग होते हैं. बच्चे अच्छे-बुरे के बारे में नहीं जानते, वे मासूम होते हैं. उन्हें तो ये भी पता नहीं होता कि जिस शख्स को अपना मानकर वे उसके साथ हैं, वहीं उनका साथ गलत करेंगे. अत्याचार में दुष्कर्म की सिर्फ घटना ही नहीं है बल्कि मेंटल हैरेसमेंट, मेंटली टॉर्चर और मेंटल ट्रॉमा जैसी बहुत सारी घटनाएं हैं, जिनसे बच्चे प्रताड़ित हैं. इन वारदात को कम करने के लिए सभी को साथ मिलकर काम करना होगा.

बच्चों के खिलाफ हिंसा पर एक नजर

दुनिया भर में 1 बिलियन से अधिक बच्चे हिंसा से प्रभावित

हर साल दुनिया के 50 प्रतिशत बच्चे हिंसा का अनुभव करते हैं. हर 5 मिनट में, दुनिया में कहीं ना कहीं एक बच्चे की हिंसा से मौत होती है. 18 साल की आयु से पहले 10 में से एक बच्चे का यौन शोषण किया जाता है. कोई भी बच्चा ऑनलाइन हिंसा का शिकार हो सकता है. दुनिया भर में 246 मिलियन बच्चे हर साल स्कूल-संबंधित हिंसा से प्रभावित होते हैं. हर तीन में से एक छात्र को उसके साथियों की ओर से धमकाया जाता है और 10 में से कम से कम 1 बच्चा साइबर बुलिंग का शिकार होता है.

संयुक्त राष्ट्र, 2019 की एक रिपोर्ट के मुताबिक 10 में से 9 बच्चे ऐसे देशों में रहते हैं, जहां शारीरिक दंड पूरी तरह से प्रतिबंधित नहीं है. 732 मिलियन बच्चों को कानूनी संरक्षण के बिना छोड़ दिया गया है.

भारत में बाल संरक्षण के कड़े नियम

भारत में पिछले कुछ साल में बाल हिंसा को रोकने के लिए कई कानून में बदलाव किए गए हैं. प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रन फ्रॉम सेक्सुअल ओफ्फेंसेस एक्ट (पॉक्सो) एक्ट लागू किया गया. इस कानून के तहत अलग-अलग अपराध में अलग-अलग सजा का प्रावधान है. इसके अलावा बाल यौन अपराध संरक्षण नियम, 2020 जागरुकता और क्षमता निर्माण के तहत केंद्र और राज्य सरकारों को बच्चों के लिए आयु-उपयुक्त शैक्षिक सामग्री और पाठ्यक्रम तैयार करने के लिए कहा गया है.

बाल यौन अपराध संरक्षण अधिनियम में बच्चों के साथ होने वाली यौन हिंसा को भी परिभाषित किया गया है. ऐसे मामलों में बच्चों को हर स्तर पर क्या जरूरी सहायता देनी है. ये भी विस्तार से दिया गया है. चाइल्ड पोर्नोग्राफी से जुड़े प्रावधानों को भी कठोर किया गया है.

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