जयपुर. 4 जून को इंटरनेशनल डे ऑफ इनोसेंट चिल्ड्रेन विक्टिम्स ऑफ अग्रेशन डे मनाया जाता है. इस दिन आक्रामकता का शिकार हुए मासूम बच्चों के अधिकारों और संरक्षण की बात होती है. वर्तमान में बच्चों के संरक्षण को लेकर किस तरह से काम हो रहा है और क्या होने चाहिए, इसको लेकर बाल संरक्षण आयोग की पूर्व अध्यक्ष मनन चतुर्वेदी ने ईटीवी भारत से खास बातचीत की. उन्होंने कहा कि किसी एक दिन ही बच्चों के अधिकारों की बात नहीं होने चाहिए. हमें गली-मोहल्लों में सिक्योरिटी गार्ड की तरह इन बच्चों के अधिकारों के लिए काम करने की जरूरत है.
क्यों मनाया जाता है International Day of Innocent Children victims of aggression
संयुक्त राष्ट्र महासभा (United Nations) ने 19 अगस्त, 1982 से हर साल 4 जून को बच्चों का Innocent Children victims of aggression दिवस के रूप में घोषित किया था. इस दिवस का उद्देश्य आक्रमण के शिकार हुए बच्चों को यौन हिंसा, अपहरण से बचाना और उनके अधिकारों की रक्षा करना है. जो बच्चे शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक शोषण के शिकार हैं, उनकी पीड़ा को समझते हुए उनकी स्थितियों में सुधार करने का उद्देश्य है.
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क्या वर्तमान में बच्चों पर होने वाली हिंसा की घटनाओं में कोई कमी आई है, क्या कोई कानून है, जो बच्चों के अधिकार के लिए काम करता है ? इसको लेकर ईटीवी भारत ने बाल संरक्षण आयोग के पूर्व अध्यक्ष मनन चतुर्वेदी से बात की. मनन चतुर्वेदी ने इस दिवस को मनाने को लेकर चर्चा की. जिसमें वे कहती हैं कि साल 1982 में हुए लेब्नान वॉर के बाद कई लोग प्रभावित हुए थे. उस वॉर के दौरान बच्चों ने भी बहुत कुछ खोया था और उत्पीड़न का सामना भी किया था. इसके बाद संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 19 अगस्त, 1982 को हर साल 4 जून को इस दिवस के रूप में घोषित किया. इस दिन बच्चों पर होने वाली घटनों पर चर्चा हुई. यही वजह रही कि इसके बाद से बच्चों के अधिकारों को लेकर कई कानून और नियम बने, उनके न्याय को लेकर आवाजें उठने लगी.
मनन चतुर्वेदी कहती हैं कि बच्चों को हिंसा से बचाने के लिए ऐसा एक दिन ही क्यों हो. हर दिन बच्चों के अधिकारों और संरक्षण के लिए काम करने की जरूरत है. राजस्थान में आए दिन हम घटनाएं सुनते हैं, जैसे 3 साल की मासूम के साथ दुष्कर्म हो गया, माता-पिता के झगड़े की वजह से बच्चे ने कुछ गलत कदम उठा लिया, बच्चों से सड़कों पर भीख मंगवाई जा रही है. ऐसे अनेकों घटनाएं लगातार हमारे सामने आ रही है. इन सभी समस्या को कोई एक दिन की चर्चा से खत्म नहीं किया जा सकता है. इसके लिए हर दिन हमें गली-मोहल्लों में सिक्योरिटी गार्ड की तरह इन बच्चों के अधिकारों के लिए काम करने की जरूरत है.
वर्तमान में देश एक बार फिर उसी दौर से गुजर रहा है
मनन चतुर्वेदी ने कहती हैं कि वर्तमान में विश्व कोरोना महामारी से जूझ रही है. दुनिया थमी पड़ी है, फिर भी मासूम बच्चों-बच्चियों के साथ गुनाह नहीं रुक रहा है. कोरोना संक्रमण की वजह से लगे लॉकडाउन में घरेलू हिंसा की घटनाएं लगातार बढ़ी है. इसका सबसे बड़ा असर मासूम बच्चों पर हुआ है. इसके साथ ही प्रदेश-देश में बड़ी संख्या में बच्चे अनाथ हुए हैं. इनके लिए एसी-दफतर बैठ कर काम नहीं किया जा सकता. जरूरत है कि जिम्मेदार दफ्तर से बाहर निकले, तब इन बच्चों की पीड़ा दिखाई देगी.