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लॉकडाउन से बढ़ी चुनौतियां, निर्यात कारोबारियों ने सरकार को दिए सुझाव

वैश्विक महामारी कोरोना के संक्रमण को रोकने के लिए लगाए गए लॉकडाउन के बाद दुनिया भर के कारोबार के आगे चुनौतियां खड़ी हो गई है. निर्यात से जुड़े कारोबारियों का कहना है कि सरकार के दखल के बाद ही बेहतर हालात हो पाएंगे. कारोबारियों ने सरकार के लिए अहम सुझाव देते हुए इन चुनौतियों से पार पाने का रास्ता सुझाया है. पढ़ें पूरी खबर...

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निर्यात कारोबारियों ने सरकार को दिए सुझाव

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Published : Apr 28, 2020, 8:14 PM IST

जयपुर. लॉकडाउन के बाद दुनिया भर के कारोबार के आगे नए सिरे से खड़े होने की चुनौतियां है. ऐसे में राजस्थान में खनन के बाद दूसरा अहम कारोबार पर्यटन और इससे सीधे तौर पर जुड़ा हुआ जेवरात का कारोबार है. जयपुर राजस्थान की सबसे बड़ी जेम्स और ज्वेलरी की मंडी है और यहां भी कारोबारी चिंता में है. ऐसे में ज्वेलरी के साथ-साथ टेक्सटाइल और कार्पेट के निर्यात से जुड़े कारोबारियों ने सरकार के लिए अहम सुझाव देते हुए इन चुनौतियों से पार पाने का रास्ता सुझाया है.

निर्यात कारोबारियों ने सरकार को दिए सुझाव

बाहुबली समेत बॉलीवुड की कई फिल्मों में अपनी डिजाइनर ज्वेलरी के जरिए जयपुर के जेवरात कारोबार की धाक जमा चुके अम्रपाली ज्वेलर्स के फाउंडर और फेडरेशन ऑफ राजस्थान एक्सपोर्टर्स के अध्यक्ष राजीव अरोड़ा के मुताबिक जब से कोरोना वायरस जैसी महामारी से बचने के लिए देश में लॉकडाउन सोशल डिस्टेंसिंग की बात शुरू हुई तब से व्यापार उद्योग और निर्यात पर इसका सीधा असर देखने को मिला है. ऐसे में देश की जीडीपी में 7 फीसदी और निर्यात में 15 फीसदी का योगदान देने वाला जेम्स ज्वेलरी उद्योग भी इससे प्रभावित हुए बिना नहीं रह सका.

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जवाहरात का व्यापार है महत्वपूर्ण कड़ी

राजीव अरोड़ा का कहना है कि छोटे में मझोले उद्योग और असंगठित क्षेत्र का व्यापार लगभग सभी क्षेत्रों में देश की आर्थिक गतिविधियों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. ये रोजगार के अधिक अवसर देने के साथ-साथ आर्थिक विकास की धुरी को भी तय करता है. ऐसे में जवाहरात का व्यापार और मैन्युफैक्चरिंग को भी इसमें महत्वपूर्ण कड़ी समझा जाता है.

निर्यात क्षेत्र में देश का 40 फीसदी काम कुटीर उद्योगों से...

फेडरेशन ऑफ राजस्थान एक्सपोर्टर्स के अध्यक्ष ने बताया कि निर्यात के क्षेत्र में 40 फीसदी देश का काम कुटीर उद्योगों के माध्यम से होता है और राजस्थान में इसकी नींव काफी मजबूत है. बता दें कि करीब 70 फीसदी रोजगार प्रदेश में इसी माध्यम से सृजित होते हैं. ऐसे में लगता है कि मानो हम एक्शन मूवी देख रहे हो, जिससे जबरदस्त तबाही की कल्पना सच होती प्रतीत होती है और खत्म होने के बाद भी जर्जर अर्थव्यवस्था की जो तस्वीर नजर आती है वह भी कम भयावह नहीं होती. बार्कले बैंक का अनुमान है कि भारत की अर्थव्यवस्था की वृद्धि मात्र 2 फीसदी पर आ सकती है.

लॉकडाउन का असर

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एक आशावादी विचार धारा के रूप में हम सोचें कि विश्व की अर्थव्यवस्था इस संकट के बाद 1 वर्ष के बाद पटरी पर आने लगेगी. तब भी भारतीय छोटे उद्योगों के पास वह क्षमता नहीं होगी कि वे इस तगड़े झटके से उबर पाए. जबकि व्यापार-उद्योग बंद करने के आदेश हो और खर्चे जिनमें जीएसटी आयकर किराया कर्मचारियों की वेतन बिजली-पानी का खर्चा और बैंकों के ब्याज बदस्तूर जारी रहे.

सरकार के दखल से होंगे बेहतर हालात

राजीव अरोड़ा का कहना है कि निर्यात के क्षेत्र में ज्वेलरी, कपड़ा, कालीन और हस्तकला की सभी बड़ी प्रदर्शनयां दुनियाभर में निरस्त हो चुकी हैं. बड़े देश को जिनमें अमेरिका, इंग्लैंड, स्पेन, इटली और फ्रांस में लॉकडाउन है. निर्यात और आयात के पार्सल अटके हुए हैं. ऐसे में चीन का फिर से उत्पादन शुरू करने के कारण भारत के निर्यातकों पर संकट और अधिक गहरा चुका है. पहले ही हमारी अर्थव्यवस्था चुनौतियों से जूझ रही थी अब बचे हुए व्यापार पर भी चीन के सस्ते उस उत्पादन का सीधा असर अगर पड़ता है तो फिर सरकार के दखल से ही बेहतर हालात हो पाएंगे.

केंद्र और राज्य सरकार इन संस्थानों को बचा सकते हैं...

किसी भी देश में कोरोना वायरस जैसी महामारी से निपटने के लिए स्वास्थ्य सुविधाओं को दुरुस्त करना सरकारों का पहला दायित्व होता है. परंतु विकट हालात में अर्थव्यवस्था और उद्योग को मुश्किलों के बीच नहीं छोड़ा जा सकता है. अगर रोजगार सर्जन की इकाइयां ही कमजोर हो जाए तो फिर हालात कैसे होंगे और बेरोजगारी किस स्तर पर होगी यह समझा जा सकता है. ऐसे में व्यापार उद्योग और नौकरियों में छटनी लेयर ऑफ कमजोर मांग के चलते कई व्यापारिक संस्थान बंद होने के कगार पर जा सकते हैं. अगर केंद्र और राज्य सरकार मिलकर तुरंत निर्णय लें, इन संस्थानों को आईसीयू में जाने से बचाया जा सकता है.

सरकार के लिए सुझाव

  • करो की दरों में कमी, आयकर में छूट, जीएसटी की दरों का पुन: निर्धारण, विशेष प्रभावित क्षेत्र जैसे पर्यटन उद्योग को कुछ समय के लिए जीएसटी से बाहर करना.
  • सस्ती दर पर ऋण उपलब्ध करवाना, वर्तमान ऋण में कुछ महीने का मोरटोरियम, बाद में भी 1 वर्ष के लिए ब्याज दर में कमी.
  • एसआई व पीपीएफ का पूर्ण भुगतान सरकार के द्वारा और ईएसआई या सेस द्वारा एकत्रित फंड में से श्रमिकों के वेतन का पुनर्भरण औद्योगिक इकाइयों या श्रमिकों के खाते में वेतन का कुछ भाग सरकार द्वारा दिया जाना चाहिए. यह महत्वपूर्ण मांग है अप्रैल का महीना समाप्त हो रहा है और सरकार का कोई आदेश व्यापार और व्यापारियों को बचाने के लिए आगे नहीं आया.
  • चरणबद्ध तरीके से लॉकडाउन को समाप्त करना प्रथम चरण में औद्योगिक उत्पादन के लिए 50 फीसदी श्रमिकों को ही काम पर जाने की इजाजत, उनको सैनिटाइजर, साबुन, मास्क इत्यादि उपलब्ध करवाने की जिम्मेदारी उद्योग पर और उपलब्ध गाइडलाइन का पालन सुनिश्चित करना कर्फ्यू के बाहर की आबादी के व्यक्ति को ही इजाजत मिले.
  • श्रम कानून के संबंध में राज्य और केंद्र के स्तर पर जरूरी आदेश जारी करना जिसमें वेतन का डिफरमेंट व परिवर्तन की सुविधा हो.
  • ई-कॉमर्स के व्यापार को जरूरी हिदायतें के साथ चालू करना, जिससे की घर बैठे आम नागरिक को आवश्यक सामान उपलब्ध हो सकें.
  • यातायात के साधनों जो कि यात्री वह कार्गो दोनों के संवहन के लिए कार्य करें. जैसे रेलवे- हवाई जहाज को 50 फीसदी से कम क्षमता के साथ शुरू करना जब तक स्थिति सामान्य ना हो.
  • सर्विस में रिटेल सेक्टर में जरूरी सतर्कता और सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए कार्य को चरणबद्ध तरीके से शुरू किया जाना चाहिए.
  • सोने के दाम लगातार बढ़ रहे हैं क्योंकि अर्थव्यवस्था बुरी स्थिति में है, लेकिन लॉकडाउन के कारण अक्षय तृतीया पर जवाहरात का व्यापार नहीं हो सका, इस उद्योग के लिए सबसे महत्वपूर्ण समय होता है. ऐसे में ज्वेलरी कारोबार में भी करो के जरिए राहत दी जाए.

इन सुझावों के बाद भारतीय नागरिकों के व्यवहार पर भी तय होगा कि बाजार क्या रुख लेता है. किसी मजदूर की जिंदगी पटरी पर आएगी यह सब कारोबार पर ही तय होगा. उम्मीद ऐसे में यही है कि जिस तरह से विश्वयुद्ध के बाद जापान पटरी पर लौटा और 2008 की मंदी के बाद दुनिया भर के कारोबार ने वापसी की कुछ ऐसा ही इस महामारी के प्रकोप से बचने के बाद की स्थितियों में होगा.

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