जयपुर. अयोध्या राम जन्मभूमि विवाद अब निर्णायक मोड़ पर है और इस मसले पर सुप्रीम कोर्ट कभी भी फैसला सुना सकता है. अयोध्या विवाद में एक लंबी कानूनी लड़ाई चली है. इससे पहले इलाहाबाद हाई कोर्ट भी इसी मसले को लेकर अपना फैसला सुना चुका है. ऐसे में इस पूरे विवाद को लेकर क्या कानूनी पक्ष रहे. इसके बारे में विशेषज्ञ क्या कहते है, यह जानना बहुत जरूरी है.
ईटीवी भारत ने इस मसले के तमाम कानूनी पक्ष जानने के लिए विश्लेषक रमन नंदा से खास बातचीत की. नंदा ने ईटीवी की ओर से प्रश्नों पर खुलकर जवाब देते हुए तमाम कानूनी पक्षों को बड़े आासानी से समझाया. चलिए इसी क्रम में हम आपकों बताते है कि क्या प्रश्न थे और उनका क्या जवाब रहा.
सवाल: सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर इलाहबाद हाईकोर्ट का क्या असर होगा?
जवाब: इलाहबाद कोर्ट के फैसले के बाद ही सुप्रीम कोर्ट में अपील हुई थी. इलाहबाद हाईकोर्ट ने पाया कि इस टाइटल विवाद में तीन पार्टियां अधिकारी है. जिसमें रामलला विराजमान, निर्मोही अखाड़ा और मुस्लिम पार्टी है, और इसे देखते हुए इलाहबाद हाईकोर्ट ने पार्टिशियन का फैसला सुना दिया था.
जिसमें दो तिहाई भाग हिन्दू पक्षकारों को तो वहीं एक तिहाई मुस्लिम पक्षकारों के हक में दिया. लेकिन अपील के बाद अब सुप्रीम कोर्ट को यह तय करना होगा कि कौनसी पार्टी को मालिक घोषित किया जाए. साथ ही सुप्रीम कोर्ट को तय करना होगा कि इलाहबाद हाईकोर्ट का फैसला यदि सही था तो किस हद तक सही था और गलत था तो किस हद तक गलत था.
सवाल: कौनसी दलीलें अब तक दी गई है, जिसे देखकर लगता है कि यह फैसला जल्द आ जाएगा और कौनसे साक्ष्य महत्वपूर्ण रहे?
जवाब: आज ऐसे बहुत से कानून है जो पहले से अलग है, या अब नए बने है. चूंकि तथ्य ऐतिहासिक है तो उन पर क्या समसामायिक कानून के हिसाब से फैसले होंगे, यह सब सुप्रीम कोर्ट को देखना होगा. क्योंकि मामला मुगलकाल से भी जुड़ा है. विवादित ढांचे को ध्वस्त होने के बाद खुदाई में बहुत सारे तथ्य सामने निकलकर आए, जिनमें यह देखा गया कि वहां कितने लेयर थे. खुदाई में पाया गया कि 7 से 8 फीट चौड़ी दीवार थी. जिस पर वो ढांचा खड़ा था और इसीलिए वहां मस्जिद बनाने से पहले नींव डालने की जरूरत नहीं पड़ी होगी. लेकिन इन सब पर मुस्लिम पक्षकारों ने सवाल खड़ा किया
मुस्लिम पक्षकारों ने कहा कि खुदाई के दौरान काम कर रहे मजदूर हिंदू रहे, इसलिए कहा जा सकता है कि वे सबूतों का निर्माण कर दें. जिस पर इलाहबाद हाईकोर्ट ने गौर किया और कहा कि खुदाई में काम करने वाले मजदूरों में मुस्लिम अनुपात भी होना चाहिए. साथ ही एक फैसला यह भी हुआ कि हिन्दू और मुस्लिम पक्षकार अपना एक मनोनित आर्कियोलॉजिकल इतिहास विशेषज्ञ खुदाई के दौरान मौजूद रख सकते है. साथ ही दिन भर की खुदाई के बाद जो भी मिलेगा, उसको रजिस्टर में लिखा जाएगा और उस पर दोनों के साइन होंगे.