जयपुर.अपनी राह भटक अनजाने रास्ते पर निकल पड़ी नाबालिग की कहानी किसी हॉरर फिल्म सरीखी है. उसने 3 महीनों में दुनिया का वो बदरंग चेहरा देखा, जिससे वो अब बच तो निकली है, लेकिन शायद इसकी छाप उसके जेहन से सालों तक नहीं जा पाएगी. 3 महीने तक दैहिक शोषण का शिकार रही किशोरी से जब बात हुई तो उसका दर्द आंखों के रस्ते छलक आया. वो हर उस पल को खुरच कर फेंकना चाह रही है, जिसने उसको नरक में धकेल दिया. नरक ही कहती है वो! बोली- नरक ऐसा ही होता होगा. जहां अपनी बात कहने सुनने और सुनाने के कोई मायने नहीं होंगे. बस हाड़ मांस का मतलब होगा. मेरे साथ भी ऐसा ही हुआ. न मेरी मर्जी पूछी गई. न मुझे मौका दिया गया. बस इधर से उधर किसी सामान की तरह फेंका जाता रहा. दुख इस बात का भी है कि मेरा लगातार शोषण एक महिला के हाथों हुआ. नहीं जानती थी कि नाराज होकर घर से निकलने के बाद ऐसी दुर्गति होगी. अब लगता है मां-बाप के पास, घर में ही महफूज थी (Etv Bharat rescues Girl trafficked in Jaipur).
दरअसल, 3 महीने पहले नाबालिग (अब बालिग) पढ़ने का सपना पाले, परिवार की बंदिशों को तोड़ घर छोड़कर निकल गई (Girl trafficking in Rajasthan). बताती है कि घर में आए दिन झगड़े होते थे. मुझे पसंद नहीं था. मैं सबकुछ छोड़-छाड़कर जयपुर आ गई. जयपुर में सिंधी कैंप बस स्टैंड पर उसे एक लड़का मिला. उसने अपनी बातों के जाल में फंसा उसे दलाल सुनीता जाटव से मिलवाया. किशोरी को लगा कि उसे मां की ममता मिल गई. एकाध दिन तक सब ठीक रहा. दलाल की बेटियां भी थीं. धीरे-धीरे इन तीनों की हकीकत मासूम के सामने खुलने लगी. सुनीता इसे अपने साथ भरतपुर ले गई. यहीं से बर्बादी की दास्तां शुरू हुई.
भरतपुर से लिखी गई बर्बादी की कहानी: सुनीता जाटव इस नाबालिग बच्ची को भरतपुर में छोटू नाम के शख्स के पास ले गई, जहां उसने इसके साथ जबरन शारीरिक सम्बंध बनाए. फिर सुनीता उसे जयपुर लेकर आ गई. टॉर्चर का गंदा और बेहद घिनौना खेल जारी रहा. वेश्यावृत्ति के दलदल में उसे धकेल दिया गया. दलाल सुनीता ने पीड़िता को शराब पिलाई, नशे की हालत में महेंद्र नाम के शख्स से संबंध बनवाए. फिर एक-एक कर कइयों के सामने इसे परोसती रही.
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18 साल की हुई तो...:लगातार दैहिक शोषण होता रहा. ऐसा नहीं है कि उसने इस नरक से पीछा नहीं छुड़ाना चाहा या बचने की कोशिश नहीं की. कई बार की, लेकिन हर बार नाकाम रही. खुद को कोसती रही... पिटती और बर्बाद होने को अपनी नियति मान बैठी. हर दिन एक नए शख्स का शिकार बनती रही. 5 जुलाई को 18 साल की हुई. नाबालिग से बालिग होने के हक क्या होते हैं, ये समझ पाती इससे पहले इसका सौदा कर दिया गया. कीमत लगाई गई 5 लाख.
ईटीवी का मिला साथ हुई आजाद: जब चारों ओर से आजादी के रास्ते बंद हो गए. ना उम्मीदी ने घर कर लिया. 18 साल की किशोरी ने बिकना अपनी तकदीर समझ लिया तब ईटीवी भारत का साथ मिला. स्नेह आंगन और मानव तस्करी विरोधी यूनिट संग मिलकर बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ को असल मायने दिए. रेस्क्यू हुई तो काउंसलिंग में दिल का मवाद बह गया. महीनों बाद अपनी किस्मत पर और खुद पर विश्वास पैदा हो गया. ईटीवी भारत को सूचना मिली कि एक बच्ची को 5 लाख में बेचने की तैयारी है. हमने सकारात्मकता के साथ काम किया.
ऐसे किया ट्रैप:मानव तस्करी विरोधी यूनिट के सीआई धनराज मीणा, हेड कांस्टेबल रमेश मीणा , कांस्टेबल वंदना, स्नेह आंगन के विजय गोयल और ईटीवी भारत ने इनपुट के आधार पर प्लान तैयार किया. योजना के अनुसार एक टीम पहले सुनीता से मिली. बातों में उलझाया. उसे ट्रैप किया और धीरे-धीरे सच उगलवा लिया. जब कन्फर्म हो गया कि मुखबिर की सूचना सही है तो ट्रांसपोर्ट नगर पुलिस के सहयोग से सुनीता को गिरफ्तार कर लिया और बच्ची को दरिंदों के चंगुल से मुक्त करा दिया.