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Exclusive : हम आदिवासी ना हिन्दू ना किसी और धर्म के, 'भील राज्य' का नक्शा तैयार...मांग पुरानी : राजकुमार रोत - religion controversy in rajasthan

धर्म के नाम पर सियासत के बीच अब राजस्थान में एक बड़ा सियासी सवाल बनकर खड़ा हुआ कि आखिर आदिवासियों का 'धर्म' क्या है ? विधानसभा में कांग्रेस विधायक गणेश घोघरा के आदिवासियों को हिंदू ना मानने का बयान विवादों में आया तो वहीं अब बीटीपी विधायक राजकुमार रोत ने भी तर्कों के साथ इसका समर्थन किया है. धर्म को लेकर छिड़े इस विवाद पर क्या है भारतीय ट्राइबल पार्टी की राय और क्या सोचते हैं उसके नेता, जानिये विधायक राजकुमार रोत की ईटीवी भारत के साथ इस खास बातचीत में...

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धर्म के नाम पर सियासत

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Published : Mar 11, 2021, 4:03 PM IST

जयपुर. कांग्रेस विधायक गणेश घोघरा के आदिवासियों को हिंदू ना मानने के बयान का बीटीपी विधायक राजकुमार रोत ने तर्कों के साथ समर्थन किया है. ईटीवी भारत के साथ एक्सलूसिव इंटरव्यू में रोत ने आदिवासियों के लिए एक नए राज्य 'भील राज्य' की मांग तक कर डाली. साथ ही 'भील राज्य' के लिए इन्होंने 4 राज्यों के अलग-अलग सीमाओं को भी नाप लिया है. धर्म से जुड़े सियासी बवाल के बीच बीटीपी विधायक ने कहा कि हम तो अपने पूर्वजों की मांग को दोहरा रहे हैं, इसमें गलत क्या है.

राजकुमार रोत Exclusive Interview, Part-1

हिंदू नहीं है आदिवासी, विधायक ने दिए ये तर्क...

भारतीय ट्राइबल पार्टी के विधायक राजकुमार रोत साफ तौर पर कहते हैं कि आदिवासी हिंदू नहीं है और उसके लिए वे हिंदू विवाह अधिनियम 1955 का तर्क भी देते हैं. उनके अनुसार इस अधिनियम के तहत आज तक आदिवासी समाज के किसी परिवार का तलाक नहीं हुआ. आप चाहें तो कोर्ट का रिकॉर्ड निकाल कर देख लीजिए या फिर सरकार के स्तर पर एक कमेटी बनाकर जांच करवा लीजिए. मतलब हिंदू अधिनियम आदिवासियों पर लागू नहीं होता है.

आदिवासियों को हिंदू बताने वाली भाजपा बताए कि हिंदू वर्ण-व्यवस्था में कहां शामिल है आदिवासी...

भारतीय जनता पार्टी और उसके नेता आदिवासियों को हिंदू ही मानती है. लेकिन बीटीपी विधायक राजकुमार रोत कहते हैं कि यदि भाजपा आदिवासियों को हिंदू बताती है तो भाजपा के नेताओं को यह भी बताना चाहिए कि हिंदू धर्म में जो वर्ण-व्यवस्था है, जिसमें ब्राह्मण, वैश्य, क्षत्रिय और शूद्र हैं उनमें से किस वर्ण में आदिवासी समाज आता है.

'भील राज्य' की मांग है पुरानी, इन्होंने तो सीमाओं का कर लिया निर्धारण...

आदिवासी समाज के इन जनप्रतिनिधियों ने नए स्टेट की मांग को पुरानी बताया है. राजकुमार रोत के अनुसार आदिवासियों के पुरखे भी भील राज्य की मांग करते आ रहे हैं. इसके पीछे उनका तर्क है कि मानगढ़ धाम में जो हत्याकांड हुआ था, उस बारे में संबंधित कोर्ट ने भी यही कहा था कि ये लोग नए भील राज्य की मांग भी करते हैं. बीटीपी विधायक के अनुसार भील और आदिवासी समाज चार राज्यों में प्रमुख रूप से बंटा हुआ है. इनमें गुजरात, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और राजस्थान है.

पढ़ें :गणेश घोघरा ने सदन में कहा- हम आदिवासी खुद को हिंदू नहीं मानते हैं, हमारे ऊपर हिंदू धर्म थोपा जा रहा है

राजस्थान में बांसवाड़ा, डूंगरपुर और प्रतापगढ़ वहीं महाराष्ट्र में नंदुरबार और नासिक, वहीं मध्यप्रदेश में झाबुआ और उसके आसपास का इलाका और गुजरात में राजस्थान बॉर्डर से लगता है कुछ इलाका शामिल है. राजकुमार रोत के अनुसार यही 'भील राज्य' की पट्टी है. राजकुमार रोत यह भी कहते हैं कि हम कोई अलग देश की मांग नहीं कर रहे, बल्कि राज्य की मांग कर रहे हैं. आजादी के बाद देश में कई नए राज्य बने हैं तो भील राज्य क्यों नहीं बन सकता.

आदिवासी क्षेत्र में मंडल का दोहन, लेकिन विकास के लिए नहीं होता कोई खर्च...

बीटीपी विधायक के अनुसार जिस क्षेत्र को बीएल राज्य बनाने की मांग हम कर रहे हैं वह अधिकतर पहाड़ी और प्राकृतिक संपदा से भरे क्षेत्र हैं. वहां की सरकारें लगातार मिनरल का खनन कर रही हैं और रुपए भी कमा रही हैं, लेकिन उसके हिसाब से इस क्षेत्र में या आदिवासियों के विकास पर कोई खर्च नहीं किया जाता. आलम यह है कि आदिवासी आज भी गरीब, अशिक्षित और हर तरह से पिछड़ा हुआ है. ऐसे में नया राज्य बनेगा तो इनके विकास और शिक्षा को आगे बढ़ाने का काम हो सकेगा.

राजकुमार रोत Exclusive Interview, Part-2

आदिवासी किसी धर्म के नहीं, बल्कि धर्म पूर्वी है...

राजकुमार रोत के अनुसार आदिवासी धर्म पूर्वी है. मतलब आदिकाल में निवास करने वाले वे लोग जिनका मौजूदा कोई धर्म नहीं है. उनके अनुसार मौजूदा समय में आदिवासी अलग-अलग धर्मों में बंटा हुआ है, फिर चाहे हिंदू हो, मुस्लिम या ईसाई. रोत कहते हैं कि गुजरात बॉर्डर से लगे आदिवासी में अधिकतर मुस्लिम हैं तो वहीं मध्य प्रदेश में हिंदू और ईसाई दोनों मिल जाएंगे. राजस्थान में कई आदिवासी ईसाई धर्म में हैं तो कुछ हिंदुओं में भी खुद को शामिल किए हुए हैं. मतलब आदिवासी समाज एक धर्म विशेष में नहीं, बल्कि अलग-अलग धर्मों में बंटा हुआ है.

पढ़ें :विधायक घोघरा के बयान पर बीजेपी का पलटवार, 'आदिवासी हिन्दू था, हिन्दू है और हिन्दू रहेगा'

क्षेत्र के लोग कर रहे कई सालों से धर्म कोड की डिमांड...

विधायक राजकुमार कहते हैं कि आदिवासी क्षेत्र में रहने वाले लोग पिछले कई सालों से इस मामले में डिमांड कर रहे हैं, लेकिन ना तो कांग्रेस ने उनकी सुनी और ना भाजपा ने. मौजूदा समय में यह समझना जरूरी है कि आदिवासी समाज है क्या, उसकी परंपरा क्या है और संस्कृति क्या है.

अलग से कॉलम बनाकर हो जनगणना...

बीटीपी विधायक का यह भी कहना है कि जो जनगणना देश में होनी है, उसमें आदिवासी समाज के लिए एक अलग से कॉलम बनाया जाए और उसी के अनुसार जनगणना हो. उनके अनुसार आदिवासियों को इधर-उधर बांटा जा रहा है, उससे धीरे-धीरे आदिवासियों की संस्कृति और पहचान खत्म हो जाएगी. विधायक के अनुसार इस मामले में विधानसभा में लंबी बहस होनी चाहिए.

मेरा मूल निवास और जाति प्रमाण पत्र में धर्म आदिवासी ही लिखा है...

वहीं, धर्म को लेकर चल रहे सियासी विवाद के बीच जब बीटीपी विधायक राजकुमार रोत से पूछा गया कि आपने अब तक अपने दस्तावेजों में खुद का क्या धर्म लिखा है, तो राजकुमार रोत ने कहा कि उनके पुरखों ने अपने हिसाब से अलग-अलग चीजें लिखीं, लेकिन मैंने अपना मूल निवास प्रमाण पत्र और जाति प्रमाण पत्र में धर्म आदिवासी ही लिखा है.

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