जयपुर. किसी भी राष्ट्र को एक समृद्ध देश बनाने में वहां की शिक्षा व्यवस्था महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है. जब 15 अगस्त 1947 को भारत ब्रिटिश हुकूमत से आजाद हुआ. तब भारत में निरक्षरता फैली हुई थी. आजादी के वक्त देश में केवल 12% लोग ही साक्षर थे. भारत को एक विकसित राष्ट्र बनाने के लिए जरूरी था यहां की शिक्षा के स्तर को सुधारा जाए. जिसके लिए समय-समय पर कई आयोग गठित किए गये. जिन्होंने देश की शिक्षा को नई दिशा दी.
पढ़ें- स्वतंत्रता दिवस स्पेशल: गुलामी की बेड़ियां तोड़ आजाद हुआ भारत...प्रगति के पथ पर यूं बढ़ता रहा आगे
भारतीय संविधान में शिक्षा को लेकर प्रावधान
भारत को पूर्ण रूप से शिक्षित बनाने के लिए भारतीय संविधान में शिक्षा को लेकर प्रावधान रखा गया. जिसमें अनुच्छेद 45 के द्वारा 14 वर्ष तक की आयु के सभी बच्चों को सरकार नि:शुल्क व अनिवार्य रूप से प्राथमिक शिक्षा प्रदान करेगी और अनुच्छेद 46 में शिक्षा की दृष्टि से अति पिछड़े हुए समाज के कमजोर वर्गों के लिए सरकार द्वारा शिक्षा की विशेष व्यवस्था करने के प्रावधान भी किए गए हैं, ताकि इन वर्गों को सामाजिक एवं आर्थिक कठिनाइयों के चलते शिक्षा के अधिकार से वंचित न हों.
आजादी के समय शिक्षा
इसी के साथ शिक्षा समितियां और आयोगों का गठन किया गया, सन 1948 में डॉ. एस. राधाकृष्णन आयोग बना जिसमें यू.जी.सी अर्थात विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की स्थापना कि गई. जिसके बाद सन 1952 में माध्यमिक शिक्षा आयोग, 1964 में डॉ. डीएस कोठारी आयोग और 2017 तक ऐसे ही 11 और समिति व आयोगों का गठन किया गया.