हैदराबाद. राजस्थान में अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच भले ही कुर्सी और तख़्त की लड़ाई अभी सामने आई है, लेकिन जानकारों की मानें तो लड़ाई की शुरुआत आज से तीन साल पहले ही हो चुकी थी. आखिरकार दो बड़े नेताओं के बीच की लड़ाई कहां जाकर ख़त्म होगी, क्या पार्टी के दो फाड़ होंगे या कांग्रेस आलाकमान सचिन पायलट को मनाने में कामयाब रहेगी, सवाल कई हैं.
कांग्रेस पार्टी के अन्दर मचे घमासान पर खास चर्चा (पार्ट-1) इस नए और पुराने के जंग में कांग्रेस को कितना नुकसान उठाना पड़ेगा, इसका अंदाजा लगाना आसन नहीं है. कई राष्ट्रीय अख़बारों में संपादक रहे यतीश राजावत और राजनीतिक मामलों के जानकार अभिरंजन कुमार से ईटीवी भारत ने कांग्रेस पार्टी के अंदर मचे घमासान और गांधी परिवार की भूमिका पर चर्चा की.
गहलोत चाहते हैं कि पायलट का नहीं जमे पांव
पत्रकार यतीश राजावत खुद राजस्थान से हैं और इस बात के गवाह रहे हैं कि अशोक गहलोत सत्ता में अपने बराबर किसी को उभरता हुआ देखना नहीं चाहते हैं इसलिए उन्होंने ऐसा कोई मौका नहीं छोड़ा कि सचिन को अपना पांव जमाने का मौका मिले. अव्वल तो यह कि सचिन की पढ़ाई विदेश में हुई है इसलिए ज़्यादातर मौके पर गहलोत ने उनकी पढ़ाई और पृष्ठभूमि पर हमेशा ही सवाल किया है. चूंकि यहां लड़ाई कुर्सी की है इसलिए लड़ाई कांग्रेस पार्टी से बहार निकलकर सत्ता की हो जाती है, इसलिए अशोक गहलोत हर वो दावं आजमाना चाहते हैं जिससे सचिन पायलट की छवि खराब हो.
कांग्रेस पार्टी के अन्दर मचे घमासान पर खास चर्चा (पार्ट-2) एसओजी नोटिस ने बढ़ाया सचिन का पारा
सचिन ने भले ही पार्टी से बगावत की है लेकिन सच्चाई यही है कि वह बीजेपी भी ज्वाइन नहीं कर रहे हैं इसलिए अशोक गहलोत के लिए भी मुश्किलें बढ़ गई हैं. एसओजी द्वारा भेजे गए नोटिस ने सचिन पायलट को परेशान किया उन्हें यह लगा कि उन्हें कहीं जानबुझकर तो परेशान नहीं किया जा रहा है.
कांग्रेस पार्टी के अन्दर मचे घमासान पर खास चर्चा (पार्ट-3) युवा नेताओं को रहना राहुल और प्रियंका के अंदर ही पड़ेगा
राष्ट्रीय मुद्दों पर अपने विचार खुलकर रखने वाले अभिरंजन कुमार कहते हैं कि मामला दरअसल कांग्रेस का कम और गांधी परिवार का ज्यादा है जो किसी भी हाल में गैर कांग्रेसी नेताओं को एक हद से आगे बढ़ता हुआ नहीं देख सकते. आप कांग्रेस में रहकर चाहे कितनी भी तरक्की कर लें रहना आपको राहुल गांधी और प्रियंका गांधी के अंदर ही पड़ेगा.
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गांधी परिवार के हाथ में ही कांग्रेस है. सबको काम गांधी परिवार के अंदर ही करना पड़ेगा. यह सिलसिला तो 1929 से ही चल आ रहा है, जब मोतीलाल नेहरु ने जवाहरलाल नेहरु को कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया था. वंशवाद तो 90 वर्षों से चल रहा है. अगले 20 वर्षों के लिए कांग्रेस ने अपना एजेंडा तय किया हुआ है यही वजह है कि कांग्रेस लगातार सिमट रही है.
फिलहाल, सचिन को यह तय करना होगा कि क्या वह कांग्रेस के ढांचे के अंदर रहकर काम करना चाहेंगे या स्वतंत्र होकर काम करेंगे, इसके लिए सचिन को जमीनी स्तर पर काफी संघर्ष करना पड़ेगा.