जयपुर. भगवद्गीता ज्ञान का अथाह सागर है. भारत की महान धार्मिक संस्कृति और उनके मूल्यों को समझने का ऐतिहासिक साहित्यिक साक्ष्य है. इतिहास और दर्शन के साथ, समाजशास्त्र और विज्ञान भी इसमें समाहित है. आज पूरा देश भगवान श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव मना रहा है. इस बीच देश में कोरोना वायरस, बेरोजगारी और राजनीतिक उठापटक के दौर में भगवान श्रीकृष्ण की भगवद्गीता क्या कहती है, ये जानने के लिए ईटीवी भारत ने श्रीमद्भगवद्गीता के जानकार योगेश त्रिपाठी से खास बातचीत की.
'फल देना मनुष्य के अधिकार में नहीं है' भगवान श्रीकृष्ण ने कुरुक्षेत्र में खड़े अर्जुन को धर्म, समाज, राष्ट्र, राजनीति और कूटनीति की शिक्षा दी. प्रजा के प्रति शासक के आचरण, व्यवहार और कर्म के ज्ञान को उद्घाटित किया. भगवान श्री कृष्ण के द्वारा दिया गया ये ज्ञान वर्तमान समय में कितना प्रासंगिक है, राजनीतिक सत्ता और प्रजा के क्या उत्तरदायित्व है, इसका जवाब देते हुए योगेश त्रिपाठी ने बताया कि राजनीतिक सत्ता के उत्तरदायित्व देश के संविधान में विस्तृत उल्लेख है और एक राजनीतिज्ञ को उसी के अनुसार प्रजा हित में कार्य करना चाहिए.
'हर परिस्थिति में समान भाव रखना चाहिए' 'फल देना मनुष्य के अधिकार में नहीं है'
योगेश त्रिपाठी का कहना है कि जहां तक प्रजा का सवाल है, भगवद्गीता के दूसरे अध्याय के 47वें श्लोक में कहा गया है 'कर्मण्येवाधिकारस्ते मां फलेषु कदाचन' यानि हमें अपने कर्तव्य का निष्काम भावपूर्वक पालन करना चाहिए. व्यक्ति जो भी कार्य कर रहा है, चाहे वो व्यवसायी हो, चाहे पेशेवर या विभिन्न दायित्वों का निर्वहन कर रहा है, उससे जुड़े जो भी कर्म है, उन्हें बिना किसी फल की इच्छा के करें क्योंकि फल देना भगवान के अधिकार में है, मनुष्य के अधिकार में नहीं.
'गीता अधिकार की बात नहीं कहती है'
हालांकि, वर्तमान समय में हर कोई अपने अधिकारों की बात करता है. लेकिन व्यक्ति अपने दायित्वों की बात नहीं करता. इस संबंध में गीता क्या कहती है, ये बताते हुए योगेश त्रिपाठी ने कहा कि गीता अधिकार की बात कहती ही नहीं है. गीता कर्तव्य कर्म की पालन की बात कहती है. उसके बाद अधिकार स्वतः मिल जाएंगे. व्यक्ति अपने कर्तव्यों की पालना सुनिश्चित करें, दूसरे को क्या करना चाहिए ये विचार नहीं आना चाहिए.
'हर परिस्थिति में समान भाव रखना चाहिए'
लेकिन संकटकाल में हमेशा सत्ता और सरकारें निशाने पर होती हैं. चाहे विपक्ष हो या आम जनता, सभी सरकार को कठघरे में खड़ा करती है. वर्तमान समय में देश में कोरोना वायरस हावी है, उसे लेकर लॉकडाउन भी लगाया गया जिसके बाद बेरोजगारी भी बढ़ गई. ऐसे में क्या आम जनता को सरकार पर सवाल खड़े करने चाहिए? इस विषय में उन्होंने कहा कि गीता में कहा गया है कि 'समत्व ही योग है.' व्यक्ति को हर परिस्थिति में समान आचरण, समान भाव रखना चाहिए.
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योगेश ने कहा कि वर्तमान परिस्थितियां हमारे कर्तव्य कर्मों का समुचित रूप से निर्वहन नहीं करने की वजह से बनी है. प्रकृति के सृष्टि चक्र में यदि कोई व्यवधान आता है, तो कोरोना जैसी महामारी और विपरीत परिस्थिति जन्म लेती है. ये ठीक उसी तरह है कि यदि किसी मशीन में से उसका कोई पुर्जा निकाल लिया तो मशीन भी ठीक तरह से कार्य नहीं करेगी.
'आज हर कोई पैसे के पीछे भाग रहा है'
हालांकि, इन्हीं परिस्थितियों की वजह से लोगों में भ्रष्टाचार, मानसिक तनाव और अपराध जैसी प्रवृत्ति बढ़ रही है. इस संबंध में योगेश त्रिपाठी ने कहा कि भगवद्गीता में कलयुग का जिक्र है. वर्तमान समय में लोगों ने धर्म के पद पर चलना छोड़ दिया है. हर कोई पैसे के पीछे भाग रहा है. गीता में लिखा है कि दूसरों की सेवा करें और भगवान भी दूसरों की सेवा करने पर ही प्रसन्न होते हैं. लेकिन आज व्यक्ति अपने हित के बारे में पहले सोचता है, इसी वजह से लोगों में भ्रष्टाचार, मानसिक तनाव और अपराध की प्रवृत्ति बढ़ रही है.
'स्कूलों में देनी चाहिए भगवद्गीता की शिक्षा'
बहरहाल, विश्व के महानतम वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टाइन हो या महात्मा गांधी सभी ने अपने-अपने स्तर पर भगवद्गीता के पठन का जिक्र किया है. भगवद्गीता विश्व में किस प्रकार प्रचलित है, ये जानकारी देते हुए योगेश त्रिपाठी ने कहा कि भगवद्गीता विश्व में सर्वाधिक भाषाओं में अनुवादित है. गीता 'सर्वे भवंतु सुखिनः और वसुदेव कुटुंबकम' का संदेश देती है. ऐसे में पूरे विश्व के लिए ये ज्ञान शाश्वत है. कोर्ट में अपराधी से इस पर हाथ रखवाने के बजाए, स्कूल में ही छात्रों को भगवद्गीता की शिक्षा दे दी जाए तो कोर्ट में अपराधी की तरह किसी को खड़े होने की नौबत ही ना आए.