जयपुर.राजस्थान में एक बार फिर विधान परिषद के गठन का शफूगा छोड़ा गया है. हालांकि, पिछली गहलोत सरकार और वसुंधरा राजे सरकार के दौरान भी इस प्रकार का प्रस्ताव केंद्र सरकार के पास गया था जो अब तक अटका है. वरिष्ठ भाजपा नेता और संसदीय कार्यों के जानकार घनश्याम तिवाड़ी के अनुसार यह प्रस्ताव केवल भुलावा है, जिसके जरिए सरकार के प्रति आकर्षण बना रहे. ईटीवी भारत से खास बातचीत के दौरान तिवाड़ी ने कहा कि यदि केंद्र सरकार प्रस्ताव स्वीकृत कर भी लेती है तब भी परिषद के गठन में ढाई से 3 साल का समय लग जाता है.
पढ़ें- राजस्थान में बनेगी विधान परिषद, गहलोत कैबिनेट ने लगाई मुहर
ईटीवी भारत से बातचीत के दौरान वरिष्ठ नेता घनश्याम तिवाड़ी ने कहा कि इस प्रकार का प्रस्ताव साल 2012 में तत्कालीन गहलोत सरकार ने भेजा था, तब केंद्र में यूपीए सरकार थी लेकिन उस दौरान भी इस दिशा में कोई काम नहीं हो पाया. उसके बाद वसुंधरा सरकार ने भी ऐसा ही प्रस्ताव भेजा, लेकिन उसका कोई अंजाम सामने नहीं आया और अब फिर गहलोत सरकार ने केंद्र सरकार को इस मामले में प्रस्ताव भेजा है, लेकिन इसका कोई सियासी लाभ प्रदेश की गहलोत सरकार को नहीं मिलेगा.
तिवाड़ी के अनुसार बंगाल सहित केंद्र सरकार के पास कई और राज्यों ने भी इस प्रकार का प्रस्ताव भेजा है, लेकिन उस पर कोई निर्णय नहीं हुआ. विधानपरिषद के गठन के लिए जब तक कोई राष्ट्रीय नीति नहीं बने और सभी राजनीतिक दल इस मामले में सहमत नहीं हो तब तक राज्यों में विधानपरिषद के गठन के प्रस्ताव को स्वीकार शायद ही किया जाए. तिवाड़ी के अनुसार कई राज्यों ने प्रस्ताव भेजे हैं, ऐसे में कुछ राज्यों के प्रस्ताव स्वीकार कर लें और उसके नहीं यह संभव नहीं है. इसलिए फिलहाल ये मामला लटकेगा.
घनश्याम तिवाड़ी के अनुसार विधानपरिषद के गठन की लंबी प्रक्रिया होती है, जिसमें राज्य सरकार विधानसभा में संकल्प पारित कर केंद्र सरकार को प्रस्ताव भेजती है. फिर केंद्र सरकार लोकसभा और राज्यसभा में इस इस संबंध में प्रस्ताव पारित कर राष्ट्रपति को स्वीकृति के लिए भेजते हैं. राष्ट्रपति की स्वीकृति मिलने के बाद चुनाव आयोग के पास डीलिमिटेशन के लिए यह प्रस्ताव जाता है. चुनाव आयोग इस दिशा में काम करके डीलिमिटेशन और निर्वाचन क्षेत्रों का गठन करता है. इस पूरे प्रोसेस में लंबा समय लग जाता है.