जयपुर.कोरोना संक्रमण की वजह से घर के आंगन तक सिमटे बच्चों के सामान्य व्यवहार में बदलाव आने लगा है. बच्चों में चिड़चिड़ेपन के बढ़ते मामलों के बीच मनोचिकित्सक इस बात की सलाह दे रहे है कि बच्चों को टीवी और मोबाइल के स्क्रीन पर कम से कम टाइम स्पेंड करने दे. माता-पिता बच्चों के साथ मिल कर ज्यादा से ज्यादा फिजिकल एक्टिविटी पर ध्यान दें. जिससे बच्चों का मानसिक विकास होगा. बच्चों में लॉकडाउन के साइड इफेक्ट पर मनोचिकित्सक अनिता गौतम ईटीवी भारत से खास बात की.
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कोरोना की दूसरी लहर की वजह से प्रदेश में एक बार फिर लॉकडाउन लगा दिया गया है. बढ़ते कोरोना संक्रमण और तीसरी लहर के खतरे को देखते हुए सरकार लॉकडाउन आगे बढ़ाने की भी तैयारी में है. ऐसी स्थिति में बच्चों के माता पिता को यह चिंता सताने लगी है कि बच्चे अपने स्कूल, टीचर्स, दोस्तों से दूर घरों में बंद है. इसका बच्चों पर मनोवैज्ञानिक क्या असर पड़ेगा. इस संबंध में मनोचिकित्सक डॉ. अनिता गौतम ने कहा कि कोरोना संक्रमण की वजह से बड़ो पर साइकोलॉजिकल असर पड़ा है उसके साथ-साथ बच्चों पर भी इसका बड़ा असर पड़ा है. जिसकी वजह से बच्चों में चिड़चिड़ापन आ गया है. बच्चे अपने आप में खोए रहते हैं.
डॉ. अनिता गौतम ने बताया कैसे करे बच्चों का मानसिक विकास डॉक्टर अनिता गौतम ने कहा कि बच्चे अपने माता-पिता से और अपने आसपास के वातावरण से सीखते हैं. इस समय चारों तरफ वातावरण में नेगेटिव खबरें आ रही हैं. उसका सीधा असर बच्चों के ऊपर पड़ रहा है. खासतौर से उन छोटे बच्चों की जो कोरोना संक्रमण को अच्छी तरह से समझ भी नहीं पा रहे हैं. उन्हें लगता है कि उन्हें घर में कैद करके रखा जा रहा है, उनके दोस्तों से उन्हें नहीं मिलने दिया जा रहा, वह पार्क में घूमने नहीं जा पा रहे हैं. इन सब की वजह से उनके अंदर एक नेगेटिव माहौल बनता जा रहा है.
छोटे बच्चे इस बात को नहीं समझ पाते हैं कि उन्हें क्यों रोका जा रहा है. वह कोरोना की गंभीरता को नहीं समझते हैं. ऐसे वक्त में जरूरत है कि पेरेंट्स खासतौर से अपने छोटे बच्चों से खुलकर बात करें. कोरोना वायरस को लेकर उनसे बात करें. उन्हें समझाएं कि किस तरीके से कोरोना का संक्रमण फैल रहा है और उसकी किस तरह से नुकसान हो रहा है. इन सब चीजों के बारे में बच्चों को खुलकर समझाना होगा. उन्हें बताना पड़ेगा कि बिना मास्क के बाहर जाते हैं तो हवा में किस तरह से संक्रमण फैल रहा है. किसी को टच करते हैं तो बच्चों के अंदर किस तरह से बीमारी आ सकती है. इन सब चीजों के बारे में पूरी जानकारी देनी होगी.
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डॉ. अनीता गौतम ने कहा कि इस वक्त अभिभावकों को बच्चों को डांटने के बजाय धैर्य से काम लेने की ज्यादा जरूरत है. साथ ही उनको शारीरिक रूप से एक्टिव रखना भी बेहद जरूरी है. बच्चे एक्टिव रहेंगे तो तनावमुक्त भी होंगे. उन्होंने कहा कि सबसे बड़ी बात यह है कि बच्चे अपनी एनर्जी किस तरह से खर्च कर रहे हैं. डॉ. अनिता ने कहा कि सबसे पहले जरूरी है कि जो ऑनलाइन क्लासेस चल रही है उस वक्त माता-पिता को खासतौर से ध्यान देना चाहिए कि बच्चे जैसे ही क्लास के बीच में ब्रेक लेकर आए उस वक्त बच्चे फिर से मोबाइल स्क्रीन नहीं देखे. इस दौरान फिजिकल एक्टिविटी ज्यादा करे. इससे बच्चों की आंखों को ब्रेक मिलेगा.
लॉकडाउन में बच्चों का काफी समय मोबाइल और इंटरनेट पर बीत रहा बच्चों की फिजिकल एक्टिविटी जिसमें उनके साथ डांस, खिलौनों के साथ खेलना, ड्रॉइंग बनाए, कार्टून बनाए, बैडमिंटन से खेले गार्डनिंग करे. कोई भी ऐसी एक्टिविटी जो फिजिकल एक्टिविटी ही उस पर पेरेंट्स ध्यान दे. इस वक्त बच्चों की ग्रोथ के लिए सबसे ज्यादा जरूरी है कि उनकी फिजिकल एक्टिव होना. डॉ गौतम ने कहा कि इस समय जरूरी है कि हम बच्चों की सेफ्टी पर भी ध्यान दें. कोरोना का दूसरी लहर के बाद तीसरी लहर का खतरा बच्चों पर अधिक है. अधिक से अधिक सतर्क होने की जरूरत है. क्योंकि अब तक की जो शोध सामने उस पर यह माना जा रहा है कि कोरोना की तीसरी लहर अगर आती है तो उससे बच्चों के ऊपर नुकसान होगा.
मनोचिकित्सक डॉ. अनिता गौतम ऐसे में बच्चों को समझाना पड़ेगा कि वह घर से बाहर नहीं जाए. अगर अति आवश्यक कारण से घर से बाहर जाते तो उनके चेहरे पर पूरे तरीके से कंप्लीट मास्क लगा हो. खासकर के नाक तक पूरी ढका हुआ हो और उन्हें यह समझाना पड़े कि किस तरह से बार-बार हाथ धोना है. उसे किसी चीज को छूना नहीं है. अगर किसी के पास खड़े हैं तो उसे 2 गज की दूरी बनानी है. इन सब चीजों के बारे में बच्चों को समझाना होगा जिस तरह की कोरोना गाइडलाइन की पालन करें.