जयपुर.राजधानी का परकोटा 6 जुलाई 2019 को विश्व धरोहर में शामिल हुआ था. गुलाबी नगरी का परकोटा शहर की खूबसूरती में चार चांद लगाता है. परकोटे के विश्व विरासत में शामिल होने के बाद नगर निगम पर इसके संरक्षण की जिम्मेवारी थी, लेकिन जयपुर का परकोटा आज नए निर्माण और अतिक्रमण के नीचे दबा जा रहा है. दूसरी तरफ जिम्मेदार मूक दर्शक बने डीपीआर तैयार होने की बाट जोह रहे हैं.
बता दें कि 1727 में बना जयपुर शहर चारों तरफ परकोटे से घिरा था, जिसमें प्रवेश के लिए सात दरवाजें थे. उस काल में भी इस शहर की सुरक्षा और साफ-सफाई का विशेष ध्यान रखा गया, लेकिन आज यही विरासत (UNESCO World Heritage) जरूरतों की इमारतों के बोझ तले दबकर रह गई है. अतिक्रमणियों ने जयपुर की पहचान परकोटे पर अतिक्रमण कर लिया है. वर्तमान में जयपुर का परकोटा अपनी दुर्गति पर आंसू बहा रहा है. जिन पर इसे अतिक्रमण मुक्त करवाने की जिम्मेदारी थी उन्हीं लोगों ने लगता है इसे इसकी बदहाल हाल पर छोड़ दिया है.
अतिक्रमण की हद पार...
जिन दीवारों के कारण दुनिया जयपुर के परकोटे को विश्व धरोहर के रूप में देख रही है, उन्हीं दीवारों पर गोबर के उपले थापे जा रहे हैं. जयपुर के पूर्वी द्वार सूरजपोल पर गोबर का ढेर देखकर मन आहत होता है. राजधानी की पहचान बन चुका इसके दरवाजे का उत्तरी बुर्ज दिखाई देता है, लेकिन दक्षिणी बुर्ज बेतरतीब इमारतों की खिच-पिच में दम तोड़ चुका है.
यहां से रामगंज की ओर कुछ दूर तक तो ऐतिहासिक दीवार दिखाई देती है, लेकिन फिर वो भी अतिक्रमण की ईटों तले अपना अस्तित्व खो चुकी है. हीदा की मोरी में तो ऐतिहासिक प्राचीर पर 2 मंजिला इमारत खड़ी कर दी गई है. जिसकी ओट से प्राचीन बुर्ज बेहाल से झांकता नजर आता है.
कहीं दीवार तो कहीं बरामदें में बने मकान...
रामगंज के हालात तो सबसे बुरे हैं. यहां शहर में अतिक्रमण नहीं, बल्कि अतिक्रमण में शहर नजर आता है. न जाने यहां कौन पुराने बरामदों पर नई इमारतें खड़ी करने की इजाजत दे रहा है. बरामदा, ड्रेनेज, फुटपाथ और आधी सड़क पर लोगों ने निर्माण कर लिया है. रामगंज से घाटगेट जाते हुए बरामदे सड़क की ओर बने हैं. कहीं दो तो कहीं चार हाथ तक आगे बढ़ चुके हैं. इन्हीं बरामदे पर डिब्बों जैसी ऊंची इमारतें बना दी गई हैं, जो न केवल अतिक्रमण की कहानी कह रहा है बल्कि खतरे की घंटी भी है.
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