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Special : अतिक्रमण, सियासत और DPR के जंजाल में फंसी जयपुर परकोटे की पहचान - HC Order on Parkota of Jaipur

राजधानी जयपुर का परकोटा गुलाबी नगरी की पहचान है. जिसे विश्व धरोहर में शामिल किया गया है, लेकिन यही विश्व धरोहर अपनों की उपेक्षा पर आंसू बहा रहा है. अतिक्रमणकारी परकोटे की सुंदरता पर धब्बा लगा रहे हैं. दूसरी तरफ इसकी संरक्षण की जिम्मेदारी जिन कंधों पर है, वे मूक दर्शक बने हुए हैं. पढ़िए ये विशेष खबर...

जयपुर का परकोटे पर अतिक्रमणकारियों का कब्जा
जयपुर का परकोटे पर अतिक्रमणकारियों का कब्जा

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Published : Sep 20, 2020, 1:49 PM IST

Updated : Sep 21, 2020, 12:17 PM IST

जयपुर.राजधानी का परकोटा 6 जुलाई 2019 को विश्व धरोहर में शामिल हुआ था. गुलाबी नगरी का परकोटा शहर की खूबसूरती में चार चांद लगाता है. परकोटे के विश्व विरासत में शामिल होने के बाद नगर निगम पर इसके संरक्षण की जिम्मेवारी थी, लेकिन जयपुर का परकोटा आज नए निर्माण और अतिक्रमण के नीचे दबा जा रहा है. दूसरी तरफ जिम्मेदार मूक दर्शक बने डीपीआर तैयार होने की बाट जोह रहे हैं.

जयपुर का परकोटे पर अतिक्रमणकारियों का कब्जा

बता दें कि 1727 में बना जयपुर शहर चारों तरफ परकोटे से घिरा था, जिसमें प्रवेश के लिए सात दरवाजें थे. उस काल में भी इस शहर की सुरक्षा और साफ-सफाई का विशेष ध्यान रखा गया, लेकिन आज यही विरासत (UNESCO World Heritage) जरूरतों की इमारतों के बोझ तले दबकर रह गई है. अतिक्रमणियों ने जयपुर की पहचान परकोटे पर अतिक्रमण कर लिया है. वर्तमान में जयपुर का परकोटा अपनी दुर्गति पर आंसू बहा रहा है. जिन पर इसे अतिक्रमण मुक्त करवाने की जिम्मेदारी थी उन्हीं लोगों ने लगता है इसे इसकी बदहाल हाल पर छोड़ दिया है.

अतिक्रमण की हद पार...

जिन दीवारों के कारण दुनिया जयपुर के परकोटे को विश्व धरोहर के रूप में देख रही है, उन्हीं दीवारों पर गोबर के उपले थापे जा रहे हैं. जयपुर के पूर्वी द्वार सूरजपोल पर गोबर का ढेर देखकर मन आहत होता है. राजधानी की पहचान बन चुका इसके दरवाजे का उत्तरी बुर्ज दिखाई देता है, लेकिन दक्षिणी बुर्ज बेतरतीब इमारतों की खिच-पिच में दम तोड़ चुका है.

दीवारों पर उपले लगे

यहां से रामगंज की ओर कुछ दूर तक तो ऐतिहासिक दीवार दिखाई देती है, लेकिन फिर वो भी अतिक्रमण की ईटों तले अपना अस्तित्व खो चुकी है. हीदा की मोरी में तो ऐतिहासिक प्राचीर पर 2 मंजिला इमारत खड़ी कर दी गई है. जिसकी ओट से प्राचीन बुर्ज बेहाल से झांकता नजर आता है.

कहीं दीवार तो कहीं बरामदें में बने मकान...

रामगंज के हालात तो सबसे बुरे हैं. यहां शहर में अतिक्रमण नहीं, बल्कि अतिक्रमण में शहर नजर आता है. न जाने यहां कौन पुराने बरामदों पर नई इमारतें खड़ी करने की इजाजत दे रहा है. बरामदा, ड्रेनेज, फुटपाथ और आधी सड़क पर लोगों ने निर्माण कर लिया है. रामगंज से घाटगेट जाते हुए बरामदे सड़क की ओर बने हैं. कहीं दो तो कहीं चार हाथ तक आगे बढ़ चुके हैं. इन्हीं बरामदे पर डिब्बों जैसी ऊंची इमारतें बना दी गई हैं, जो न केवल अतिक्रमण की कहानी कह रहा है बल्कि खतरे की घंटी भी है.

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वहीं, घाट गेट का दरवाजा अपनी बुलंदी के कारण अकड़ कर खड़ा जरूर है, लेकिन उसके दोनों तरफ की प्राचीर भी अतिक्रमण का शिकार हो चुकी है. प्राचीरों की मोखियां दुश्मन पर निगाहें रखने के लिए बनाई गई थी, उन मोखियां से अब अतिक्रमण के अलावा कुछ नजर नहीं आता.

HC का आदेश भी हुआ हवा...

परकोटे के दीवार से सटा घर

जयपुर के हेरिटेज को बचाने के लिए नगर निगम को 2 हिस्सों में बांट दिया गया है. शहर की जर्जर होती प्राचीर, बुर्ज, इमारतों को बचाने-सजाने-संवारने की जिम्मेदारी अब हेरिटेज नगर निगम की है, लेकिन ऐसा लगता है सिस्टम ने दीवारों से दूरी बना ली है.

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हाईकोर्ट ने 3 साल पहले नगर निगम को आदेश दिया था कि परकोटा इलाके से अतिक्रमण हटाया जाए, लेकिन सिस्टम सोया रहा. दीवारों पर कब्जे की नियतें चढ़ती चली गई और बुर्ज की दीवारें ढहना शुरू हो गई. हाईकोर्ट के आदेशों के बावजूद अतिक्रमण हटाने में नगर निगम टेंडर और डीपीआर के जंजाल में उलझा हुआ है.

कहीं सियासत में तो नहीं हो रही उपेक्षा...

आज शहर की चौपड़ें अपने चारों तरफ बिखरे उस शहर को ढूंढती होंगी, जिसके एक-एक कोण को सूत से नाप कर बनाया गया था. सपने की तरह संजोया गया था. नवग्रहों की तर्ज पर नौ खंडों में संवारा गया था. वो खूबसूरत परकोटा अब अतिक्रमण के जंजाल में उलझा नजर आता है.

दीवारों की हालत जर्जर

सवाल ये है कि नगर निगम, स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट और पुरातत्व विभाग मिलकर भी इन धरोहरों को क्यों नहीं बचा पा रहे हैं. हो सकता है विरासत से ज्यादा सियासत जरूरी हो क्योंकि अतिक्रमी भी आखिरकार वोटर्स ही तो है.

Last Updated : Sep 21, 2020, 12:17 PM IST

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