जयपुर:घरेलू श्वान वन्यजीवों के लिए खतरा बनते जा रहे हैं. अभ्यारण्यों में घरेलू श्वानों की तादाद लगातार बढ़ रही है. इस वजह से वन्यजीवों पर बीमारियों का खतरा मंडराने लगा है. टाइगर रिजर्व में बाघ को लेकर भय की स्थिति बन रही है. वन्यजीव विशेषज्ञों का कहना है कि श्वानों में कई प्रकार की बीमारियां पाई जाती हैं. जिनमें से एक कैनाइन डिस्टेंपर वायरस (सीडीवी) सबसे अहम है. यह वायरस बाघ-शेर में जल्दी अटैक करता है.
वन अभ्यारण्यों में घरेलू श्वानों की बढ़ रही तादाद गुजरात के गिर अभयारण्य में बीते साल इसका उदाहरण देखने को मिला था. जहां करीब डेढ़ दर्जन से ज्यादा शेर-शेरनी की बीमारी की वजह से मौत हो गई थी. जयपुर के नाहरगढ़ जैविक उद्यान में भी एक शेरनी ने इस वायरस के प्रकोप से दम तोड़ दिया था. ऐसे में अब इन पर काबू नहीं पाया गया तो, यहां भी ऐसे हालात पनपते देर नहीं लगेगी. बाघ दिवस पर आईएनटीसीए / डब्ल्यूआईआई की 2018 की रिपोर्ट में भी कई चौंकाने वाले आंकड़े सामने आए हैं. जिसके बाद से विभाग की भी चिंता बढ़ गई है.
टाइगर रिजर्व में लगाए गए कैमरा ट्रैप
अखिल भारतीय बाघ सर्वेक्षण के तहत देशभर के प्रमुख टाइगर रिजर्व में कैमरा ट्रैप लगाए गए. जिसमें राज्य से केवल सरिस्का टाइगर रिजर्व को शामिल किया गया था. यहां लगाए गए कैमरा ट्रैप में 100 में बाघ से ज्यादा श्वान और मवेशी पाए गए हैं.
बात करें 2018 बाघ सर्वेक्षण रिपोर्ट के आंकडे़ की तो, यहां 100 फोटो में 7.20 प्रतिशत श्वान, 2.39 प्रतिशत बाघ तो 37.5 प्रतिशत मवेशी देखे गए हैं. 30 फीसदी टाइगर रिजर्व में ऐसे ही हालात पाए गए हैं. हालांकि रिपोर्ट में कैमरा ट्रैप की दूरी दर्ज नहीं की गई है. जिससे यह तय नहीं हो रहा कि, जंगल में इनका प्रवेश कहां तक है.
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श्वानों से दूसरी प्रजातियों को खतरा है. श्वानों को खाने से जहां बाघों में कई बीमारियों का खतरा हो सकता है, तो वहीं श्वानों से नीलगाय, बाघों के शावकों को भी खतरा है. कई बार ऐसे उदाहरण भी सामने आए हैं. इसके बावजूद भी जिम्मेदार ठोस कदम नहीं उठा रहे हैं.
बाघ विशेषज्ञ का मानना है कि श्वानों का टाइगर रिजर्व में प्रवेश खतरनाक है. बता दें कि 2018 में एक लोमड़ी के परिवार पर शोध कर रहा था, देखते ही देखते वह परिवार एक सप्ताह में सीडीवी वायरस से खत्म हो गई. इन हालात पर काबू पाने की सख्त जरूरत है.
1213 वर्ग किलोमीटर में फैले सरिस्का बाघ परियोजना में बाघों पर खतरा होने का सबसे बड़ा कारण गांवों का विस्थापन नहीं होने से है. इस वजह से यहां मानवीय गतिविधियां बढ़ रही है. साथ ही लोगों के आवास से मवेशी और श्वान भी बढ़ रहे हैं. यहां 26 गांव बसे हैं. इसमें सबका विस्थापन जरूरी है. 9 गांवों का विस्थापन सबसे जरूरी है. अब तक तीन ही गांव हुए हैं. विस्थापन प्रक्रिया अटकने से सरिस्का की रेटिंग भी लुढ़क रही है.
श्वानों को आवारा नहीं छोड़े
अधिकारी भी मानते हैं कि अभ्यारण्य में श्वानों की संख्या बढ़ रही है. विभाग ने सभी के प्रयासों से कुछ हद तक श्वानों को जंगल से अभ्यारण्य से निकाला भी है. जो लोग श्वानों को पालतु रखते हैं तो उनको बाहर आवारा नहीं छोड़े. पश्चिमी क्षेत्र में ऐसी शिकायत आती है कि चिंकारा, काले हिरण, नीलगाय को श्वान शिकार बनाते हैं. गांव के श्वान जंगली स्वरूप ले लेते है, तो काफी संख्या में बढ़ रही है. श्वानों को प्रबंधन वन्यजीव विभाग के पास नहीं है. इसका प्रबंधन पंचायत, अन्य निकाय के पास है, उनको विशेष सहयोग देना चाहिए. इन श्वानों से वन्यजीवों को नुकसान हो रहा है.
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गोडावन जैसे पक्षी दुनिया में बहुत ही कम बचे हैं, उनके पीछे भी श्वान पड़ जाते हैं. गोडावन के अंडे, बच्चों को मार देते हैं. जंगल में गांव बसे होने से ऐसे हालात पनप रहे हैं.