जयपुर.वन विभाग कई सालों से वन्यजीवों की देखरेख के लिए डॉक्टर्स के अभाव से जूझ रहा है. वन अभयारण्यों में पद खाली पड़े ऑन कॉल वन्यजीव चिकित्सक बुला रहे हैं. सरिस्का, रणथंभौर, उदयपुर और जोधपुर में चिकित्सकों का जिम्मा वनकर्मी ही संभाल रहे हैं. वहीं, जरूरत पड़ने पर पशु चिकित्सक को फोन करके बुला रहे हैं. इस समस्या को लेकर हाल ही में वन विभाग के अधिकारियों ने राज्य वन्यजीव मंडल की 11 वीं बैठक में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के सामने भी डॉक्टर की समस्या रखी थी.
प्रदेशभर के वन अभयारण्य और टाइगर सेंचुरी देश ही नहीं दुनिया भर में ख्याति पा चुके हैं. इनमें प्रवास कर रहे वन्यजीवों का दीदार के नाम पर सरकार को सालाना लाखों रुपए की कमाई हो रही है. इसके बावजूद भी इनकी ओर जिम्मेदारी का ध्यान नहीं है. खासकर वन्यजीवों के स्वास्थ्य को लेकर लापरवाही बरती जा रही है.
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स्थिति ये है कि टाइगर रिजर्व और बड़े-बड़े जैविक उद्यान में वन्यजीव चिकित्सक नहीं होने से वन्यजीव के स्वास्थ्य की देखभाल का जिम्मा वनकर्मी और केयर टेकर संभाल रहे हैं. अति आवश्यक होने पर पशु चिकित्सालय से चिकित्सक को फोन करके बुलाया जाता है. ये अनदेखी कई बार वन्यजीवों के लिए हानिकारक साबित हो सकती है.
वहीं, उदयपुर स्थित सज्जनगढ़ जैविक उद्यान, जोधपुर के माचिया जैविक उद्यान ही नहीं, बल्कि टाइगर रिजर्व में भी यही हालात नजर आ रहे हैं. अफसरों के ढीले रवैये के चलते चिकित्सक भी आने में कोई खास रुचि नहीं दिखा रहे हैं. ऐसे में यहां स्थानीय पशु चिकित्सालय से कभी-कभार पशु चिकित्सक आते हैं और देखकर चले जाते हैं. कई बार स्थिति ज्यादा गंभीर होने पर जयपुर से ही वन्यजीव चिकित्सक को भेजना पड़ता है. हैरत की बात है इन दुर्लभ वन्यजीवों को बचाने के लिए सरकार और विभाग इतने दावे करता है, लेकिन स्थिति उलट है. इनके लिए सरकार को जल्द रिक्त पदों को भरने की कार्रवाई करनी चाहिए.
सज्जनगढ़ जैविक उद्यान उदयपुर...
यहां 8 शेर, 1 बाघ, और 7 बघेरे समेत कई वन्यजीव प्रवास कर रहे हैं. यहां पर 2017 के बाद से वन्यजीव चिकित्सक का पद रिक्त है. वेटरनरी अस्पताल से सप्ताह में 3 दिन वन्यजीव चिकित्सक आते हैं. इसके अलावा जरूरत पड़ने पर बुलाया जाता है.
माचिया जैविक उद्यान जोधपुर...
उद्यान में एक जोड़ा शेर-शेरनी, दो नर और एक मादा बाघ, 5 बघेरे प्रवास कर रहे है. यहां पर 22 मई से अभी तक वन्यजीव चिकित्सक का पद रिक्त है. वेटेनरी अस्पताल से एक चिकित्सक महज 2 घंटे आता है. बाकी समय वन्यजीव भगवान भरोसे रहते हैं.
रणथंभौर टाइगर रिजर्व...
यहां 70 बाघ प्रवास कर रहे हैं. वन विभाग ने वन्यजीव चिकित्सक का कोई पद स्वीकृत ही नहीं किया. यही वजह है आए दिन बाघो के बीमार होकर मरने की खबर आती रहती है. यहां 2017 में एक मोबाइल मेडिकल वैन भी लगाई गई थी, लेकिन अफसरों की अनदेखी के चलते वो भी कबाड़ में तब्दील हो गई. यहां ट्रैंकुलाएज भी वनकर्मी खुद ही कर लेते हैं.