जयपुर. जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल (JLF 2022) में शनिवार को एक सत्र में लेखक बद्रीनारायण और पवन के वर्मा ने संदीप उन्नीथन के साथ हिंदुत्व के पहलुओं पर चर्चा की. इस सत्र में हाल ही में उत्तर प्रदेश चुनाव में भाजपा की जीत को लेकर भी चर्चा की गई (JLF discusses victory in UP).
उत्तर प्रदेश चुनाव में भाजपा की जीत को लेकर सवाल के जवाब में लेखक बद्रीनारायण ने कहा कि भाजपा की जीत ने उन्हें चकित नहीं किया. क्योंकि चुनाव के दौरान उन्होंने यह देखा कि भाजपा ने आमजन के दिलों में छाप छोड़ी है. चुनाव प्रचार में तीन अहम बातें देखने को मिली. पहली ये कि, इस चुनाव में ध्रुवीकरण का असर साफ दिख रहा था. समाजवादी पार्टी के वोटर्स इस चुनाव में बहुत मुखर थे, जबकि भाजपा के वोटर्स बहुत शांत दिखे.
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उन्होंने चुप्पी के साथ ध्रुवीकरण किया और भाजपा के समर्थन में वोट किया. दूसरी अहम बात जो थी वह यह कि कल्याणकारी योजनाओं के जरिए लाभार्थियों के दिल तक पहुंचना. हालांकि हर सरकार की अपनी कल्याणकारी योजनाएं होती हैं. लेकिन इन योजनाओं के जरिए भाजपा ने हर लाभार्थी के दिल में जगह बनाई. इसका एक उदाहरण है कि पीएम मोदी ने आवास योजना के तहत घर जाकर दिवाली उत्सव मनाने की अपील भाजपा पदाधिकारियों से की थी और कार्यकर्ताओं ने यह किया भी.
इससे जिन लोगों को इस योजना का लाभ मिला उनके दिल में भाजपा ने अपने लिए जगह सुरक्षित की थी. तीसरी खास बात ये है कि मोदी के प्रति जनता का विश्वास अभी भी बहुत मजबूत है. तमाम विफलता के आरोपों के बावजूद लोगों में उनके प्रति विश्वसनीयता बरकरार है. ऐसे में जब उन्होंने चुनाव प्रचार का जिम्मा संभाला तो भाजपा के पक्ष में जबरदस्त माहौल बना. पहले चुनाव योगी और अखिलेश के बीच था. लेकिन बाद में मोदी प्लस योगी बनाम अखिलेश हो गया.
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इसके अलावा एक बड़ा फैक्टर आरएसएस का इस चुनाव में रहा. आरएसएस के कार्यकर्ताओं ने बूथ से लेकर वार रूम तक अपना प्रबंधन कौशल दिखाया और भाजपा की जीत में बड़ी भूमिका निभाई. भाजपा के कार्यकर्ताओं में कई असंतुष्टि थी. इसकी भरपाई आरएसएस ने की. वहीं, पवन के वर्मा का कहना है कि चुनाव में लाभ के लिए मतदाताओं को आपस बांटा गया. दूसरा उन्होंने मुखर राष्ट्रवाद का सहारा लिया. तीसरा कल्याणकारी योजनाओं को भुनाया गया.
खास बात यह है कि इस चुनाव में विपक्ष कहीं भी संगठित नहीं दिखा. आठ प्रतिशत यादव और 16-17 फीसदी मुस्लिम के गठजोड़ को चुनौती देने के लिए भाजपा ने सोशल इंजीनियरिंग का सहारा लिया. उन्होंने ब्राह्मण और राजपूत वोटर्स को साधा जो आबादी में 40 फीसदी भागीदारी रखते हैं. नॉन यादव ओबीसी को उन्होंने साधा. नॉन जाटव दलित वोटर्स को भी नजर में रखा. इस सोशल इंजीनियरिंग का न केवल उत्तर प्रदेश बल्कि उत्तराखंड में भी फायदा मिला. सोशल इंजीनियरिंग और ध्रुवीकरण का यह गठजोड़ इतना मजबूत है कि फिलहाल भाजपा को हराना मुश्किल दिख रहा है. उन्होंने कहा कि आरएसएस ने समाज सेवा में जो काम किया है या कर रहा है. उसका सीधा फायदा भाजपा को मिला है.