जयपुर. प्रदेश में साल 2023 के अंत में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा संगठन में फेरबदल की चर्चा ने जोर पकड़ा है. बीजेपी प्रदेशाध्यक्ष के रूप में सतीश पूनिया के मनोनयन के तीन साल का कार्यकाल (Satish Poonia Political Effect) पूरा हो चुका है, जबकि निर्वाचन के 3 साल दिसंबर में पूरा होगा. पूनिया जता चुके हैं कि उनकी इच्छा है कि पार्टी अगला चुनाव उनके अध्यक्षीय नेतृत्व में लड़े. वहीं, नए प्रदेशाध्यक्ष के लिए जातिगत समीकरणों को लेकर सियासी चर्चाओं का बाजार गर्म है.
यदि बदलाव हुआ तो इन समाजों से हो सकता है नया अध्यक्ष : हाल ही में राजस्थान भाजपा पहले अनुसूचित जनजाति वोटरों में अपनी पकड़ को लेकर कई कार्यक्रम चला रही थी तो उसके बाद ओबीसी वोट बैंक में पकड़ के लिए कई बड़े कार्यक्रम राजस्थान में हुए, जिसमें केंद्रीय नेता भी शामिल हुए. लेकिन यदि राजस्थान में नया प्रदेश अध्यक्ष भाजपा बनाती है तो फिर यहां की मौजूदा राजनीतिक समीकरण के साथ ही जातिगत समीकरण को भी साधना बेहद जरूरी होगा, क्योंकि सतीश पूनिया जाट समाज से आते हैं.
वहीं, पिछले दिनों राजस्थान से ही आने वाले जगदीप धनखड़ (Caste Politics in Rajasthan) जो जाट समाज से हैं. उन्हें उपराष्ट्रपति पद से नवाजा गया. राष्ट्रपति पद पर द्रौपदी मुर्मू की ताजपोशी के जरिए भाजपा ने अनुसूचित जनजाति समाज को भी साधने की कोशिश की, लेकिन राजस्थान की दृष्टि से ओबीसी, ब्राह्मण और दलित समाज पर अब पार्टी स्तर पर फोकस किया जा सकता है. या फिर कहें कि यदि बदलाव होता है तो इन समाजों से आने वाले नेताओं को मौका मिल सकता है.
इन चेहरों को लेकर भी सियासी चर्चा जोरों पर : चुनाव से पहले नया भाजपा प्रदेश बने या नहीं, लेकिन पूनिया के 3 साल का कार्यकाल पूरा होने के बाद सियासी गलियारों में नए चेहरों को लेकर सियासी चर्चा शुरू हो गई है. पार्टी के पास कई बड़े ब्राह्मण चेहरे हैं, इनमें चित्तौडगढ़ सांसद सीपी जोशी, राज्यसभा सांसद बने घनश्याम तिवाड़ी, पूर्व सांसद नारायण पंचारिया और महामंत्री भजन लाल शर्मा के नामों की चर्चा हैं. वहीं, दलित समाज से भी इस पद पर प्रतिनिधित्व मिल सकता है और यदि ऐसा हुआ तो केंद्रीय मंत्री अर्जुन राम मेघवाल, पूर्व केंद्रीय मंत्री और मौजूदा सांसद निहालचंद मेघवाल, विधायक मदन दिलावर जैसे नेताओं के नामों की चर्चा आम है.
पढ़ें :भाजपा केंद्रीय नेतृत्व का राजस्थान में बढ़ रहा फोकस, आखिर क्या है वजह...
ओबीसी पर भी भाजपा का फोकस : भाजपा इन दिनों अन्य पिछड़ा वर्ग यानी ओबीसी पर भी फोकस किए हुई है. अमित शाह की मौजूदगी में जोधपुर में ओबीसी मोर्चा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक भी हुई जो इस बात का सबूत भी है. ऐसे में अगर ओबीसी के चेहरों में राज्यसभा सांसद राजेंद्र गहलोत का नाम भी शामिल है, जिनकी चर्चा भी सियासी गलियारों में बनी हुई है.
वसुंधरा राजे खेमा भी सक्रिय : मौजूदा परिस्थितियों में पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के समर्थकों से जुड़ा खेमा भी काफी सक्रिय नजर आ रहा है. बताया जा रहा है कि कई नेता अभी से प्रदेश अध्यक्ष पद की लॉबिंग में जुटे हैं. हालांकि, यह तो तय है कि अगले विधानसभा चुनावों से पहले पार्टी यदि प्रदेशाध्यक्ष पद पर बदलाव करती है तो उसी व्यक्ति को मौका मिलेगा जो अनुभवी हो और राजस्थान भाजपा के अलग-अलग खेमों में बैठे नेताओं को एक साथ लेकर चलने में सक्षम भी हो. क्योंकि पार्टी नेतृत्व यह नहीं चाहेगा की बड़े बदलाव से सियासी फायदे के बदले बड़ा नुकसान हो.