जयपुर.प्रदेश में चल रहे सियासी महासंग्राम के बीच गहलोत सरकार अपनी कुर्सी बचाने की जद्दोजहद में इस कदर उलझी कि प्रदेश में विकास की रफ्तार धीमी पड़ गई. आलम यह है कि मुख्य सचिव राजीव स्वरूप रोजमर्रा के कामकाज के अलावा कोई बड़ा नीतिगत निर्णय नहीं ले पा रहे हैं. सरकार के निर्देश के इंतजार में टकटकी लगाए बैठी ब्यूरोक्रेसी अपने वजूद को बचाने में जुटी है.
राजस्थान के सियासी उठापटक के बीच ब्यूरोक्रेसी की चाल फिलहाल धीमी चल रही है. फाइलों का मूवमेंट नहीं होने के कारण कुछ बड़े मसले सरकार के स्तर पर पेंडिंग चल रहे हैं. इनमें राज्य की जेलों के सुधार के नवाचार, थर्ड जेंडर के अलग से पहचान पत्र मुहैया कराने, मुख्यमंत्री की बजट घोषणा शामिल है.
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जन घोषणा पत्र के बिंदुओं पर थमा काम
राज्य के सियासी संकट का असर यह हो रहा है कि जन घोषणा पत्र के 503 में से 150 बिंदुओं पर काम पूरा हो पाया है. वहीं, अब प्रदेश के विकास कार्य की रफ्तार धीमी पड़ने के बाद फाइलें अटकी हुई है. विभागों के मंत्री अपने विभाग के अफसरों के साथ नियमित तौर पर मीटिंग नहीं कर पा रहे हैं. हालांकि बाड़ेबंदी से बाहर निकल जलदाय मंत्री बीडी कल्ला, उद्योग मंत्री परसादी लाल मीणा, अल्पसंख्यक मामलात मंत्री सालेह मोहम्मद, सहकारिता मंत्री उदयलाल आंजना, चिकित्सा मंत्री रघु शर्मा, परिवहन मंत्री प्रताप सिंह खाचरियावास, यूडीएच मंत्री शांति धारीवाल अपने विभाग के कामकाज को निपटाने के लिए सचिवालय पहुंचे थे. मुख्यमंत्री अशोक गहलोत भी अपने निवास से लगातार वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए विभागों के कामकाज की समीक्षा कर रहे हैं. लेकिन कई मंत्री और विभाग ऐसे हैं, जिनका काम पूरी तरीके से रुका हुआ है.