जयपुर. प्रदेश में गर्मियों के दौरान कोयले की किल्लत के चलते बिजली का संकट रहा और आम बिजली उपभोक्ताओं को पावर कट की समस्या का भी सामना करना पड़ा, लेकिन मानसून आने के बाद भी बिजली का संकट खत्म होने की उम्मीद कम ही है. छत्तीसगढ़ में कोयला खनन विवाद के चलते मानसून से पहले प्रदेश के बिजली घरों में समुचित कोयले का स्टॉक नहीं किया जा सकेगा और बरसात के दौरान खदानों में पानी भराव की समस्या के चलते पर्याप्त कोयला मिलना मुश्किल है.
रबी सीजन में 15 हजार मेगावाट से अधिक मांग रहने की संभावना:वर्तमान में प्रदेश में बिजली की औसतन 14000 मेगावाट की डिमांड है और इस डिमांड को पूरी करने के लिए भी बाजार से महंगे दामों में बिजली खरीदनी पड़ रही है. इस समय गर्मी के कारण घर ऑफिस व अन्य प्रतिष्ठानों में कूलर, एसी चल रहे हैं लेकिन बरसात में एसी, कूलर का बिजली लोड कम हो जाएगा. लेकिन रबी का सीजन शुरू होने से कृषि में बिजली की डिमांड रहेगी. पिछले साल रबी के सीजन में प्रदेश में औसतन 15 हजार मेगावाट प्रतिदिन बिजली की डिमांड रही थी. इस बार इसमें इजाफा ही होगा. ऐसे में मौजूदा समय में डिमांड के अनुरूप प्रदेश में बिजली का उत्पादन होना मुश्किल है क्योंकि प्रदेश में अधिकतर बिजली उत्पादन की इकाई थर्मल आधारित हैं और अभी कोयले का संकट चल रहा (Coal crisis in Rajasthan) है.
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नहीं सुलझा छत्तीसगढ़ कोयला खनन मानसून से पहले कैसे होगा कोयला स्टोरेज: जिन प्रदेशों में कोयला आधारित बिजली घर हैं, वहां मानसून से पहले ही कोयले का पर्याप्त स्टॉक कर लिया जाता है. लेकिन राजस्थान में इस समय स्थिति उल्ट है. राजस्थान को छत्तीसगढ़ में 841 हेक्टेयर में आवंटित पारस ईस्ट कोयला खदान से खनन नहीं करने दिया जा रहा है. स्थानीय लोग और कुछ स्वयंसेवी संगठनों के विरोध के चलते खनन का काम अटका हुआ है जबकि केंद्र और खुद छत्तीसगढ़ सरकार ने खनन की अनुमति दे दी है. ऐसे में राजस्थान विद्युत उत्पादन निगम मानसून से पहले अपने बिजली घरों में कोयले का पर्याप्त स्टॉक करके नहीं रख सकता और कोयला नहीं रहने पर रबी के सीजन में बिजली का उत्पादन भी प्रभावित होगा जिससे बिजली संकट की स्थिति बनेगी.