जयपुर.कोरोना संक्रमण की वजह से होने वाली आम लोगों की मौत प्राकृतिक आपदा नहीं है. इसके तहत मरने वाले व्यक्ति के परिजनों को सरकार की ओर से आर्थिक सहायता का प्रावधान भी नहीं है. सरकार ने इसे प्राकृतिक आपदा में होने वाली मौत के नियमों में शामिल नहीं किया है. हालांकि, गहलोत सरकार ने कोरोना वायरस अभियान के दौरान सरकारी कर्मचारी की मृत्यु पर उसे फ्रंट लाइन वर्कर मानते हुए 50 लाख रुपए की आर्थिक सहायता देने का प्रावधान जरूर किया है. लेकिन, यह आर्थिक प्रावधान आम लोगों के ऊपर लागू नहीं होता है.
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पूरा देश इस समय कोरोना महामारी का सामना कर रहा है. दूसरी लहर में इस महामारी के बढ़ते प्रकोप को रोकने के लिए केंद्र और राज्य सरकार कई तरह की चुनौतियों का सामना कर रही है. ऐसे में देश के कई राज्य के मुख्यमंत्री ने इस मुसीबत से लड़ने के लिए कई एलान भी किए हैं.
इसी सिलसिले में राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने पूर्व में यह घोषणा की है कि राज्य में कोरोना वायरस अभियान के दौरान कोरोना वायरस के कारण किसी भी सरकारी कर्मचारी के मृत्यु पर उसके परिवार को 50 लाख रुपए की आर्थिक सहायता दी जाएगी. बता दें कि अस्पतालों में काम करने वाले डाक्टरों, नर्सों और अन्य कर्मचारियों को मुआवजा दिया जाता है. कोरोना महामारी से निपटने के लिए जुटे डाक्टरों और स्वास्थ्य कर्मियों के लिए सरकार की ओर से 50 लाख रुपए के बीमा कवर की घोषणा की गई थी. इस जीवन बीमा कवर में स्वास्थ्यकर्मियों, सफाईकर्मियों, आशा वर्कर्स और इस लड़ाई में शामिल बाकी सरकारी कर्मचारी भी शामिल हैं. लेकिन, आम लोगों को इसका फायदा नहीं दिया गया है.
केंद्र सरकार ने पहले मेडिकल स्टाफ सहित कोरोना योद्धाओं को 50 लाख रुपए के चिकित्सा बीमा कवर देने की घोषणा की थी. हालांकि, बाद में राज्य सरकार ने इसे अन्य कर्मचारियों के लिए भी बढ़ाया है जो कोरोना वायरस ऑपरेशन के हिस्सा हैं. गहलोत सरकार ने मौत की लड़ाई लड़ने वाले पुलिसकर्मी और स्वास्थ्य विभाग की टीम के अलावा पटवारी, ग्राम सेवक, सफाई कर्मचारी, स्वास्थ्य कार्यकर्ता, होमगार्ड, नागरिक सुरक्षा, आशा और आंगनबाड़ी कार्यकर्ता जैसे संविदा कर्मचारियों को भी मुआवजे की सूची में शामिल किया है. इस लिहाज से यदि इनमें से किसी भी कर्मचारी की मौत महामारी के चलते होती है तो उनके परिवार को 50 लाख रुपए का मुआवजा दिया जाएगा.