जयपुर. प्रदेश के कई जिलों में प्री मानसून ने दस्तक के साथ सरकार जल संरक्षण को लेकर सजग हो गई है. मुख्य सचिव निरंजन आर्य ने राज्य में जल की कमी को देखते हुए हमें हर संभव तरीके से अधिक से अधिक वर्षा जल का संरक्षण करने के निर्देश दिए. उन्होंने संबंधित अधिकारियों से कहा कि प्रदेश में जल संरक्षण की क्षमता का आंकलन कर वर्षा जल का अधिकतम संचय करना सुनिश्चित करें.
मुख्य सचिव निरंजन आर्य (Chief Secretary Niranjan Arya) ने मंगलवार को यहां शासन सचिवालय में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से 'जल शक्ति अभियान-केच द रेन' की समीक्षा कर रहे थे. मुख्य सचिव ने कहा कि राजस्थान पुराने समय से ही पानी के लिए जूझता रहा है. यहां वर्षा के जल का संरक्षण करना बेहद जरूरी है. बरसात के पानी को रोककर जल संरक्षण करने की दृष्टि से यह अभियान राज्य के लिए बहुत महत्वपूर्ण और प्रासंगिक है. आर्य ने कहा कि इस अभियान से जुड़े सभी विभाग अपनी गतिविधियों में तेजी लाकर तय समय में पूर्ण करें. जिससे बेहतर परिणाम मिल सके.
यह भी पढ़ें.SPECIAL : उज्ज्वला योजना में अंधेरा : राजस्थान में 38 लाख लोगों ने छोड़ा 'महंगा' सिलेंडर...चूल्हे पर खाना पका रही महिलाएं
इस अवसर पर जन स्वास्थ्य अभियांत्रिकी विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव सुधांश पंत ने कहा कि जहां से भी संभव हो, वहां से पानी को रोकने और संरक्षण का प्रयास करना चाहिए. उन्होंने कहा कि जल सरंक्षण के लिए अधिकतम घरों में वाटर हार्वेस्टिंग संरचनाएं बनानी चाहिए. प्रमुख शासन सचिव वन श्रेया गुहा ने कहा कि इस वर्ष वन क्षेत्र में एक करोड़ पौधे लगाए जाएंगे, वहीं एक करोड़ पौधों का वितरण भी किया जाएगा.
यह भी पढ़ें.मोदी सरकार ने मजबूरी में लिया फ्री वैक्सीनेशन का निर्णय : डोटासरा
प्रमुख शासन सचिव कृषि भास्कर ए सावंत ने बताया कि इस वर्ष किसानों के खेतों में वर्षा जल संचय के लिए 7 हजार से अधिक संरचनाएं बनाई जाएगी. प्रमुख शासन सचिव जल संसाधन नवीन महाजन ने बताया कि बड़े प्रोजेक्ट्स के साथ छोटी नदियों एवं डाउन स्ट्रीम पर एनिकट बनाकर पानी को रोकने का कार्य किया जा रहा है.
इससे पहले पंचायतीराज विभाग की शासन सचिव श्रीमती मंजू राजपाल ने अभियान की विस्तार से जानकारी देते हुए बताया कि अभियान के तहत विभिन्न विभागों के माध्यम से आगामी 30 नवम्बर तक जल संरक्षण से संबंधित कार्य किए जाएंगे. उन्होंने बताया कि इस दौरान जल संरक्षण एवं रेन वाटर हार्वेस्टिंग, परंपरागत अन्य जल संरचनाओं का पुनरूद्धार, जलग्रहण विकास एवं गहन वनीकरण जैसी गतिविधियां की जाएंगी.